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Saturday, 21 December, 2024
होमदेश'100 पन्नों का आदेश चौंकाने वाला' : दिल्ली दंगों के आरोपियों को जमानत देने वाले HC के आदेश की जांच करेगा SC

‘100 पन्नों का आदेश चौंकाने वाला’ : दिल्ली दंगों के आरोपियों को जमानत देने वाले HC के आदेश की जांच करेगा SC

पिंजरा तोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलिता और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को दिए जमानती आदेश में, दिल्ली एचसी ने कहा कि आईपीसी के तहत आने वाले आपराधिक कृत्यों के लिए यूएपीए नहीं लगाया जाना चाहिए.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए को इस तरह से सीमित करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसका पूरे भारत पर असर हो सकता है.

इसी के साथ न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने वाले हाई कोर्ट के फैसलों को देश में अदालतें मिसाल के तौर पर दूसरे मामलों में ऐसी ही राहत के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगी.

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हमारी ‘परेशानी’ यह है कि उच्च न्यायालय ने जमानत के फैसले में पूरे यूएपीए पर चर्चा करते हुए ही ‘100 पन्ने’ लिखे हैं और शीर्ष अदालत को इसकी व्याख्या करनी होगी.

शीर्ष अदालत तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने के उच्च न्यायालय के 15 जून के फैसलों को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपीलों पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गयी है.

न्यायालय ने इन अपील पर जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तनहा को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगे हैं.

‘हाई कोर्ट ने जमानत देते हुए पूरे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) को पलट दिया’

तीनों आरोपियों को जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के फैसलों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि किसी भी अदालत में कोई भी पक्ष इन फैसलों को मिसाल के तौर पर पेश नहीं करेगा. पीठ ने कहा, ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादी (नरवाल, कालिता और तनहा) को जमानत पर रिहा करने पर इस वक्त हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा.’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी कि हाई कोर्ट ने तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देते हुए पूरे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) को पलट दिया है.

इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘यह मुद्दा महत्वपूर्ण है औ इसके पूरे भारत में असर हो सकते हैं. हम नोटिस जारी करना और दूसरे पक्ष को सुनना चाहेंगे. जिस तरीके से कानून की व्याख्या की गई है उस पर संभवत: सुप्रीम कोर्ट को गौर करने की आवश्यकता होगी. इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं.’

छात्र कार्यकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उच्चतम न्यायालय को यूएपीए के असर और व्याख्या पर गौर करना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत से फैसला आए.

न्यायालय ने कहा, ‘कई सवाल हैं जो इसलिए खड़े हुए क्योंकि उच्च न्यायालय में यूएपीए की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी. ये जमानत अर्जियां थी.’ न्यायालय ने इन छात्र कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी किये और कहा कि इस मामले पर 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते पर सुनवाई की जाएगी.

सुनवाई की शुरुआत में मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लेख किया और कहा, ‘पूरे यूएपीए को सिरे से उलट दिया गया है.’ उन्होंने दलील दी कि इन फैसलों के बाद तकनीकी रूप से निचली अदालत को अपने आदेश में ये टिप्पणियां रखनी होगी और मामले में आरोपियों को बरी करना होगा.

दंगे में 53 लोगों की मौत और 700 से अधिक घायल

मेहता ने कहा कि दंगों के दौरान 53 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हो गए. ये दंगे ऐसे समय में हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति और अन्य प्रतिष्ठित लोग यहां आए हुए थे.

उन्होंने कहा, ‘हाई कोर्ट ने व्यापक टिप्पणियां की है. वे जमानत पर बाहर हैं, उन्हें बाहर रहने दीजिए लेकिन कृपया फैसलों पर रोक लगाइए. सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाने के अपने मायने हैं.’

प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में हाई कोर्ट के फैसलों के कुछ पैराग्राफ को पढ़ते हुए मेहता ने कहा, ‘अगर हम इस फैसले पर चले तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला भी प्रदर्शन कर रही थी. कृपया इन आदेशों पर रोक लगाएं.’

सिब्बल ने कहा कि छात्र कार्यकर्ताओं के पास मामले में बहुत दलीलें हैं. पीठ ने अपीलों पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि अगर कोई विरोधी दलील है तो उसे चार हफ्तों के भीतर पेश किया जाए.

हाई कोर्ट ने 15 जून को जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दी थी. हाई कोर्ट ने तीन अलग-अलग फैसलों में छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था.


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