मोहाली: पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के सत्ता में आने के साथ ही यहां माफिया की जद में रेत खनन को कंट्रोल में करना उसके प्रमुख वादों में से एक था. अब यह खुद को रेत और बजरी की बिक्री को रेग्युलेट करने के अपने प्रयास में अवैध खनन उद्योग की वजह से मुश्किल में पा रही है. रेत माफियों के तेज-तर्रार होने, खरीदारों के बीच जागरूकता की कमी और मौजूदा ‘ग्रे’ बाजार इस काम में मुश्किल पैदा कर रहा है.
निजी खुदरा विक्रेता, जो पहले से ही राज्य में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध से परेशान हैं, सरकार पर ‘उनके क्षेत्र’ में दखल देने या अतिक्रमण करने का आरोप लगा रहे हैं.
रेत खनन में भ्रष्टाचार इस साल की शुरुआत में पंजाब के चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा था, विपक्ष ने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी पर बालू माफिया के साथ शामिल होने का आरोप लगाया था. जबकि आप ने राज्य में अवैध खनन को समाप्त करने का वादा किया था, जो अपने मकसद में नाकाम होती प्रतीत हो रही है.
पंजाब सरकार ने 19 दिसंबर को मोहाली में राज्य के पहले रेत और बजरी बिक्री आउटलेट का बड़े धूमधाम से उद्घाटन किया, लेकिन लॉन्च के बाद से पांच दिनों में यह सिर्फ 36 खरीदारों को ही आकर्षित कर पाया है.
रेत-बजरी बेचने वाले सरकारी आउटलेट को सुस्त रिस्पांस मिलने की एक वजह यह भी है कि जिस कीमत पर सरकार रेत और बजरी बेच रही है, वही कीमतें निजी खुदरा विक्रेता भी ले रहे हैं. यही नहीं कुछ मामलों में सरकारी आउटलेट में कीमतें ज्यादा ही हैं.
इसके अलावा लोगों को सरकारी आउटलेट के बारे में पता नहीं होना भी एक वजह है. दुकान खुलने के तीन-चार दिन बाद पंजाबी भाषा में लिखा एक बोर्ड वहां लगा दिया गया, फिर भी उसके ठीक बाहर जूस के ठेले लगाने वाले दुकानदार राहगीरों को वहां का रास्ता नहीं बता पा रहे हैं.
आम आदमी पार्टी (आप) सरकार में खान, भूविज्ञान और जल संसाधन मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने पंजाब में अपनी तरह के पहले सेल्स आउटलेट की यह कहते हुए सराहना की थी कि यह उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो अपना घर बनाना चाहते हैं. यह उन्हें सस्ती दर पर निर्माण सामग्री मुहैया कराएगा.
यद्यपि, यह आउटलेट न्यू चंडीगढ़ के इकोसिटी-2 में स्थित है, जहां नए निर्माण के लिए काफी संभावनाएं हैं, फिर भी इसे उस तरह बड़े ऑर्डर नहीं मिल पाए हैं जिसकी राज्य सरकार उम्मीद कर रही थी.
रेत खनन में भ्रष्टाचार इस साल के शुरू में पंजाब चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा था, विपक्ष ने कांग्रेस के तत्कालीन सीएम चरणजीत सिंह चन्नी पर रेत माफिया से जुड़े होने का आरोप लगाया था. और यद्यपि आप ने राज्य में अवैध खनन रोकने का वादा किया था, लेकिन वह फिलहाल तो अपने वादे में कामयाब होती नहीं दिख रही है.
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मूल्य निर्धारण एक समस्या
पंजाब सरकार उपभोक्ताओं को सस्ती बजरी और रेत उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य भर में मोहाली जैसे आउटलेट खोलने की योजना बना रही है. लेकिन इन सामग्रियों का मूल्य निर्धारण करना मुश्किल बना हुआ है.
बिक्री आउटलेट के उद्घाटन के मौके पर बैंस ने दावा किया था कि सरकारी आउटलेट में बाजार मूल्य से एक-डेढ़ रुपये प्रति क्यूबिक फीट (घन फीट) कम पर भवन निर्माण सामग्री उपलब्ध होगी.
एक घन फुट को एक घन आयतन के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें लंबाई-चौड़ाई दोनों एक फुट होती है.
खनन निरीक्षक हरदीप सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि सरकारी आउटलेट पर रेत की कीमत 28 रुपये प्रति घन फीट है, जबकि बजरी 32 रुपये प्रति घन फीट के दाम पर बेची जा रही है, इसके अलावा कुल खरीद पर 5 प्रतिशत जीएसटी है. बिक्री आउटलेट से निर्माण स्थल तक दूरी के आधार पर ग्राहकों को सामग्री के ट्रांसपोर्ट पर भी खर्च वहन करना होगा.
लेकिन सरकार की तरफ से संचालित आउटलेट पर निर्माण सामग्री के बिक्री मूल्य इस साल अगस्त में राज्य की रेत और बजरी खनन नीति को संशोधित करते समय किए गए वादे की तुलना में काफी अधिक हैं.
भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार ने रेत और खनन नीति 2021 में संशोधन कर रेत के लिए 9 रुपये प्रति घन फुट और बजरी के लिए 20 रुपये प्रति घन फुट की दरें निर्धारित की थीं.
जब दिप्रिंट ने क्षेत्र में निजी खुदरा विक्रेताओं के यहां कीमतों के बारे में पता लगाया तो पाया कि सरकारी आउटलेट पर मिलने वाली निर्माण सामग्री उनकी तुलना में अधिक कीमतों पर बेची जा रही थी.
इकोसिटी-2 में जेएमबी ट्रेडर्स के मालिक ने कहा, ‘हरियाणा के नानकपुर से हम रेत 20 रुपये प्रति घन फीट पर खरीदते हैं और इसे 25 रुपये प्रति घन फीट और 10 मिमी बजरी 32 रुपये प्रति घन फीट की दर से बेचते हैं, जिसमें ट्रांसपोर्ट कास्ट शामिल नहीं है.’ एक अन्य खुदरा विक्रेता के पास ट्रांसपोर्ट कास्ट के साथ रेत 28 रुपये प्रति घन फीट और बजरी 36 रुपये प्रति घन फीट की दर पर उपलब्ध मिली.
मौजूदा समय में सरकार संचालित आउटलेट वाणिज्यिक स्तर पर व्यवसाय नहीं कर रहा है, और केवल निजी खरीदारों को ही बेच रहा है. दिप्रिंट ने जिन खनन अधिकारियों से बात की, उन्होंने बताया कि सरकार मुख्य रूप से ग्रे कलर की महीन रेत बेच रही है, जो रूपनगर जिले में पूर्व में खनन से निकाली गई गाद रहित उत्पाद है.
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 10 नवंबर के आदेश के तहत राज्य में रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध प्रभावी है.
हालांकि, सरकारी आउटलेट के ग्राहकों ने कहा कि यहां उपलब्ध सामग्री की गुणवत्ता काफी बेहतर है. नजदीक ही अपना घर बनवा रहे डॉ. किशोर कुमार ने कहा, ‘मुझे कीमत में तो कोई फायदा नहीं मिल रहा, लेकिन यहां की रेत उसी कीमत पर बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली है, इसलिए मैंने सरकारी आउटलेट से खरीदने का फैसला किया.’ एक अन्य ग्राहक रविंदर ने कहा कि वह सरकारी आउटलेट से बहुत खुश हैं. उन्होंने बताया, ‘मैंने यहां से 33 रुपये प्रति घन फीट की दर से 600 घन फीट बजरी खरीदी है, बाहर दर 38 रुपये प्रति घन फीट है…मैं बहुत खुश हूं.’
निजी खुदरा विक्रेताओं ने उठाए सवाल
अपने क्षेत्र में सरकारी दखल से नाराज निजी खुदरा विक्रेताओं ने इसे लेकर निराशा जताई कि खनन पर पूर्ण प्रतिबंध ने उनके व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है.
जेएमबी ट्रेडर्स के मालिक ने कहा, ‘पंजाब सरकार इतनी अक्लमंद है कि हरियाणा को एक समृद्ध राज्य बनाने में मदद कर रही है. उन्होंने राज्य में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे उन्हें राजस्व मिलता था. अब, हरियाणा सरकार हमारे पैसों पर मौज कर रही है.’
साथ ही जोड़ा, ‘वे (पंजाब सरकार) पुरानी नीति को यथावत रखते हुए एक नई रेत और खनन नीति तैयार कर सकते थे. लेकिन बिना सोचे-समझे पुरानी नीति को मनमाने ढंग से खत्म कर दिया. सरकार का काम लोगों की समस्याएं सुलझाना है, बढ़ाना नहीं. रोड़ी रेत बेचें क्या इसलिए इन्हें वोट दिया था?’
निजी खिलाड़ी सरकारी दरों पर ही निर्माण सामग्री बेचने में इसलिए भी सक्षम हो पा रहे हैं क्योंकि उन्हें इसके लिए राज्य की सीमाओं से बाहर नहीं देखना पड़ता और अवैध खननकर्ता उन्हें बेरोकटोक रेत और बजरी मुहैया करा रहे हैं.
दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए राज्य के मंत्री हरजोत सिंह बैंस के अलावा पंजाब सरकार में प्रधान सचिव (रेत एवं खनन) से व्हाट्सएप पर संपर्क साधा लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. जवाब आने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रिंसिपल बेंच के आदेश पर गठित एक समिति ने राम सिंह की तरफ से दायर याचिका में अवैध रेत खनन के दावों पर गौर करने के बाद अपने निष्कर्ष में पाया था कि उन क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है, जो पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील हैं.
एनजीटी ने राज्य के खनन विभाग को सीसीटीवी कैमरे लगाने और इलाके में अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया था. तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने भी एनजीटी को बताया था कि खनन विभाग माजरी ब्लॉक के गांवों में लगातार सर्वे कर रहा है.
लेकिन जैसा दिप्रिंट की जांच से पता चला है, ब्लॉक में अभी भी बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है.
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अवैध बालू खनन माफिया सक्रिय
सरकार की तरफ से जैसे ही बिक्री आउटलेट खोलने की घोषणा की गई, आप ने एक ट्वीट में लिखा—’पंजाब में अवैध खनन पर पूर्ण विराम.’
हालांकि, दिप्रिंट ने पाया कि जहां सरकार का नया बिक्री आउटलेट स्थित है, वहां से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर अवैध खनन जोर-शोर से चल रहा है.
दिप्रिंट ने तारापुर, मियांपुर चंगर और अभीपुर गांवों में चार जगहों का दौरा किया जहां अवैध रेत खनन माफिया सक्रिय था. 200 फीट जितनी गहरी खदानों के साथ, ये स्थल उल्कापिंडों के गिरने के कारण बने गड्ढों जैसे नजर आते हैं.
सैनी माजरा गांव में दिप्रिंट ने पाया कि कुछ मजदूर फावड़े और एक जेसीबी का उपयोग करते हुए रेत खनन में जुटे थे. यह समझ आते ही कि उनके काम पर किसी की नजर पड़ गई है, जेसीबी चलाने वाले व्यक्ति ने तुरंत काम बंद कर दिया, और इसके बाद कुछ दूरी तक बाइक सवार कुछ लोगों ने दिप्रिंट की टीम का पीछा भी किया.
अवैध खनन रोकने के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट बताते हैं कि सबसे बड़ी खदान शिवालिक पर्वतमाला की तलहटी में थी, जबकि यह 1900 के पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम की धारा 4 के तहत संरक्षित क्षेत्र में है.
अभीपुर गांव निवासी राम सिंह एक एक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा के बाद से नवंबर और दिसंबर में लगभग हर रात अपने गांव से निकलने वाले रेत और बजरी के ट्रकों की आवाजाही को रिकॉर्ड किया है. उन्होंने अपने दावों के समर्थन में दिप्रिंट के साथ सीसीटीवी फुटेज भी साझा किए.
राम सिंह हर समय अपने साथ दस्तावेजों और तस्वीरों से भरा एक काला बैग रखते हैं, जिसमें अपने गांव में अवैध खनन के खिलाफ करीब एक दशक पुरानी उनकी लड़ाई का पूरा लेखा-जोखा है. उनके बैग में अखबारों के लेखों और तस्वीरों के साथ एक वो फोटो भी है जिसमें उनके दो साथी कथित तौर पर एक स्थानीय रेत माफिया के हमले के बाद जमीन पर पड़े दिख रहे हैं.
पंजाब में पूर्व की सरकारों ने अवैध खनन पर नकेल कसने में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है, जबकि यह बड़े पैमाने पर जारी रहा है, और अवैध खनन करने वाले इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं.
दिप्रिंट ने अपनी पड़ताल में पाया कि तारापुर, मियापुर चंगर, सैनी माजरा और गोचर के गांवों में सक्रिय खदानें हैं और अवैध खनन के खिलाफ सक्रिय एक्टिविस्ट कई बार इस मुद्दे को राज्य सरकार के संज्ञान में ला चुके हैं. लेकिन अदालती आदेश पर प्रतिबंध पर अमल के लिए अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है.
मोहाली जिले के ग्रामीण 2013 से अपने गांवों में खनन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. यह मुद्दा उठाने की वजह से ही दो एक्टिविस्ट रणजोत सिंह और सुखदेव सिंह पर 2019 में हमला हुआ था. हमले में रणजोत सिंह का पैर कुचल दिया गया था, जबकि एक स्थानीय रेत माफिया की तरफ से कथित तौर पर कृपाण से हमला किए जाने के बाद सुखदेव नौ दिनों तक कोमा में रहे थे.
लेकिन ऐसे हमलों का सामना करने के बावजूद स्थानीय एक्टिविस्ट को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 342 (गलत ढंग से कैद करना), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करना) और 149 (गैरकानूनी जमावड़ा) आदि का सामना करना पड़ा.
हालांकि, खनन निरीक्षक हरप्रीत सिंह ने कहा कि निर्माण सामग्री ले जा रहे किसी गैर-पंजीकृत ट्रक पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाने के आप सरकार के फैसले का असर होगा. उन्होंने कहा, ‘पहले, रेत की तस्करी करते पकड़े जाने पर ड्राइवरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती थी. सरकार अब न केवल वाहनों को जब्त करेगी बल्कि दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाएगी, जिससे इस पर शिकंजा कसेगा. त्वरित कार्रवाई होने से चीजें बदलेंगी.’
फिलहाल, पंजाब में मौजूदा खनन नीति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. व्यापक प्रतिबंधों के साथ सरकारी खजाने को राजस्व का तो नुकसान हो ही रहा है, सरकार का नवीनतम आउटलेट भी औसत खरीदार के लिए बहुत कम उपयोगी साबित हो रहा है. इस सबके बीच, खनन माफिया हमेशा की तरह अपना धंधा चमकाने में लगा है.
(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : इन्द्रजीत)
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