नई दिल्ली: पंजाब के कपूरथला के एक पंजाबी घर में जन्मी शीला दीक्षित देश की राजधानी दिल्ली का दिल तीन बार जीतने में कामयाब रहीं. और लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. भले ही अपने कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित पर घोटालों के कई आरोप लगे हों, इसके बावजूद उन्हें दिल्ली में हुए चौतरफा विकास के लिए लोग हमेशा याद रखेंगे.
शीला दीक्षित की दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल मेंं 20 जुलाई को हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई है. वह 81 वर्ष की थीं. शीला के निधन की खबर के बाद उनकी कांग्रेस पार्टी सहित तमात राजनीतिक दलों में शोक की लहर दौड़ गई. पीएम मोदी समेत तमाम नेताओं ने उन्हें याद करती हुई श्रद्धांजलि दी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें कांग्रेस की बेटी बताया.
दिल्ली के मिरांडा हाउस से पढ़ीं और यहीं की हो गईं
पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को जन्मी शीला ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ाई की थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय उमाशंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से उन्होंने शादी की. विनोद एक आईएसएस अधिकारी थे. विनोद और शीला को दो बच्चे है. एक रेल यात्रा के दौरान विनोद दीक्षित का हार्ट अटैक से निधन हो गया. उनकी बेटी ने मुस्लिम परिवार में शादी की है. बेटे संदीप भी कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के सांसद रहे है.
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उत्तर प्रदेश से राजनीति में रखा कदम और बदल दी दिल्ली
शुरुआती दौर में राजनीति मेंं कदम रखने से पहले शीला दीक्षित कई सामाजिक संस्थानों से जुड़ी रहीं. वे 1984-1989 तक कन्नौज (उत्तरप्रेदश) सीट से सांसद रहीं. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री का दायित्व भी संभाला. वे 1998-2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई विकास कार्य करवाए. इनमें दिल्ली में मेट्रो ट्रेन का प्रोजेक्ट और कई स्थानों को जाम से निजात दिलाने के लिए फ्लाईओवर तक निर्माण करवाना बेहद अहम है. लेकिन कॉमनवेल्थ गेम के दौरान हुए कामकाज के घोटाले के छींटे भी उनके दामन पर पड़े. वहीं 2012 में हुए निर्भया आंदोलन ने भी शीला सरकार को लोगों की नाराजगी झेलना पड़ी. इन्हीं घोटाले और आंदोलन के कारण उनसे दिल्ली का ताज छीन गया. इसके बाद वे 2014 में केरल की राज्यपाल भी बनी.
क्योंकि एक नेता कभी रिटायर नहीं होता
हमेशा से हाईकमान वफादारों में से एक रही शीला दीक्षित को उनके उम्र के 80 पड़ाव पर दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी. प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने पार्टी को जोड़ने का काम किया. इस उम्र में पार्टी का दायित्व संभालने के सवाल पर हमेशा से वह कहा करती थीं कि एक नेता कभी रिटायर नहीं होता. पिछले कुछ दिनों से प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको के साथ उनकी अनबन की खबरें भी आती रही थी.
एक तरफ जहां दिल्ली सहित पूरी कांग्रेस पार्टी अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में कार्यकर्ताओं के साथ दिल्लीवासियों के दिलों पर राज करने वाली शीला दीक्षित का निधन कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है.