बेंगलुरु, सात अक्टूबर (भाषा) जनता दल (सेक्युलर) के नेता एवं केंद्रीय मंत्री एच डी कुमारस्वामी ने सोमवार को आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया अपने खिलाफ मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूखंड आवंटन मामले में लोगों का ध्यान भटकाने के लिए जाति आधारित जनगणना के मुद्दे को सामने लाकर ‘‘नाटक’’ करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार लोगों को गुमराह करने के लिए अपनी गलतियों को ढकने की कोशिश कर रही है। उन्होंने इस रिपोर्ट की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाया जो करीब 10 साल पहले तैयार की गई थी।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, सिद्धरमैया ने आज पिछड़ा वर्ग समुदायों के मंत्रियों और विधायकों के साथ बैठक की। बताया जाता है कि उन्होंने सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वे रिपोर्ट पर चर्चा की, जिसे ‘‘जाति आधारित जनगणना’’ के रूप में जाना जाता है।
राज्य के गृह मंत्री जी परवेश्वर ने रविवार को कहा था कि सरकार ने कैबिनेट के समक्ष जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट रखने का निर्णय लिया है, जहां इस पर चर्चा की जाएगी और यह फैसला किया जाएगा कि इसे विधानमंडल में रखा जाए या इसे सीधे लोगों के बीच।
कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘(एच) कंथाराजू समिति (जाति आधारित जनगणना के लिए) कब बनी थी? शायद 2014 में बनी थी। दस साल हो गए हैं। जाति आधरित जनगणना करीब दस साल पहले हुई थी। इस अवधि के दौरान कई तरह के विकास और बदलाव हुए हैं….पुरानी जनगणना रिपोर्ट को जारी नहीं किया गया।’’
उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि एक दशक पहले की गई इस जाति आधारित जनगणना से किसी भी समुदाय को कोई लाभ नहीं होगा।
कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘मुझ पर (कांग्रेस द्वारा) आरोप लगाया गया कि मैंने रिपोर्ट जारी नहीं होने दी। सिद्धरमैया को (जयप्रकाश हेगड़े समिति द्वारा) रिपोर्ट सौंपे हुए कितना समय हो गया है? यह संसदीय चुनाव से पहले दी गई थी। अब तक इस पर कोई चर्चा नहीं थी और अब एमयूडीए घोटाले की पृष्ठभूमि में यह सरकार लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है तथा जातिवार जनगणना की आड़ लेकर बचना चाहती है।’’
यह रिपोर्ट 2014-15 में राज्य भर से जुटाये गए आंकड़ों पर आधारित है। इसे समाज के कुछ वर्गों और सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर से भी आपत्तियों के बीच प्रस्तुत किया गया।
कर्नाटक के दो प्रमुख समुदाय — वोक्कालिगा और लिंगायत — इस (जाति आधारित) सर्वेक्षण पर आपत्ति जताते हुए इसे ‘‘अवैज्ञानिक’’ करार दे चुके हैं तथा उनकी मांग है कि इसे खारिज किया जाए और नया सर्वेक्षण कराया जाए।
सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार (2013-2018) ने 2015 में 170 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राज्य में यह सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी. के. हरिप्रसाद के रविवार को कहा था कि जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और लागू किया जाना चाहिए, भले ही इसके कारण सरकार गिर जाए।
उनके इस बयान पर कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘उन्हें (कांग्रेस को) जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर चुनाव में जाने दीजिए। वे विधानसभा भंग करें और इसे लागू करने का वादा करते हुए एक बार फिर चुनाव मैदान में जाएं।’
जद (एस) के प्रदेश अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा की गई गलतियों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने जाति आधारित जनगणना के संबंध में ‘‘नाटक’’ शुरू कर दिया है।
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सुभाष नरेश
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