नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपनी सात साल की बेटी का यौन उत्पीड़न करने वाले डॉक्टर पिता की सजा निलंबित करने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि शराब पीने के बाद आदमी हैवान बन जाता है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि डॉक्टर को निचली अदालत ने दोषी ठहराया है और वह उसे कोई राहत देने के पक्ष में नहीं है।
पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘‘देखिए, उसने बच्ची के साथ किस तरह की हरकत की है। आप किसी राहत के हकदार नहीं हैं। बच्ची ने आपके मुवक्किल के खिलाफ बयान दिए हैं। वह एक विकृत व्यक्ति है, वह इसका हकदार नहीं कि उसकी सजा निलंबित की जाए। वह नशे में था।’’
पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘आप अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं कर सकते। वह पिता के खिलाफ गवाही क्यों देगी। वह एक छोटी बच्ची है, जिसने जिरह का सामना किया है। शराब पीने के बाद आदमी हैवान बन जाता है। हमें यह नहीं कहना चाहिए, लेकिन हम सबसे उदार पीठ हैं। अगर हम जमानत नहीं दे रहे हैं, तो इसके पीछे कारण हैं।’’
चिकित्सक ने शराब के नशे में यौन उत्पीड़न किया था।
चिकित्सक की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि बेटी को गवाही के लिए सिखाया गया था।
वकील ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 12 लाख से अधिक मामले लंबित हैं, इसलिए दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर जल्द सुनवाई नहीं होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सजा निलंबित किये जाने का आधार नहीं हो सकता। इसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली और मामले को वापस लिया मानकर खारिज कर दिया गया।
प्राथमिकी में पीड़िता की मां ने अपने पति पर बेटी का यौन शोषण करने का आरोप लगाया था। पीड़िता की मां ने कहा था कि वह वाराणसी में रहती है, जबकि उसका पति उससे अलग होकर हल्द्वानी में रहता है, जहां वह एक नर्सिंग होम चलाता है।
पीड़िता की मां ने कहा कि 23 मार्च, 2018 को चिकित्सक अपनी बेटी को अपने साथ हल्द्वानी ले गया और 30 मार्च को अपनी पत्नी को फोन करके उसे वापस ले जाने के लिए कहा। पीड़िता की मां ने कहा कि बाद में, लड़की ने अपनी मां को बताया कि उसका पिता एक बुरा व्यक्ति है और उसने उसे गलत तरीके से छुआ।
भाषा अमित नरेश
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