चेन्नई: तमिल में अपनी पहली फिल्म अन्नकीली के लिए संगीत देने के लगभग पांच दशक बाद इलैयाराजा को इस सप्ताह की शुरुआत में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है. 79 साल के उस्ताद कई भाषाओं में हजारों गीतों की रचना कर चुके हैं.
इलैयाराजा सहित पटकथा लेखक और निर्देशक वी. विजयेंद्र प्रसाद, एथलीट पी.टी. उषा और धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े को राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया है. इलैयाराजा संसद के ऊपरी सदन में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करेंगे, अन्य क्रमशः आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करेंगे.
भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर छह साल के लिए साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव वाले लोगों में से 12 सदस्यों को राज्य सभा में मनोनीत करते हैं.
इलैयाराजा का राज्यसभा के लिए मनोनीत होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अप्रैल से ही उनके नाम की अटकलें तेज हो गई थीं, जब संगीतकार ने मोदी पर तैयार एक पुस्तक की प्रस्तावना लिखी थी. इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बी.आर. आंबेडकर में समानताओं का जिक्र किया था. उस समय उनके शब्दों की कई लोगों ने आलोचना भी की थी.
इस तुलना ने उन्हें भाजपा के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का गुस्सा भी दिलाया था.
आंबेडकर एंड मोदी: रिफॉर्मर्स आइडियाज, परफॉर्मर्स इम्प्लीमेंटेशन किताब की प्रस्तावना में, इलैयाराजा ने लिखा: ‘डॉक्टर बीआर आंबेडकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही कठिनाइयों से गुजरे और समाज के सामाजिक रूप से अक्षम वर्गों के लोगों के सामने आने वाली बाधाओं के खिलाफ़ सफल हुए हैं. दोनों ने सामाजिक संरचनाओं को करीब से देखा और उन्हें खत्म करने का काम किया. दोनों व्यावहारिक पुरुष हैं जो केवल विचार अभ्यास के बजाय कार्यवाही में विश्वास करते हैं.’
उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार की ओर से लाए गए तीन तलाक विरोधी कानून जैसे महिला समर्थक कानून और लिंगानुपात बढ़ाने के लिए चलाया गया ऐतिहासिक ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ आंदोलन सामाजिक परिवर्तन लेकर आए हैं. ये कुछ ऐसा है जिस पर डॉ बी.आर. आंबेडकर को गर्व होता.’
जबकि लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता शालिन मारिया लॉरेंस ने दिप्रिंट को बताया कि वह व्यक्तिगत रूप से इस प्रस्तावना से सहमत नहीं थीं. उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि इलैयाराजा भाजपा के समर्थक हैं.
उन्होंने कहा, ‘इलैयाराजा ने हमेशा खुद को गैर-राजनीतिक तौर पर पेश किया है. वह जयललिता (तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक नेता) और कलैग्नर करुणानिधि (पूर्व सीएम और द्रमुक नेता) के साथ मंच पर रहे हैं. लेकिन अगर आप यह कहें कि वह किसी भी पार्टी से जुड़े थे, तो यह सही नहीं होगा.’
उन्होंने आगे बताया, ‘इसी तरह उन्होंने कभी भी भाजपा की विचारधारा या पार्टी के विचारों का समर्थन नहीं किया. वह हमेशा धर्मनिरपेक्ष रहे हैं.’
वास्तव में, उस्ताद की संगीत में रुचि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित राजनीतिक बैठकों में भाग लेने से जगी थी.
इलैयाराजा के संगीत की भाषा
संगीत प्रेमी और प्रशंसक उन्हें प्यार से ‘राजा सर’ कहते हैं. उनका जन्म 1943 में तमिलनाडु के मदुरै जिले के करीब पन्नईपुरम के गांव में हुआ था.
उनके बड़े भाई पावलर वरदराजन एक प्रमुख दलित-कम्युनिस्ट नेता थे. और उन्हीं के जरिए वह छोटी उम्र से ही राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए. जब वे अपने भाइयों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक बैठकों में शामिल हुए तब उनका परिचय संगीत से हुआ था.
मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के लोकगीत और सांस्कृतिक अध्ययन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख टी. धर्मराज ने कहा कि इलैयाराजा राजनीतिक बैठकों में गाया करते थे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उनके बड़े भाई पावलर वरदराजन अपने सभी भाइयों को कम्युनिस्ट पार्टी की बैठकों में प्रदर्शन करने के लिए कई गांवों में साथ लेकर जाते थे. उनकी गायकी लोगों की भीड़ इकट्ठा कर देती थी.’
लॉरेंस ने कहा कि जब उन्होंने राजनीति के बारे में जानना शुरू किया तो उन्हें समझ में आया कि इलैयाराजा का पूरा परिवार राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल है. उन्होंने बताया, ‘वे प्रचार कर रहे थे, संगीत और कविता के जरिए राजनीति में सक्रिय थे. भाइयों ने बहुत प्रगतिशील वामपंथी गीत लिखे हैं.’
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब इलैयाराजा तमिल सिनेमा में काम खोजने के लिए मद्रास गए- उस समय चेन्नई को नाम था – तो उन्होंने कुछ राजनीति को अपने काम में शामिल कर लिया.
इलैयाराजा के 75 वर्ष के होने पर 2018 में द वायर में लिखते हुए शिक्षाविद कार्तिकेयन दामोदरन ने लिखा: ‘इलैयाराजा ने अपने संगीत से एक बड़े वर्ग की अपेक्षाओं को पूरा किया है. उनके सुनने वालों में मजदूर वर्ग और ग्रामीण जनता भी शामिल है. उनका संगीत उनके जीवन के तरीके पर ध्यान देता है और उनकी भावनाओं, इच्छाओं, दुखों, चिंताओं और संघर्षों को अर्थ देता है.’
दामोदरन ने 1989 की फिल्म करगट्टाकरन (नर्तक, जहां करगट्टकम एक तमिल लोक नृत्य है) के पट्टाले पुथी सोनार (गीतों के माध्यम से उन्होंने नैतिकता व्यक्त की) गीत का उल्लेख करते हुए लिखा, ‘एझाइकलम येवल अदिमईगलाई इरुप्पधई पाडा सोनारगल (उन्होंने मुझे गाने के लिए कहा कि कैसे गरीब मेहनती थे और गुलामों के रूप में रह रहे थे) की पंक्तियां इसका उदाहरण हैं.’
लॉरेंस ने उल्लेख किया कि 1980 के दशक के इलैयाराजा के कई गीत कम्युनिस्ट प्रभाव दिखाते हैं. 1983 की फिल्म कान शिवंथल मन शिवक्कुम (अगर आंखें लाल हो जाएं) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मनिधा मनिधा (मानव जाति मानव जाति) गीत में, आप तुरही और ड्रम के साथ एक रूसी ब्रास बैंड संगीत सुन सकते हैं यह वास्तव में स्फूर्तिदायक कम्युनिस्ट गीत है.’
हालांकि, जब उन्होंने फिल्म उद्योग में प्रवेश किया, तो उनके संगीत में कम्युनिस्ट स्वर थे, लॉरेंस ने कहा, ‘उनका दायरा व्यापक था. वह विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि के फिल्म निर्माताओं के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने श्रीरंगम मंदिर में मंदिर की बनाने में योगदान दिया था’
उन्होंने कहा, ‘उनके दिमाग में जो कुछ भी होता था, वह उसका संगीत में ढाल देते थे.’
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सभी के लिए एक संगीतकार
यह पता चला कि जब दिवंगत लेखक के.ए. गुनासेकरन ने 2022 में इसाईमोझियुम इलैयाराजावुम (संगीत की भाषा और इलैयाराजा) लिखा तो संगीतकार नाराज थे. उन्होंने प्रकाशक और लेखक पर मानहानि का मुकदमा किया. हालांकि इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई है.
राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के तुरंत बाद धर्मराज ने कहा, कई राजनीतिक विश्लेषकों ने महसूस किया कि इलैयाराजा को सम्मानित करने से भाजपा को तमिलनाडु में दलित समुदाय के भीतर पैठ बनाने में मदद मिलेगी. संगीतकार स्वयं दलित हैं.
उन्होंने कहा, लेकिन ‘इलैयाराजा के प्रशंसक जाति, पंथ, धार्मिक पृष्ठभूमि से परे हैं.’
धर्मराज भी मानते हैं कि संगीतकार का राज्यसभा नामांकन ‘उनके संगीत के लिए नहीं’ है, बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ भाजपा की ओर से एक ‘राजनीतिक कदम’ है.
उन्होंने आगे बताया, ‘मेरी राय में, उन्हें मान्यता देने का सही तरीका, उनके लोकप्रिय फिल्म संगीत के लिए संगीत विश्वविद्यालय या इलैयाराजा के नाम पर एक शोध केंद्र स्थापित करना होगा. इसमें फिल्म संगीत की अभिलेखीय सामग्री शामिल होनी चाहिए, जहां हर कोई सभी भाषाओं से परे जाकर फिल्म संगीत के इतिहास और उसके विकास तक पहुंच प्राप्त कर सके. केंद्र सरकार को इसे स्थापित करना चाहिए.’
धर्मराज ने आगे कहा: ‘वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो लोक, शास्त्रीय, पश्चिमी और फिल्म संगीत पर एक अधिकार रखते हैं और सबसे बड़ी मान्यता उनके नाम पर एक शोध केंद्र स्थापित करना होगा.’
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