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Sunday, 24 November, 2024
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दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया- शांतनु मुलुक ने अफवाह फैलाने के इरादे से किसानों पर टूलकिट बनाया

दिल्ली पुलिस का दावा है कि मुलुक, जो कि देशद्रोह और अन्य आरोपों के मामले में जमानत पर है, की ‘भारत के खिलाफ असंतोष भड़काने की एक बड़ी इंटर-कांटिनेंटल साजिश’ को रचने और उस पर अमल करने में सीधी भूमिका थी.

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नई दिल्ली: ‘पुलिस आंसू गैस, डंडों और वाटर कैनन का इस्तेमाल करके शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बना रही है. सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं, कई लापता हैं और कथित तौर पर मारे गए हैं.’

‘लोगों को भूखा मार देने की कोशिश में पुलिस ने खाद्य पदार्थों और ताजे पानी की आपूर्ति रोक दी है @IndianFarmers_ @UNHumanRights क्या आप देख रहे हैं?’

ये कुछ ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट टेम्प्लेट थे जिनके बारे में दिल्ली पुलिस का कहना है कि किसानों के आंदोलन पर एक कम्युनिकेशन पैकेज (कॉम्मसपैक) या टूलकिट का हिस्सा है, जिन्हें कथित तौर पर एक्टिविस्ट शांतनु मुलुक ने डिजाइन किया था. उन्हें टूलकिट तैयार करने के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.

दिल्ली पुलिस का दावा है कि टूलकिट का इस्तेमाल भारत के खिलाफ असंतोष भड़काने के लिए किया गया था. मुलुक पर देशद्रोह, विभिन्न समुदायों के बीच नफरत फैलाने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप हैं.

दिल्ली पुलिस ने उनकी नियमित जमानत की याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट में पेश किए गए एक हलफनामे में कहा है कि ये रेडीमेड टेम्पलेट्स ‘हिंसा और अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होने की वजह बनीं झूठी अफवाहों को फैलाने में एक प्रमुख हथियार बने.’

पुलिस ने 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी में हुई घटना, जब लाल किले और अन्य स्थानों पर प्रदर्शन हिंसक हो गया और पूर्वोत्तर दिल्ली में 2020 में दंगों के बीच समानताएं भी बताईं. उसने सोशल मीडिया के जरिये फैलने वाली झूठी अफवाहों के असर और उसके कारण होने वाली सांप्रदायिक और भीड़ हिंसा को उजागर करने के लिए ‘कुछ प्रभावशाली अध्ययनों’ का भी सहारा लिया.

पुलिस ने मंगलवार को अपना जवाब अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा की कोर्ट में पेश किया, जो मुलुक की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं.

मंगलवार को जज ने मुलुक की गिरफ्तारी पर लगी रोक 15 मार्च को उनकी याचिका पर होने वाली अगली सुनवाई तक बढ़ा दी. एक्टिविस्ट बाम्बे हाई कोर्ट के 17 फरवरी के आदेश के बाद से इस मामले में अग्रिम जमानत पर है.

इसी से जुड़े एक अन्य मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राणा ने 23 फरवरी को पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को रिहा कर दिया था, जिसे इसी टूलकिट को कथित तौर पर संपादित करने के कारण बेंगलुरू से गिरफ्तार किया गया था.

दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि के मामले की तरह ही मुलुक की जमानत का विरोध भी इस आधार पर किया कि टूलकिट का एक लिंक वेबसाइट ‘जेनोसाइडवॉच.ओआरजी’ से था, जो कथित तौर पर भारत के खिलाफ नफरत और मानहानि को बढ़ावा देता है.

हालांकि, रवि के खिलाफ ये सबूत खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा था कि पोर्टल पर अपलोड की गई उक्त सामग्री ‘गलत या आक्रामक हो सकती है’ लेकिन देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आती है.


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दिल्ली पुलिस का क्या दावा है

मुलुक के खिलाफ आरोपों पर दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में दावा किया कि भारत के खिलाफ असंतोष भड़काने और भारतीयों, एनआरआई और अन्य लोगों के बीच देश की छवि खराब करने की एक बड़ी इंटर-कॉन्टीनेंटल साजिश को रचने, उसे अंतिम रूप देने और उस पर अमल करने में उनकी सीधी भूमिका रही है.

पुलिस का कहना है कि इसी साजिश के तहत मुलुक ने पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ मिलकर गणतंत्र दिवस पर केंद्रित कई कार्य किए जाने की पूरी तैयारी की.

मुलुक ने इसके लिए ऑटोमेटेड रेडी-टू-पोस्ट टेम्पलेट के साथ टूलकिट तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई जिसे लाखों लोगों ने साझा किया और इसे सिंगल क्लिक पर एक्टीवेट किया जा सकता था. इन टेम्प्लेट को ‘बिजली जैसी तेज गति से हर जगह फैलाया जा सकता है, वस्तुतः इसका मुकाबला करने या रिबूट करने का कोई मौका नहीं दिया गया.’

हलफनामे में इस बात पर जोर दिया गया कि टेम्प्लेट की सामग्री तथ्यात्मक रूप से गलत थी और इस प्रकार इससे झूठी अफवाह फैलाई गई. हैशटैग को इसके साथ ही एम्बेडेड किया गया था, ‘ताकि वो नजर में आए और उन्हें निर्धारित ऑडियंस तक पहुंचाया जा सके.’

पुलिस ने कहा कि एक विश्लेषण से पता चला कि झूठी खबरों वाले इन टेम्पलेट्स का इस्तेमाल पहले से ही उस तनावपूर्ण माहौल में अफवाहों से जुड़ी पोस्ट करने और उन्हें फैलाने के लिए किया गया था, जब बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली में भाग लेने के लिए राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर जुटे हुए थे.


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‘झूठी और सच्ची अफवाहों’ का असर

कई सोशल मीडिया रिसर्च का हवाला देते हुए हलफनामे में ‘झूठी अफवाहों’ के असर की व्याख्या की गई, जिसमें कहा गया है कि इनका खुलासा होने में लगभग 14 घंटे लगते हैं जबकि ‘सच्ची अफवाह’ का खुलासा दो घंटे में ही हो जाता है.

हलफनामे में कहा गया है कि झूठी अफवाहों के पब्लिश होने और इसका तार्किक ढंग से खंडन होने जाने के बीच 13 घंटे का अंतराल रहता है.

अपनी बात को जोरदारी से स्पष्ट करने के लिए पुलिस ने उन ट्वीट्स की एक सीरिज का उल्लेख किया, जो 1 मार्च 2020 को पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों के बाद सामने आई थी, जिसमें हिंसा और कई जानें जाने को लेकर झूठी खबरें थीं. ये एक घंटे के अंदर ही पश्चिमी, उत्तर-पश्चिमी, दक्षिण-पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के एक बड़े इलाके में कानून-व्यवस्था से जुड़ी बड़ी चुनौती बन गई थीं.

हलफनामे में बताया गया कि इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार जल्दी बंद हो गए, लोगों में भय का माहौल बन गया, कॉलोनियों के गेट बंद कर दिए गए और कई जगह ‘काल्पनिक भीड़ हिंसा’ से निपटने के नाम पर चौकसी के लिए स्थानीय लोग लाठी-डंडे लेकर सड़कों पर आ गए.’

हलफनामे के मुताबिक, ‘मूल झूठी अफवाह के साथ दंगों और हिंसा से जुड़ी कई अन्य अफवाहें फैल गईं, जिससे और ज्यादा घबराहट, चिंता और सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया.’

पुलिस ने दावा किया कि हर रैंक के स्तर पर पुलिस की तरफ से तत्काल उठाए गए ठोस कदमों के कारण झूठी अफवाहों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया गया और रात तक स्थिति को सामान्य बनाया जा सका.

पुलिस ने जज से आग्रह किया कि टूलकिट में प्रस्तावित टाइमलाइन और ‘फिजिकल एक्शन के साथ ही ट्वीट स्टॉर्म और डिजिटल हमले और झूठी अफवाहों की बमबारी’ को हलफनामे में उद्धृत शोध निष्कर्षों के संदर्भ में देखें.

पुलिस के मुताबिक, ‘अगर एक साधारण सोशल मीडिया पोस्ट को अलग से देखा जाए तो सब कुछ सहज लग सकता है लेकिन जब एक ही झूठी अफवाह को बार-बार साझा करके जटिल, पुख्ता और सही साबित किया जाने लगता है तो यह एक टिंडर बॉक्स की तरह हो जाती है, जिसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है और बड़े पैमाने पर हिंसा फैल सकती है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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