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Saturday, 21 December, 2024
होमदेश'घर पर बैठो और पूजा पाठ करो'- हाथरस कांड के बाद महिलाओं के प्रति लोगों में बढ़ रहा रोष

‘घर पर बैठो और पूजा पाठ करो’- हाथरस कांड के बाद महिलाओं के प्रति लोगों में बढ़ रहा रोष

भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में मरने वाले 121 लोगों में से 112 महिलाएं थीं. हाथरस में पुरुष अब महिलाओं पर बाबा की अनुयायी होने और ऐसे आयोजनों में जाने का आरोप लगा रहे हैं.

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सिकंदरा राव, हाथरस: गुरुवार दोपहर सिकंदरा राव पुलिस स्टेशन परिसर में कुछ पुरुष बात कर रहे थे: हाथरस में भगदड़ इसलिए हुई क्योंकि ‘महिलाएं आसानी से प्रभावित हो जाती हैं’

हाथरस पुलिस ने बताया कि 2 जुलाई को सिकंदरा राव के फुलराई गांव में भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में मरने वाले 121 लोगों में से 112 महिलाएं थीं – जिनमें से ज्यादातर बुजुर्ग थीं बाकी के सात बच्चे और दो पुरुष थे.

इससे जिले के गांवों में महिलाओं के प्रति घृणा की लहर पैदा हो गई है, जहां पुरुष महिलाओं पर बाबा का अनुयायी होने का आरोप लगा रहे हैं और इस तरह की राय व्यक्त कर रहे हैं कि ‘महिलाओं को घर पर रहना चाहिए’.

गुरुवार को पुलिस स्टेशन में मामले पर चर्चा करने वाले पुरुष हाथरस के अलग-अलग गांवों से थे, लेकिन वे सभी इस बात पर सहमत थे कि अगर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं सत्संग में नहीं जातीं तो यह घटना नहीं होती.

समूह में शामिल लगभग 40 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, “मुझे नहीं पता कि ये महिलाएं ऐसे सत्संग में क्यों जाती हैं? क्या वे मरने के लिए सत्संग में जाती हैं? अगर वे वहां नहीं जातीं, तो यह दुर्घटना नहीं होती.”

यह पूछे जाने पर कि क्या केवल महिलाएं ही सत्संग में जाती हैं, एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि चूंकि पुरुष काम पर जाते हैं, इसलिए ज्यादातर महिलाओं के पास ऐसे कार्यक्रमों के लिए समय होता है. उन्होंने दावा किया कि पुरुष नहीं, बल्कि महिलाएं भोले बाबा का अनुसरण करती हैं.

समूह में शामिल एक अन्य व्यक्ति ने बीच में बोलते हुए कहा, “महिलाएं हमेशा आस्था में डूबी रहती हैं. वे भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं और आसानी से प्रभावित हो जाती हैं. इसलिए वे बाबा के झांसे में आ गईं.”

सिर्फ़ थाने में मौजूद ये पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाओं की दबंगई पूरे जिले में चिंता का मुख्य विषय बन गई है.

कृपाल सिंह, जिनके एक रिश्तेदार का हाथरस के अस्पताल में इलाज चल रहा है, कहते हैं, “घर से बाहर क्यों निकलें? घर पर बैठकर पाठ पूजा करें. इन महिलाओं का बाहर कोई काम नहीं है. अगर उन्हें कुछ करना ही है, तो उन्हें घर के बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए, लेकिन वे वह भी नहीं करतीं.”

हालाँकि, हाथरस के गांवों की महिलाएं इस घटना को अंधविश्वास और कुप्रबंधन का नतीजा मानती हैं.

‘अंधविश्वास ने ले ली जानें’

हाथरस त्रासदी में अपने परिवार के तीन सदस्यों को खोने वाली सोखना गांव की वर्षा लंबे समय से अपने परिवार को अंधविश्वास के खिलाफ़ चेतावनी दे रही थीं. भगदड़ में वर्षा की सास, ननद और ननद की बेटी की मौत हो गई है.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा अंधविश्वास का विरोध किया है. उनकी सास ने उनसे 2 जुलाई को सत्संग में चलने को कहा था. हालांकि, वर्षा ने मना कर दिया और कहा कि वह बाबा को भगवान नहीं मानती हैं और अगर वह भगवान की पूजा करना चाहती हैं तो वह ऐसा कर सकती हैं.

वर्षा ने कहा, “यह उनका अंधविश्वास है.”

उन्होंने कहा कि उनकी सास अपने बेटे के लिए भोले बाबा की तस्वीर वाला लॉकेट भी लाई थीं, लेकिन उसने पहनने से मना कर दिया.

उन्होंने कहा, “अंधविश्वास ने उनकी जिंदगी लील ली है. किसी को भी इस तरह का अंधविश्वास नहीं रखना चाहिए.”

सिकंदरा राव की कांग्रेस अध्यक्ष आमना बेगम ने कहा कि घटना के बाद बाबा के खिलाफ महिलाओं में नाराजगी बढ़ गई है.

उन्होंने इस धारणा को खारिज कर दिया कि इस घटना के लिए महिलाएं जिम्मेदार हैं. घटना के बाद लोगों से अपनी मुलाकात के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पतरौली में अपने पैतृक गांव की यात्रा के दौरान कुछ महिलाओं को बाबा के पोस्टर फाड़ते और फेंकते हुए देखा.

उन्होंने कहा कि यह सच नहीं है कि केवल महिलाएं ही बाबा की भक्त हैं; उनके अनुयायियों में कई पुरुष भी हैं.

बेगम ने कहा, “बाबा के सत्संग में कई पुरुष भी शामिल होते थे. इसके लिए महिलाओं को दोषी ठहराना गलत है.”

इसके बजाय वह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को जिम्मेदार मानती हैं. उन्होंने कहा कि महिलाएं स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की कमी और अपनी घरेलू समस्याओं के वैकल्पिक समाधान की तलाश में बाबा के सत्संग में जाती थीं.

बेगम ने बाबा को भी जिम्मेदार ठहराया और कहा कि जब उन्हें लगा कि भीड़ बहुत ज्यादा हो रही है, तो वह अपनी कार रोक सकते थे और लोगों से उनके पीछे न आने की अपील कर सकते थे.

सिकंदरा राव में रहने वाली प्रियंका ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस घटना के बाद समाज में पुरुष का वर्चस्व और ज्यादा खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाएगा.

जाटव समुदाय से आने वाली और बीए की छात्रा प्रियंका ने कहा, “यह जाटव समुदाय ही है जो बाबा का सबसे अधिक सम्मान करता है क्योंकि वे इसी समुदाय से उठे हैं. अब, अगर लोग इस घटना के लिए महिलाओं को दोषी ठहराते हैं, तो इससे महिलाओं, खासकर दलित महिलाओं की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.”

(यह सिर्फ जाटवों की बात नहीं है – भोले बाबा के अनुयायी विविध पृष्ठभूमि से हैं, जिनमें ओबीसी, ‘उच्च’ जातियां और राजस्थान, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश जैसे दूर-दराज के मुस्लिम भी शामिल हैं.)

प्रियंका ने कहा कि बाबा के सेवक भी मुख्य रूप से पुरुष हैं और भगदड़ के बाद से पुरुष ही उनकी सुरक्षा कर रहे हैं.

पिछले शुक्रवार को हाथरस में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद, पीड़ितों के परिवारों के कुछ सदस्यों ने मीडियाकर्मियों से बात करते हुए बाबा का बचाव किया.

राहुल गांधी से मुलाकात के बाद उमेश कुमार ने कहा था, “अगर बाबा के जाने के बाद भगदड़ मची तो इसके लिए वह कैसे जिम्मेदार हैं?”

एक अन्य पीड़ित के रिश्तेदार, अधिवक्ता उमेश पाल ने पूछा कि बाबा को कैसे पता हो सकता था कि उनके कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल होंगे.

दूसरी ओर, 2 जुलाई के सत्संग का आयोजन करने वाली बाबा की मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम समिति के अधिकांश सदस्य पुरुष हैं. इनमें प्रिंसिपल, वकील, शिक्षक और सेना के जवान शामिल हैं.

फुलराई निवासी गौरव ठाकुर ने कहा कि बाबा के सत्संग में अधिक महिलाएं शामिल होती हैं क्योंकि वह दावा करता है कि उनके पास उनकी पारिवारिक समस्याओं का समाधान है, जो अक्सर शराब की लत से शुरू होकर हिंसा में बदल जाती हैं.

प्रियंका ने जोर देकर कहा, “जैसे-जैसे लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी, अंधविश्वास खत्म हो जाएगा.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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