चंडीगढ़: मोटर साइकिल पर सवार दो हथियारबंद अज्ञात हमलावरों ने, शुक्रवार सुबह सीमावर्ती तरन तारन ज़िले के भिखविंद में, शौर्य चक्र विजेता बलविंदर सिंह संधू की, उनके निवास पर गोली मारकर हत्या कर दी.
पुलिस के मुताबिक़ 62 वर्षीय संधू की हत्या सुबह 7 बजे, उस स्कूल के बाहर कर दी गई, जिसे वो अपने आवासीय परिसर में चलाते थे. हमलावर घर के बाहर उनका इंतज़ार कर रहे थे, और उन्होंने पास से गोली चलाई. संधू को फौरन अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. अपराध की सीसीटीवी फुटेज ज़ब्त कर ली गई है.
फिरोज़पुर रेंज के उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) हरदियाल सिंह मान ने कहा, कि पुलिस हत्या के तमाम पहलुओं की जांच कर रही है, जिसमें निजी रंजिश भी शामिल है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम इस केस को जल्द सुलझा लेंगे’.
संधू और उनके भाई रंजीत सिंह, और उनकी पत्नियां जगदीश कौर व बलराज कौर को, 80 और 90 के शुरूआती दशक में, पंजाब में उग्रवाद के खिलाफ़ सशस्त्र संघर्ष के लिए, 1993 में शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. उसी समय से ये असैनिक परिवार, उग्रवादियों की हिट लिस्ट पर रहा है.
संधू के परिवार ने आरोप लगाया कि इस साल के शुरू में, उनकी सुरक्षा वापस ले ली गई थी, और उनके साथ पुलिस फिर से तैनात कराने के लिए, वो पंजाब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिपांकर गुप्ता से संपर्क करने की लगातार कोशिश कर रहे थे.
वारदात के बाद उनकी विधवा जगदीश कौर ने पत्रकारों से कहा, ‘लेकिन किसी ने परवाह नहीं की. सिर्फ एक आदमी उनके साथ लगाया गया था, और वो भी हफ्तों तक ग़ायब रहता था’.
संधू का बेटा अमृतसर में खालसा कॉलेज की छात्र इकाई का पदाधिकारी है, और पुलिस इस एंगल से भी जांच कर रही है, कि कहीं ये छात्र राजनीति का परिणाम तो नहीं है.
संधू को भिखविंद में कामरेड बलविंदर सिंह के नाम से जाना जाता था. वो और उनकी पत्नी जगदीश कौर, सीपीआई(एम) कार्यकर्ता थे.
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शौर्य चक्र
पंजाब में उग्रवाद का मुक़ाबला करने वाले, इस परिवार को मिले शौर्य चक्र के उल्लेख में, इसके ऊपर हुए हमलों की संख्या का ज़िक्र किया गया है
उल्लेख में कहा गया है, ‘श्री बलविंदर सिंह संधू और उनके भाई रंजीत सिंह संधू, आतंकवादियों की गतिविधियों के ख़िलाफ हैं. ज़ाहिर है कि वो आतंकवादियों की हिट लिस्ट में हैं. 11 महीने के भीतर आतंकवादी संधू परिवार का सफाया करने की 16 कोशिशें कर चुके हैं. आतंकवादियों ने 10 से 200 तक के समूहों में उनपर हमला किया, लेकिन हर बार संधू बंधु अपनी बहादुर पत्नियों- श्रीमती जगदीश कौर और श्रीमती बलराज कौर संधू की मदद से, उन्हें मारने की उग्रवादियों की कोशिशों को विफल करने में कामयाब रहे’.
‘संधू परिवार पर पहला हमला 31 जनवरी 1990 को, और आख़िरी हमला 28 दिसंबर 1991 को हुआ. लेकिन सबसे ख़तरनाक हमला 30 सितंबर 1990 को हुआ था. उस दिन क़रीब 200 आतंकवादियों ने, संधू के घर को चारों और से घेर लिया था, और रॉकेट लॉन्चर समेत घातक हथियारों से, लगातार 5 घंटे तक हमला करते रहे. हमला बहुत सुनियोजित था और भूमिगत बंदूक़ी खानें बिछाकर, घर का रास्ता रोक दिया गया था, जिससे कि पुलिस बलों की कोई मदद, उन तक न पहुंच पाए.
उल्लेख में आगे कहा गया, ‘बिना डरे, संधू बंधुओं और उनकी पत्नियों ने, अपनी पिस्तौलों और स्टेन गन्स से आतंकवादियों का मुक़ाबला किया, जो उन्हें सरकार की ओर से दी गईं थीं. संधू भाइयों और उनके परिवार के सदस्यों के भारी विरोध ने, आतंकवादियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. आतंकी हमले का सामने करने, और बार बार हत्या की कोशिशों को नाकाम करने में, इन सभी लोगों ने ऊंचे दर्जे की हिम्मत, और बहादुरी का प्रदर्शन किया’.
उस घटना के बाद से बलविंदर सिंह ने अपने घर को लगभग एक क़िले में तब्दील कर लिया था.
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