प्रयागराज, दो सितंबर (भाषा) इलाहबाद उच्च न्यायालय ने एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति के संबंध में विवाद का निपटारा करते हुए कहा कि अपने पति के परिवार से अलग रह रही जेठानी अपनी ससुराल के परिवार का हिस्सा नहीं कहलाएगी।
अदालत ने कहा, “जेठानी को परिवार का सदस्य तभी माना जा सकता है जब उसका पति और देवर एक साथ एक ही मकान में रह रहे हों और उनकी रसोई एक ही हो।”
इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति अजित कुमार ने बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा 13 जून, 2025 को पारित आदेश रद्द कर दिया।
आदेश के तहत याचिकाकर्ता की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर नियुक्ति इस आधार पर रद्द कर दी गई थी कि उसकी जेठानी भी उसी प्रखंड में आंगनबाड़ी सहायिका के तौर पर काम कर रही है और सरकारी आदेश के तहत एक ही परिवार की दो महिलाएं एक ही केंद्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायिका नियुक्त नहीं की जा सकतीं।
मौजूदा मामले में दलील दी गई कि याचिकाकर्ता की जेठानी एक अलग मकान में रह रही है और उसका मकान नंबर अलग है, इसलिए वह अपने पति के परिवार की परिभाषा के दायरे में नहीं आती।
उक्त दलील के समर्थन में, याचिकाकर्ता के वकील ने परिवार रजिस्टर के संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किए जिससे पता चलता है कि याचिकाकर्ता का पति मकान नंबर 126 में रह रहा है, जबकि उसकी जेठानी रामवती पत्नी प्रेमपाल मकान नंबर 107 में रह रही है।
समस्त रिकॉर्ड देखने और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि 13 जून, 2025 का आदेश रद्द किया जाता है और जिला कार्यक्रम अधिकारी को याचिकाकर्ता को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर बहाल करने का निर्देश दिया जाता है।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को महीने दर महीने वेतन का भुगतान किया जाएगा और साथ ही वह उक्त आदेश के कारण जितने समय काम से दूर रही, उतने समय का बकाया वेतन उसे दिया जाएगा।
भाषा राजेंद्र जोहेब
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