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Saturday, 2 November, 2024
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‘चतुर राजनेता, भाजपा की कठपुतली’: महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक गतिरोध के केंद्र में क्यों हैं राज्यपाल कोश्यारी

महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के 28 महीने के सत्ता काल में राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच एक छद्म युद्ध देखा गया है. राज्यपाल एक साल से अधिक समय से एमएलसी उम्मीदवारों की सरकार द्वारा पेश की गई सूची दबा कर बैठे हैं.

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मुंबई/देहरादून: ‘एक मजबूत व्यक्तित्व के धनी’ जो ‘राजनीति के बिना नहीं रह सकते’ और ‘हमेशा नियमों के अनुसार चलते हैं – लेकिन साथ ही एक ‘साधारण व्यक्ति’ भी जो ‘आरएसएस के बताये जीवन जीने के तरीके’ का पालन करते हैं. महाराष्ट्र में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ काम करने वाले अधिकारियों और उनके पूर्व राजनीतिक दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), के सदस्यों ने उनके बारे में वर्णन करने के लिए कुछ इसी तरह की बातें की.

दूसरी ओर, उनके आलोचकों, जो ज्यादातर महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के सदस्य थे, ने उन्हें भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ऐसी ‘कठपुतली’ कहा, जो ‘लोकतंत्र की बारीकियों में विश्वास नहीं करते’ और ‘हर फैसले को राजनीतिक चश्मे से ही देखते हैं‘.

महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के 28 महीने के सत्ता काल में राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच एक छद्म युद्ध देखा गया है. राज्यपाल एक साल से अधिक समय से एमएलसी उम्मीदवारों की सरकार द्वारा पेश की गई सूची दबा कर बैठे हैं.

इसी तरह, एमवीए – जिसमें शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल हैं – के नेताओं ने राज्यपाल से विधान सभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख को अंतिम रूप देने का अनुरोध करने हेतु कम-से-कम तीन बार मुलकात की है.

मंगलवार को कोश्यारी ने इस आधार पर विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र में इस चुनाव को कराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है. उनके इस कदम से एमवीए के साथ चल रही खींचतान को और अधिक बल मिलने की आशंका है.

पूर्व में, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का विधान परिषद में नामांकन – जो उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए अति आवश्यक था – लगभग छह महीने तक कोश्यारी के पास लंबित रहा था.

उस वक्त, शिवसेना ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कट्टर समर्थक और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी को ‘भाजपा की कठपुतली’ बताया था.

राज्यपाल और एमवीए सरकार के बीच की दरार इस महीने की शुरुआत में एक बार फिर सामने आई, जब कोश्यारी ने एक मिनट के भीतर राज्य विधायिका को अपना संबोधन समाप्त कर दिया और सदन में अराजकता के बीच वहां से बाहर चले गए.

शिवसेना प्रवक्ता मनीषा कायंडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसी स्थिति महाराष्ट्र में पहले कभी नहीं हुई. महाराष्ट्र में चाहे कोई भी सरकार या राज्यपाल हो, लेकिन ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं हुई.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस लगातार चल रही खींचतान का एक मात्र कारण है कि राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है और भाजपा यहां सत्ता में नहीं आ सकती है – तो फिर एमवीए सरकार को कैसे रोका जाए, सरकार को कैसे नुकसान पहुंचाया जाए? इसी आशय से राज्यपाल को केंद्र की भाजपा सरकार के हाथों कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.‘

एमवीए सरकार में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अतीत में विभिन्न राज्यपालों के साथ हमारे काफी अच्छे संबंध थे, लेकिन ये राज्यपाल हर चीज को राजनीतिक चश्मे से ही देखते हैं.’

दूसरी ओर, भाजपा विधायक राम कदम ने कहा कि राज्यपाल केवल नियमों का पालन कर रहे हैं.

साल 2019 में महाराष्ट्र का राज्यपाल बनने से पहले, कोश्यारी उत्तराखंड भाजपा में एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र थे. वह न केवल उस राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, बल्कि पांच साल तक विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं.

कोश्यारी-एमवीए के बीच की तकरार

राजभवन और एमवीए के बीच चल रही तकरार का पहला संकेत महाराष्ट्र में अक्टूबर 2019 के राज्य विधानसभा चुनाव के बाद के राजनीतिक संकट के दौरान सामने आया था. किसी भी पार्टी द्वारा अपने पक्ष में बहुमत साबित करने में सक्षम नहीं होने के कारण और शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के एक साथ मिलकर गठबंधन बनाने के लिए तेजी के साथ चल रही बातचीत के बीच, वहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया था.

लेकिन, 23 नवंबर, 2019 की तड़के सुबह कोश्यारी ने भाजपा के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जिनके पास एनसीपी के एक छोटे से धड़े का समर्थन था, को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. यह सब तब हुआ था जब पुरे महाराष्ट्र को सुबह जागने के साथ ही अख़बारों में एमवीए सरकार के गठन और इसके द्वारा उद्धव ठाकरे को अगले मुख्यमंत्री के रूप में घोषित किये जाने की खबरे बड़ी-बड़ी सुर्खियों में छपी मिली थी.

इसके पांच दिन बाद – सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कराये जा रहे विश्वास मत से पहले फडणवीस के इस्तीफा देने के बाद – उद्धव ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, और इस पद पर बने रहने के लिए उन्हें मई 2020 से पहले- पहले विधान परिषद में नामित होने की आवश्यकता थी.

हालांकि, उनका नामांकन लगभग छह महीने तक राज्यपाल के पास लंबित रहा. बार-बार अनुरोध किये जाने के बावजूद, राजभवन ने अप्रैल 2020 तक उनके नामांकन को तब तक मंजूरी नहीं दी, जब तक कि उद्धव ने प्रधानमंत्री कार्यालय इस बारे में फोन नहीं किया था.

उसी वर्ष, अक्टूबर में, कोश्यारी और उद्धव के बीच कोविड -19 लॉकडाउन के बाद पूजा स्थलों को फिर से खोले जाने के मुद्दे पर तीखे स्वरों वाले पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था. मंदिरों को खोलने के लिए कहते हुए, राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछा कि क्या वह ‘धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं’? जवाब में उद्धव ने कहा था कि उन्हें अपने हिंदुत्व के लिए कोश्यारी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है.

पहले उद्धृत किये जा चुके एमवीए नेता ने दिप्रिंट को बताया कि कोश्यारी एक ‘कट्टर आरएसएस के आदमी’ है जो ‘लोकतंत्र की बारीकियों में विश्वास नहीं करते ‘ और ‘हर फैसले को एक राजनीतिक चश्मे से देखते हैं ‘.

उन्होंने आगे कहा, ‘यह सरकार को बेवजह परेशान करने के अलावा और कुछ नहीं है.’

विधान पार्षदों के नामांकन पर विवाद, स्पीकर का चुनाव, विवादित टिप्पणी

बारह विधान पार्षदों (एमएलसी) के नामांकन और विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर कोश्यारी और एमवीए के बीच लंबे समय से चल रही तकरार कुछ ज्यादा ही खिंच गयी है.

सरकार ने राज्यपाल कोटे के तहत एमएलसी के रूप में चुने जाने के लिए उनके पास 12 उम्मीदवारों के नाम भेजे थे, लेकिन कोश्यारी ने अभी तक इस पर फैसला नहीं लिया है.

कुछ समय पहले इसी महीने बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल की खिंचाई करते हुए कहा था कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के दो सर्वोच्च पदाधिकारी एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं’.

हालांकि, भाजपा विधायक राम कदम ने कहा कि इसमें राज्यपाल की कोई गलती नहीं है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यदि उन्होंने एक ऐसी सूची दी होती जो कानून और विनियमों (रूल्स एंड रेगुलेशंस) के अनुसार उपयुक्त होती, तो वह उसे जरूर अनुमोदित कर देते. राज्यपाल तो संविधान के अनुसार ही कार्य करेंगें. भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है.’

कदम ने सवाल करते हुए कहा, ‘राज्यपाल बहुत ही सुलभ व्यक्ति हैं और किसी के लिए भी आसानी से उपलब्ध है. और उसके बाद भी उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं – किस वजह से?’

इस बीच, महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का पद पिछले फरवरी से खाली पड़ा है, जब नाना पटोले ने महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यभार संभालने के लिए इस्तीफा दे दिया था. पिछले साल जुलाई में, कोश्यारी ने मुख्यमंत्री ठाकरे को पत्र लिखकर पूछा था कि सरकार ने नए स्पीकर के लिए चुनाव कराने की योजना कब बनाने वाली है?

एमवीए- एक ऐसा गठबंधन जिसमें नए सहयोगी शामिल थे, जिनके बीच काफी सारे मतभेद मौजूद थे – के लिए उस वक्त ऐसी किसी भी चुनाव की संभावना एक अनिश्चित मुद्दे जैसे थी, क्योंकि इसके लिए विधानसभा में तुरंत एक दूसरे शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता थी और वह भी गुप्त मतदान के अतिरिक्त जोखिम के साथ.

पिछले साल दिसंबर में, एमवीए सरकार ने ध्वनि मत, जो एक गुप्त मतदान की तुलना में सरकार के लिए एक सुरक्षित विकल्प है, के माध्यम से यह चुनाव संपन्न कराने के लिए विधानसभा नियमों में संशोधन किया. उसके बाद से ही वह राज्यपाल से इस चुनाव की तारीख तय करने का अनुरोध कर रही है.

हालांकि, तब के बाद से इन संशोधनों को बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है, और राज्यपाल के 15 मार्च के पत्र ने इस काम में और व्यवधान डाल दिया. पत्र में कहा गया है, ‘चूंकि मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख तय नहीं की जा सकती है.’

पिछले महीने कोश्यारी ने उस समय एक और विवाद खड़ा कर दिया जब उन्होंने दावा किया कि समर्थ रामदास, 17 वीं शताब्दी के एक आध्यात्मिक शिक्षक जो महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, छत्रपति शिवाजी के शिक्षक थे. एक अन्य टिप्पणी, जिसमें 19वीं सदी के सामाजिक सुधारकों ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के बाल विवाह का कथित तौर पर मजाक उड़ाया गया था, की भी एमवीए नेताओं द्वारा आलोचना की गई है.

कोश्यारी के साथ काम करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि राज्यपाल अक्सर ‘गंभीर दिखने वाले हास्य’ का प्रयास करते हैं, और उन्हें इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि वे क्या कह रहें हैं, ‘क्योंकि कई बार जबान फिसल सकती है’.

उन्होंने कहा, ‘वह बहुत मजबूत व्यक्तित्व हैं और हमारी सलाह भी नहीं सुनते हैं. वह हमारी बात तो सुनते हैं, लेकिन हमारे सुझावों की अनदेखी कर देते हैं.’ साथ ही उनका कहना था कि उनकी राय में कोश्यारी और एमवीए सरकार के बीच संबंध अब किसी भी तरह के सुधार की सम्भावना से परे जा चुके हैं.

इस अधिकारी ने आगे कहा, ‘वह राजनीति के बिना नहीं रह सकते हैं, और आप उन्हें राजनीति से अलग नहीं कर सकते.’

दिप्रिंट ने राज्यपाल के कार्यालय से इस बारे में जवाब मांगना चाहा मगर उसकी ओर से कहा गया कि वह इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करना चाहता.

‘चतुर राजनेता’, उत्तराखंड में एक ‘शक्ति केंद्र’

भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड भाजपा में भी एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र रहे हैं.

पार्टी की राज्य इकाई ने कोश्यारी और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी, पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी के बीच लम्बे समय तक चली गुटबाजी देखी है. भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ‘आरएसएस के एक कट्टर समर्थक होने के नाते, कोश्यारी को राज्य के संगठनात्मक ढांचे पर अपने दबदबे के रूप में बढ़त मिली हुई थी.’

राजनीतिक विश्लेषक कोश्यारी को एक ‘चतुर’ राजनेता मानते हैं, जिनके विरोधियों को उनकी चाल और कार्रवाइयों के बारे में कभी पता नहीं होता था.

देहरादून में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत ने कहा, ‘यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोश्यारी हमेशा से एक जमीनी नेता रहे हैं, जिनका जनता के बीच भारी दबदबा है, और साथ ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के पास भी पकड़ है. वह भाजपा में एकमात्र नेता हैं जिनके पास पूरे राज्य में जन समर्थन है और जो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के कद की बराबरी कर सकते हैं.‘

कोश्यारी राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री थे और, संयोग से, वह विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले इस राज्य के एकमात्र मौजूदा मुख्यमंत्री भी थे. साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड बनाये जाने के बाद राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को मिली हार के बाद 2002 से 2007 तक वह विपक्ष के नेता भी रहे थे.

बीसी खंडूरी के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2007 से 2009 तक कोश्यारी राज्य भाजपा अध्यक्ष बने. पार्टी सूत्रों ने कहा कि बाद में उन्हें उत्तराखंड की राजनीति से दूर रखने के लिए 2008 में राज्यसभा में चुनकर भेजा गया था.

2014 में, वह लोकसभा के लिए चुने गए, लेकिन 2019 के आम चुनाव में उन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया और फिर अगस्त 2019 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया.

हालांकि, पार्टी के सूत्रों का कहना है कि कोश्यारी अभी भी उत्तराखंड में अपनी धाक रखते हैं और यह सबको पता है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हमेशा से राज्य संगठन की अंदरूनी गुटबाजी में कोश्यारी के वफादार रहे हैं.

साल 2002 में जब कोश्यारी ने उत्तराखंड की अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया था तो धामी उनके सलाहकार और ‘ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी’ थे. राज्य के भाजपा नेताओं ने कहा कि धामी को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले में ‘कोश्यारी का आशीर्वाद’ भी शामिल था.

भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम को निरस्त करवाने के पीछे महाराष्ट्र के राज्यपाल एक महत्वपूर्ण ताकत थे और इसने पार्टी को यह चुनाव जीतने में भी मदद की.’

‘एक सरल व्यक्ति जो आरएसएस की बताई जीवन शैली का अनुसरण करते हैं’

राज्यपाल के साथ काम करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि कोश्यारी अभी भी ‘आरएसएस के बताये जीवन जीने के तरीके’ का अनुसरण करते हैं और एक अत्यंत सरल व्यक्ति हैं.;

उन्होंने कहा, ‘वह रोज सुबह 3 बजे उठ जाते हैं, योग करते हैं और अपनी चाय खुद बनाना पसंद करते हैं. शाम के समय, यदि कोई अन्य कार्यक्रम नहीं हो तो, वह बिना भूले किये बगीचे में टहलना पसंद करते हैं. उन्हें फ़िल्में देखन उतना पसंद नहीं है, लेकिन वह एक उत्साही पाठक है. पढ़ने के अलावा उनका कोई और शौक नहीं है. उन्हें अंग्रेजी साहित्य और नई-नई भाषाएं पढ़ना पसंद है. अपनी पहाड़ी भाषाओं के अलावा, वह हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, बंगाली और यहां तक कि नेपाली भाषा भी जानते हैं.’

अधिकारी ने आगे कहा कि राज्यपाल एक ‘जनता के आदमी’ है, जिन्होंने महाराष्ट्र के 33 जिलों की यात्रा की है.

उन्होंने आगे कहा, ‘उनकी राजनीति को एक तरफ छोड़ दें तो वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो लोगों से प्यार करते हैं, उनकी भावनाओं को समझते हैं और उनका सम्मान करते हैं. उनका एक अनूठा गुण यह है कि वह सभी लोगों को उनके नाम से याद रखते हैं और बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति हैं. उन्होंने गवर्नर हाउस को काफी व्यस्त रखा है. मैंने इस कार्यालय में कई राज्यपालों को काम करते देखा है, लेकिन इस शख्श ने राजभवन को सबसे अधिक व्यस्त रखा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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