नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत द्वारा कांग्रेस सांसद शशि थरूर को उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर को आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता के आरोपों से मुक्त करने के एक साल बाद इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. यह चुनौती दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई है.
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने दिल्ली पुलिस के उस आवेदन पर नोटिस जारी किया है जिसमें अदालत से संपर्क करने में ‘विलंब से माफी’ की मांग की गई थी. मामले की अगली सुनवाई अगले साल 7 फरवरी को होगी.
यदि न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका या अपील समय सीमा के अंदर नहीं दायर की जाती है तो माफी और देरी को नजरअंदाज करने के लिए आवेदन दायर किया जाता है. अर्जी में मांग की गई है कि याचिका देर से दायर होने के बावजूद सुनवाई की जाए और देरी को माफ किया जाए.
सुनंदा पुष्कर 2010 में थरूर से शादी करने के पहले दुबई में व्यवसायी थी. वो 17 जनवरी 2014 को दिल्ली के एक लग्जरी होटल में मृत पाई गई थी.
पुलिस ने 2105 में इसके लिए हत्या का मामला दर्ज किया था और थरूर पर मई 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (एक महिला के पति या पति के रिश्तेदार के साथ क्रूरता) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) का आरोप लगाया था.
हालांकि तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को पिछले साल अगस्त में विशेष न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने इस मामले में आरोप मुक्त कर दिया था.
गुरुवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने कहा कि याचिका डिस्चार्ज के करीब 15 महीने बाद दायर की गई है. उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि याचिका की प्रति उन्हें नहीं दी गई है.
पाहवा ने तब मामले में जारी आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि थरूर को ‘मीडिया ट्रायल’ से बचाने के लिए इससे संबंधित दस्तावेजों को मामले में शामिल पक्षों के अलावा किसी अन्य के साथ साझा नहीं किया जाना चाहिए.
उच्च न्यायालय ने सवाल किया कि यह कैसे किया सकता है क्योंकि ये सार्वजनिक दस्तावेज हैं. इसमें दिल्ली पुलिस की दलीलों पर ध्यान दिया गया कि पुलिस इस विवाद पर आपत्ति नहीं करना चाहती थी कि याचिका और दस्तावेजों की प्रति किसी व्यक्ति को नहीं दी जाएगी जो मामले के पक्षकार नहीं है.
‘बड़ा आरोप नहीं, सबूत की कमी’
2021 से डिस्चार्ज आदेश में न्यायाधीश गोयल ने पाया था कि प्रथम दृष्टया से ऐसा कुछ नहीं पता चलता है कि थरूर ने पुष्कर के साथ क्रूरता की थी.
आदेश में कहा गया था, ‘अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्त ने कभी भी कोई ऐसा काम किया था जो सामान्य परिस्थितियों में मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करें.’
न्यायाधीश ने कहा था, ‘निःसंदेह एक अनमोल जीवन खो गया. लेकिन आरोपों और अपराध को साबित करने वाली सामग्री के अभाव में अदालत इस स्तर पर मान सकती है कि अभियुक्त ने अपराध किया था, आरोपी को एक कठोर मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.’
इसके बाद थरूर ने बयान जारी कर कहा था कि उनका भारतीय न्यायपालिका में विश्वास सही साबित हुआ और आखिरकार न्याय हुआ.
उन्होंने कहा था, ‘मैंने भारतीय न्यायपालिका में अपने विश्वास के आधार पर दर्जनों निराधार आरोपों और मीडिया की तिरस्कार को धैर्यपूर्वक सहा है, जो आज सही साबित हुआ है. हमारी न्याय प्रणाली में प्रक्रिया अक्सर सजा होती है. आखिरकार सच्चाई यह है कि न्याय हुआ है. हम सभी परिवार को सुनंदा के लिए शांति के लिए प्रार्थना करने की अनुमति देगा.’
(अनुवाद: ऋषभ राज)
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