नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को दो बार पत्र लिखकर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के अनुरोध को लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने का आग्रह किया था।
यह जानकारी एक रिपोर्ट में सामने आई है जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन द्वारा दायर की गई थी। वह हिंसा की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) निगरानी कर रहे हैं।
आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ किसानों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय की विशेष पीठ ने सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ में प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति जैन ने रिपोर्ट में कहा, ‘‘एसआईटी के प्रमुख ने क्रमशः 10 फरवरी और 14 फरवरी, 2022 को अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग, उत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर जारी जांच और इस माननीय न्यायालय द्वारा पारित 26 अक्टूबर, 2021 के आदेश के मद्देनजर सुरक्षा प्रदान किए गए 98 गवाहों सहित गवाहों को धमकी की आशंका के मद्देनजर आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए उच्चतम न्यायालय में तत्काल अपील करने का अनुरोध किया था।’’
उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश की पीठ ने 10 फरवरी को मिश्रा को जमानत दे दी थी, जिन्होंने चार महीने हिरासत में बिताए थे।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एसआईटी ने ‘‘शिकायतकर्ता, चश्मदीद गवाहों, घायल व्यक्तियों और सरकारी गवाहों’’ के 208 बयान दर्ज किए हैं और लखीमपुर में जिला और सत्र न्यायालय में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने की प्रक्रिया चल रही है।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 17 नवंबर को न्यायमूर्ति जैन को उत्तर प्रदेश एसआईटी द्वारा जांच की निगरानी के लिए नियुक्त किया था, जिसमें तीन आईपीएस अधिकारी भी थे जो राज्य के मूल निवासी नहीं थे।
पुनर्गठित एसआईटी में, शीर्ष अदालत ने आईपीएस अधिकारियों – एस. बी. शिराडकर, पद्मजा चौहान और प्रीतिंदर सिंह को शामिल करने का आदेश दिया था।
एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा और अन्य की घटनास्थल पर मौजूदगी साबित होती है।
इसमें कहा गया है कि तेरह आरोपी एक ‘‘पूर्व नियोजित तरीके से’’ अपराध स्थल पर गए थे, एक काफिले में तीन वाहनों का उपयोग करके और उन्हें एक संकरी सड़क पर बहुत तेज गति से चला रहे थे, जहां विरोध करने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विरोध को देखते हुए प्रशासन ने उपमुख्यमंत्री का रास्ता बदल दिया था और मिश्रा तथा अन्य आरोपी इस फैसले से अवगत थे।
जांच का जिक्र करते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपी अपराध करने के बाद प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए हवा में अपने हथियार दागकर भाग निकले और फोरेंसिक रिपोर्ट आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल की पुष्टि करती है।
इसमें यह भी कहा गया कि शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुपालन में राज्य पुलिस द्वारा 98 गवाहों को सुरक्षा प्रदान की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एसआईटी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने 99 गवाहों के बयान दर्ज किए।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश
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