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Sunday, 22 December, 2024
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J&K चुनाव और राज्य का दर्जा बहाल करने की तय करें समयसीमा — क्या कहती है मानवाधिकार समिति की रिपोर्ट

रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार समिति ने तैयार की है, जिसमें नागरिकों का एक अनौपचारिक समूह शामिल है. इसमें क्षेत्र में सशस्त्र हमलों, नागरिक अधिकारों के दुरुपयोग और नशीली दवाओं के उपयोग पर भी चिंता जताई गई है.

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नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा में देरी, चुनाव से पहले उपराज्यपाल को अत्यधिक शक्ति, लक्षित हमले, जम्मू और दक्षिण कश्मीर में सशस्त्र हमले, नागरिक अधिकारों का दुरुपयोग, हिरासत में मौतें और नशीली दवाओं का दुरुपयोग — ये कुछ प्रमुख चिंताएं हैं जिन्हें 2024 की रिपोर्ट में ‘Jammu and Kashmir: A Human Rights Agenda for an Elected Administration’ शीर्षक से दर्शाया गया है.

रिपोर्ट, जिसे दिप्रिंट ने भी एक्सेस किया है, जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकारों के लिए एक समिति ने तैयार की है, जिसमें नागरिकों का एक अनौपचारिक समूह, जिसमें गोपाल पिल्लई (भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव) जैसे पूर्व सरकारी सचिव और अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.पी. शाह; न्यायमूर्ति बिलाल नाज़की, न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश और निरुपमा राव जैसे अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; लेफ्टिनेंट-जनरल एच.एस. पनाग जैसे सेवानिवृत्त सेना कर्मी; लेखक; इतिहासकार; एनजीओ संस्थापक; और वकील शामिल हैं.

इस रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराधों में वृद्धि, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध, बेरोज़गारी की समस्या, कश्मीर के स्थानीय उद्योगों का प्रभाव, मीडिया पर कार्रवाई, पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर के कथित उपयोग, उग्रवाद, स्थानीय निवासियों में आत्महत्या और अवसाद के मामलों पर भी चिंता जताई गई है. इसमें 4 अगस्त, 2019 को या उसके बाद निवारक हिरासत में रखे गए सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की सिफारिश की गई है.

समिति ने इरफान मेहराज, अब्दुल आला फाजली और सज्जाद गुल जैसे पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बारे में चिंता जताई है, जो अभी भी सलाखों के पीछे हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार, महिला और सूचना आयोगों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए और बाल अधिकार आयोग के गठन की भी सिफारिश की गई है.

अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटा दिया गया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था.

दिप्रिंट ने गृह मंत्रालय के प्रवक्ता से टेक्स्ट के ज़रिए संपर्क किया. तिक्रिया आने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.


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चुनाव, राज्य का दर्जा और पुनर्वास

रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव की तारीखों की घोषणा में देरी से “ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि विधानसभा चुनाव को सुप्रीम कोर्ट की 30 सितंबर की समयसीमा से आगे बढ़ाया जा सकता है, संभवतः बढ़ते आतंकवादी हमलों के आधार पर”.

निष्कर्षों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि यह देरी “विघ्नकारी लोगों” के हाथों में खेल सकती है. समिति ने सिफारिश की है कि घाटी में इन मुद्दों से बचने के लिए चुनाव शीर्ष अदालत द्वारा बताई गई समयसीमा से पहले कराए जाने चाहिए और तारीखों की घोषणा तुरंत की जानी चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया है, “जम्मू और कश्मीर के लोगों की एक निर्वाचित प्रशासन के लिए गहरी भूख लोकसभा चुनावों में उनके मतदान से प्रदर्शित हुई. 58.46 प्रतिशत के साथ, यह 35 साल में सबसे अधिक मतदान था, जिससे मुख्य चुनाव आयुक्त को विधानसभा चुनाव के लिए एक आशाजनक पूर्वानुमान मिला.”

यह भी सिफारिश की गई है कि पंचायत चुनावों के दौरान विपक्षी उम्मीदवारों द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनज़र सभी उम्मीदवारों को एक जैसे मौके दिए जाने चाहिए. इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक समयसीमा प्रदान की जानी चाहिए और निर्वाचित कारगिल और लेह पहाड़ी परिषदों की बहाली का प्रस्ताव होना चाहिए.

नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अधिकारी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और एएफएसपीए के दुरुपयोग से बचने के लिए जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों के अनुरूप काम करें और यातना, हिरासत में मौत या मानवाधिकारों के अन्य उल्लंघनों के दोषी पाए गए सुरक्षा बलों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करें.

रिपोर्ट में कहा गया है, “पुंछ-राजौरी के 25 लोगों की दिसंबर 2023 में यातना और तीन की हिरासत में हत्या, दिसंबर 2020 में होकरसर की मौत, शोपियां में राजौरी के तीन युवकों की जुलाई 2020 में न्यायेतर हत्या और सोपोर के इरफान अहमद डार की कथित हिरासत में मौत और उसके बाद के मुकदमों की स्थिति पर कार्रवाई की रिपोर्ट जारी करें.”

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि चुनाव समाप्त होने के बाद, एक मानवाधिकार प्रकोष्ठ स्थापित किया जाना चाहिए. “यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समुदाय के नेता कश्मीरी पंडितों की वापसी में शामिल हों, यह देखते हुए कि मीरवाइज़ उमर फारूक ने हाल ही में उनकी वापसी की अपील की है. स्थानीय समर्थन के बिना, वापस लौटे लोग सुरक्षित नहीं रहेंगे और उनका फिर से एकीकरण बेहद मुश्किल साबित होगा.”

निवासियों के पुनर्वास और समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए, समिति ने सिफारिश की है कि राज्य की अर्थव्यवस्था को “प्रतिबंधात्मक नियंत्रणों से मुक्त किया जाना चाहिए और स्थानीय स्तर पर स्वामित्व वाली कंपनियों, विशेष रूप से मध्यम और छोटे उद्यमों के साथ-साथ कृषि, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण या पुनरुद्धार में शामिल लोगों के लिए समर्थन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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