जयगांव (भारत-भूटान सीमा): हिमालय की गोद में बसे भारत के पड़ोसी देश भूटान ने कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने में सक्रियता दिखाते हुए जो कामयाबी हासिल की है वह दूसरों के लिए मिसाल बन रही है. कोरोना के संदर्भ में दक्षिण कोरिया मॉडल की तो काफी चर्चा हो रही है. लेकिन इस पड़ोसी देश का कहीं जिक्र नहीं हो रहा है. यह रिपोर्ट लिखे जाने तक इस देश में कोरोना के महज पांच मरीज सामने आए थे. उनमें दो अमेरिकी नागरिक शामिल हैं. बाकी तीन विदेश से आने वाले भूटानी नागरिक हैं. लेकिन इस संक्रमण के चलते अब तक एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांग्चुक ने रविवार को खुद देश के कई क्वारंटीन केंद्रों का दौरा कर सुविधाओं का जायजा लिया और स्वास्थ्यकर्मियों का उत्साह बढाया.
पश्चिम बंगाल के अलीपुरदुआर जिले में भारतीय कस्बे जयगांव से सटे प्रमुख भूटानी शहर फुंत्सोलिंग के बाजारों में न तो भीड़ नजर आती है और न ही दुकानों पर लोगों की लंबी कतारें. वहां आम जनजीवन एकदम सामान्य है. लोगों में कोरोना की वजह से कोई आतंक नहीं है. भूटान गेट के दूसरी ओर बसे भारतीय कस्बे जयगांव में यह तस्वीर एकदम उलट है.
दुनिया के विकसित देशों में जब अभी लॉकडाउन और लोगों की आवाजाही रोकने के मुद्दे पर ऊहापोह की स्थिति थी तब भूटान ने पहले मरीज की पुष्टि होने के बाद ही विदेशी पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए. भूटान की एकमात्र हवाई सेवा भी तत्काल बंद कर दी गई थी और सैकड़ों विदेशियों को एयरपोर्ट पर उतरने के फौरन बाद सड़क मार्ग से लौटा दिया गया था. यही वजह है कि इस देश में कोरोना का संक्रमण स्थिर है. सरकार ने अब यहां क्वारंटीन का समय भी 14 से बढ़ा कर 21 दिनों का कर दिया है. देश का पहला मरीज एक अमेरिकी पर्यटक था जिसे क्वारंटीन की अवधि पूरी होने के बाद अमेरिका भेज दिया गया है. दूसरी मरीज भी उसकी महिला मित्र थी.
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भूटान भारत औऱ दूसरे एशियाई देशों में रहने वाले अपने नागरिकों को विशेष विमानों से बुला कर उनको अपने खर्च पर क्वारंटीन में रख रहा है. फिलहाल सरकार ने ऐसे लगभग 3200 नागरिकों को क्वारंटीन में रखा है. भूटान की संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष दोर्जी वांग्दी कहते हैं, ‘सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के मुताबिक विदेशों से आने वाले नागरिकों को सरकारी खर्च पर क्वारंटीन केंद्रों में रख रही है. घर में क्वारंटीन या आइसोलेशन उतना असरदार नहीं है और उसकी निगरानी मुश्किल है. इसके अलावा घर में क्वारंटीन से कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.’
सरकार ने कई तीन सितारा होटलों और गेस्ट हाउसों को क्वारंटीन केंद्र बना दिया है और वहां अपने नागरिकों के रहने-खाने पर रोजाना औसतन एक हजार नोंग्त्रुम यानी भूटानी मुद्रा खर्च कर रही है. यानी प्रति व्यक्ति चौदह हजार, उन 14 दिनों के लॉकडाउन में. भूटानी मुद्रा की कीमत भारतीय रुपए के बराबर ही होती है. इसके लिए उसने बजट के दूसरे मद में कटौती कर धन जुटाया है. कई भूटानी नागरिक भी स्वेच्छा से या तो क्वारंटीन पर होने वाला खर्च उठा रहे हैं या फिर सरकारी राहत कोष में दान दे रहे हैं.
सरकार ने मार्च के आखिरी सप्ताह में अपनी तमाम अंतरराष्ट्रीय सीमाएं सील कर दी थीं. हालांकि भूटानी नागरिकों की वापसी का रास्ता खुला हुआ है. लेकिन शर्त यह है कि उनको सीमा पर स्क्रीनिंग से गुजरना होगा और देश में पहुंचते ही सरकारी खर्च पर दो सप्ताह तक क्वारंटीन केंद्रों में रहना होगा. इस देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा 699 किलोमीटर लंबी है. इसका 267 किमी हिस्सा असम, 217 किमी अरुणाचल प्रदेश, 183 किमी पश्चिम बंगाल और 32 किमी सिक्किम से सटा है. भूटान की संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष दोर्जी वांग्दी दावा करते हैं, ‘विदेशों से लौटने वाले भूटानी नागरिकों के लिए क्वारंटीन में रहना अनिवार्य बना कर सरकार को अब तक कोरोना के खतरे पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिली है.’
स्वास्थ्य मंत्री डेचेन वांग्मो बताते हैं, ‘सरकार ने विदशों में प्रशिक्षण या उच्च शिक्षा के लिए गए अपने 48 डाक्टरों को मार्च के आखिरी सप्ताह में ही वापस बुला लिया. उनको फिलहाल क्वारंटीन केंद्रों में रखा गया है.’ विदेश मंत्री डा. टांदी दोर्जी ने कहा है कि सरकार भारत में रहने वाले बाकी भूटानियों को भी शीघ्र बुलाने का इंतजाम करेगी. बीते सप्ताह एक हजार से ज्यादा लोग विशेष विमानों के जरिए सिंगापुर और कुछ अन्य देशों से देश के एकमात्र एयरपोर्ट पारो पहुंचे थे. पारो के सहायक जिला स्वास्थ्य अधिकारी कर्मा चेंडुप बताते हैं कि विदेशों से यहां पहुंचने वाले ज्यादातर लोगों की जांच के नमूने अब तक निगेटिव ही रहे हैं. एक युवती समेत तीन लोगों में ही कोरोना के लक्षण मिले हैं.
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भूटान के प्रधानमंत्री डा. लोटे शेरिंग ने अपने देश के नागरिकों को भरोसा दिया है कि पड़ोसी भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन से उनको घबड़ाने या आतंकित होने की जरूरत नहीं है. देश में सबके लिए कम से कम दो महीने के खाद्यान्न का भंडार है. यहां इस बात का जिक्र किया जा सकता है कि भूटान खाद्यन्नों की सप्लाई के लिए पूरी तरह भारत पर ही निर्भर है.
इंग्लैंड से लौटी छात्रा में क्वारंटीन केंद्र में एक सप्ताह रहने के बाद कोरोना के लक्षण सामने आए थे. अब ठीक होकर घऱ लौटने के बाद उसने अपने अनुभव और क्वारंटीन केंद्र में मिली सुविधा पर सरकारी अखबार कुनसेल में एक लंबा पत्र लिखा है.
सरकार के ताजा उपायों से एक बार फिर साबित हो गया है कि भूटान अगर राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक में दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है तो ऐसा बेवजह नहीं है. वह राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक अपनाने वाला दुनिया का पहला देश है. वह अपने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में नागरिकों की प्रसन्नता का स्तर भी मापता है. इस देश की सोच यह है कि विकास दर के आंकड़ें विकास के हर पहलू की ठोस औऱ विस्तृत तस्वीर नहीं पेश कर पाते. इसी वजह से वहां जीडीपी के दूसरे मानकों को अपनाने का विचार पनपा. इस सिलसिले में भूटान ने सबसे पहले ठोस पहल की. वर्ष 1972 में भूटान के तत्कालीन राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने पहली बार जीडीपी की जगह सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक की अवधारण पेश करते हुए नागरिकों की खुशहाली को देश की प्रगति का पैमाना मानने की वकालत की और इस आधार पर सर्वेक्षण भी कराए. तब से यह सूचकांक इस पर्वतीय देश की पहचान बन गया है.
यह दलील दी जा सकती है कि भूटान की आबादी भारत के मुकाबले बहुत कम लगभग आठ लाख है. इसलिए उसे इस पहल में अब तक कामयाबी हाथ लगी है. लेकिन इसके साथ ही यह भी याद रखना होगा कि उसके संसाधन भी सीमित हैं. बावजूद इसके उसने कोरोना वायरस पर अंकुश लगाने की दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)