बडगाम: बडगाम के शेखपोरा पंडित कॉलोनी में 44 साल के फार्मासिस्ट दरवाजे पर खड़े अपने दोस्त का इंतजार कर रहे हैं. वह घर से बाहर नहीं जाते हैं, अपने काम पर भी नहीं, क्योंकि लक्षित हत्याओं का अगला शिकार बनने का डर, उन्हें घर से बाहर कदम रखने से डरा रहा है.
मध्य कश्मीर के बडगाम में शेखपोरा पंडित कॉलोनी के प्रेसिडेंट ने दिप्रिंट को बताया कि कॉलोनी में 2,500 कश्मीरी पंडित रहते हैं. उन सभी की स्थिति भी ठीक ऐसी ही है.
48 साल के कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट की शोपियां जिले में हत्या को दो दिन हो चुके हैं. फार्मासिस्ट के मुताबिक, ‘गोली का डर’ कश्मीर में रहने वाले लोगों के मन में घर कर चुका है.
वह केंद्र सरकार से भी खफा हैं. वजह? इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक रैली के लिए बारामूला का दौरा किया. लेकिन उन्होंने कश्मीरी पंडितों की घाटी से स्थानांतरित की मांग का जिक्र तक नहीं किया. इसके बजाय शाह का फोकस पहाड़ी, बकरवालों और गुर्जरों पर रहा..
फार्मासिस्ट ने बाकी लोगों की तरह प्रतिशोध के डर से अपनी पहचान छिपाने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘हम सिर्फ शोपीस हैं, जिसे सरकार घाटी में सामान्य स्थिति दिखाने के लिए दुनिया के सामने पेश करती है. और इससे ज्यादा कुछ नहीं. अगर ऐसा नहीं होता तो क्या गृह मंत्री हमारा जिक्र नहीं करते?’
कॉलोनी में रहने वाले बाकी लोगों के साथ-साथ घाटी में रहने वाले सभी कश्मीरी पंडितों के लिए पिछले कुछ महीने गहरे डर के साये में गुजरे हैं. असुरक्षा की यह भावना शनिवार को पूरन कृष्ण भट की हत्या के बाद और मजबूत हो गई.
फार्मासिस्ट ने कहा, ‘कल, हम भी एक गोली से मर जाएंगे और एक अज्ञात बंदूकधारी को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा.’
इस साल कश्मीरी पंडितों की ये छठी लक्षित हत्या थी. मारे गए लोगों में एक स्कूल शिक्षक और एक सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं. जबकि हाल ही में भट को उनके सेब के बाग के रास्ते में गोली मार दी गई थी.
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‘क्या हमें अपने घरों में कैद कर देना समाधान है?’
शेखपोरा पंडित कॉलोनी में सुरक्षा काफी कड़ी है. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, स्थानीय पुलिस और परिसर के ठीक बाहर एक पुलिस नियंत्रण कक्ष वैन खड़ी है.
इलाके के निवासियों ने कहा, लेकिन ‘(हमें])अंदर घरों में बंद करना कोई समाधान नहीं है.’
एक इंजीनियर ने दिप्रिंट से सवाल किया, ‘(जब तक) हम अपने घरों के अंदर बैठे हैं, सब ठीक है. जैसे ही हम बाहर निकलते हैं, हत्याएं शुरू हो जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे शोपियां में हुई. क्या हम सभी को हमारे घरों में बंद करना एक समाधान है?’
एक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय के 45 वर्षीय शिक्षक ने कहा कि हमले शुरू होने के बाद से उन्हें अकेले बाहर निकलने से डर लगता है. वह ‘किराने की दुकान तक’ जाने के लिए दो लोगों को साथ लेकर जाते हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम इसी तरह के डर के साये में जी रहे हैं. हम टारगेट करना आसान हैं क्योंकि हम हर दिन अपने ऑफिस जाने के लिए एक ही रास्ता अपनाते हैं.’
‘हमें बिना सुरक्षा दिए, ऑफिस आने के लिए कहा गया है’
कई लोगों के लिए अब एक और चिंता है- काम पर न जाने पर सैलरी का कटना.
इस साल मई में हमले शुरू होने के बाद से सरकारी नौकरी करने वाले कई कश्मीरी पंडित घर पर रूके हुए थे. सरकार ने उन्हें उनका पूरा वेतन देने की बात कही थी.
लेकिन अब उन्हें फिर से काम पर वापिस आने के लिए कहा गया है. ऐसा न करने पर उनका वेतन काट लिया जाएगा.
इस अल्टीमेटम के बाद से वो चिंता में हैं. क्योंकि पहले हुए ज्यादातर हमले ऑफिस में ही किए गए थे.
सरकारी स्कूल के शिक्षक ने कहा, ‘हमने देखा है कि आतंकवादियों ने सिर्फ लोगों पर उनके कार्यस्थलों पर हमला किया है. स्कूल के अंदर एक शिक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी गई. एक बैंक कर्मचारी पर उसके ऑफिस में हमला किया गया. बडगाम में तहसीलदार कार्यालय में कार्यरत एक सरकारी कर्मचारी राहुल भट पर भी उनके कार्यालय के अंदर हमला किया गया. हम काम फिर से कैसे शुरू कर सकते हैं?’
पहले उद्धृत फार्मासिस्ट ने भी उनकी इस बात पर सहमति दी.
उन्होंने पूछा, ‘सरकार अब हमें ऑफिस आने के लिए कह रही है, लेकिन हमारी सुरक्षा का क्या? हम उनका अगला निशाना हो सकते हैं, यह जानते हुए भी क्या हम बाहर निकल सकते हैं? जब हमने प्रशासन से ऑफिस में सुरक्षा देने करने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि वे इसके बारे में बाद में सोचेंगे. पहले हम ऑफिस आना तो शुरू करें. वे किस इंतज़ार में हैं? हमारे मरने के बाद वे इसके बारे में सोचेंगे?’ वह आगे कहते हैं, ‘ ऐसा लगता है जैसे वो हमसे कह रहे हैं कि ‘ पहले कुत्ते की मौत मरो, फिर देखेंगे सुरक्षा का क्या करना है’
निवासियों ने कहा कि कश्मीरी पंडित स्थिति बेहतर होने तक जम्मू में स्थानांतरित किए जाने के लिए कह रहे हैं, लेकिन अब हमारी मांग को अनसुना किया जा रहा है.
इंजीनियर ने कहा, ‘क्या हमें डर से अपने घरों के अंदर बैठना अच्छा लगता हैं? हमने उनसे कई बार कहा है कि हमें जम्मू स्थानांतरित कर दें. हम आसानी से वहां जा सकते हैं और काम फिर से शुरू कर सकते हैं. और जब कश्मीर में स्थिति सामान्य हो जाएगी और आतंकवाद खत्म हो जाएगा, तो हम वापस आ जाएंगे.’
लेकिन कई लोगों के लिए घर छोड़कर जाना भी कोई समाधान नहीं है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके बच्चे 10वीं और 12वीं क्लास में पढ़ रहे हैं. ऐसे माता-पिता ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार के स्कूल उनके बच्चों का ट्रांसफर करने के लिए तैयार नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘कई बार एप्लीकेशन (ट्रांसफर के लिए) भेजी हैं. लेकिन हर बार इनकार कर दिया गया’ स्कूल के शिक्षक ने दिप्रिंट को बताया. ‘हमें इस सुरक्षित आवास परिसर में रखने से उन्हें क्या मिलेगा? वे हमें यहां क्यों रखना चाहते हैं? सिर्फ यह दिखाने के लिए कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य है जबकि ऐसा नहीं है.’
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