नई दिल्ली: राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा है कि देश की आर्थिक सुरक्षा खतरे में डालने के इरादे से बहुमूल्य धातु सोने की तस्करी को यूएपीए के तहत एक ‘आतंकवादी कृत्य’ कहा जा सकता है.
कोर्ट ने संघीय जांच एजेंसी एनआईए की तरफ से आतंकवाद निरोधक कानून यूएपीए के तहत दर्ज किए गए एक मामले को खारिज करने से इनकार करते हुए ये फैसला सुनाया, जिसमें मोहम्मद असलम के खिलाफ खुद सोने की तस्करी में लिप्त होने के अलावा ऐसी गतिविधियों में अन्य लोगों की मदद करने का आरोप लगाया गया है.
जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि एफआईआर दर्ज करना ‘कोई भेदभावपूर्ण कृत्य नहीं था’, जैसा कि असलम ने आरोप लगाया है क्योंकि वह ‘प्रथम दृष्टया सोने की तस्करी का आरोपी पाया गया था.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘सोना निश्चित रूप से एक मूल्यवान धातु है, जिसकी तस्करी देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरे या संभावित खतरे में डालने के इरादे के साथ की जा सकती है.’
उन्होंने असलम की यह दलील भी खारिज कर दी कि यूएपीए के तहत मामला दर्ज करना ‘डबल जियोपार्डी’ होगा क्योंकि सोने की कथित तस्करी के संबंध में वह पहले से ही सीमा शुल्क अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना कर रहा है.
पीठ ने टिप्पणी की कि सीमा शुल्क अधिनियम के तहत सोने की तस्करी अलग अपराध है और इसलिए दो अलग-अलग कानूनों के तहत अलग-अलग मुकदमे चलाए जा सकते हैं.
‘एफआईआर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है’
एनआईए ने असलम पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी के साथ यूएपीए की धारा 16 के तहत आरोप लगाया है.
यदि कोई आतंकवादी अधिनियम के तहत दोषी पाया जाता है तो उसे यूएपीए की धारा 16 के तहत मौत या आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. आतंकवादी कृत्य को यूएपीए की धारा 15 के तहत परिभाषित किया गया है.
अपने खिलाफ एफआईआर को चुनौती देते हुए असलम ने तर्क दिया था कि उस पर संदेह के आधार पर केस दर्ज किया गया है, जबकि इस तरह की प्राथमिकी केवल प्रथम दृष्टया आतंकवादी गतिविधि में लिप्त पाए जाने वाले के खिलाफ दर्ज की जा सकती है, जैसा कि यूएपीए की धारा 15 के तहत परिभाषित किया गया है.
उसने धारा 15(I)(ए)(iiiए) का उल्लेख करते हुए— जो विशेष तौर आतंकवादी कृत्य के रूप में तस्करी के बारे में बात करता है— तर्क दिया कि ‘सोने की तस्करी’ को इस कानून के तहत कवर नहीं किया गया है. साथ ही दावा किया कि मामला प्रक्रिया के दुरुपयोग का एक बड़ा उदाहरण है, जिसे रद्द किया जाना चाहिए.
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‘हर तस्करी को आतंकवादी अधिनियम की परिभाषा के तहत कवर नहीं किया जा सकता’
एनआईए ने इस दलील के साथ इस तर्क को खारिज किया कि असलम देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से सोने की तस्करी करता है, जो कि प्रथम दृष्टया एक आतंकवादी कृत्य है.
इसके अलावा, एजेंसी ने उस पर तस्करी गतिविधियों का सूत्रधार होने का आरोप भी लगाया है.
यूएपीए की धारा 15 को विस्तार से उद्धृत करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रावधान से स्पष्ट है कि ‘देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरे या संभावित खतरे में डालने के इरादे के साथ की गई गतिविधियां’ भी ‘आतंकवादी कृत्य’ के दायरे में आती हैं.
उन्होंने कहा कि अधिनियम को इसकी धारा 15(I)(ए)(iiiए) के तहत और स्पष्ट किया गया है जो कहता है कि ऐसी गतिविधियां जो किसी सामग्री की तस्करी के माध्यम से भारत के मौद्रिक स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती हो, आतंकवादी कृत्य में आती हैं.
जज ने कहा, ‘किसी भी मूल्यवान धातु की तस्करी राष्ट्र की मौद्रिक स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती है जो कि आर्थिक सुरक्षा को खतरे या संभावित खतरे में डाल सकती है, इसलिए, विधायिका ने इस प्रावधान में किसी सामग्री का उल्लेख नहीं किया है.’
उनके अनुसार, सोना ‘निश्चित रूप से एक मूल्यवान सामग्री है’ और इसलिए, धातु की तस्करी से देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
उन्होंने आगे कहा कि एनआईए मामले में अपनी चार्जशीट दाखिल करने के बाद असलम अपने लिए उपलब्ध कानूनी उपाय का लाभ उठा सकता है.
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