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Monday, 9 December, 2024
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कश्मीर में बंदूकों की जगह मतपत्र — उग्रवादियों के गढ़ त्राल, शोपियां और पुलवामा में रिकॉर्ड वोटिंग

शोपियां, त्राल और पुलवामा में उम्मीदों के विपरीत क्रमश: 45%, 37.52% और 39.25% मतदान हुआ. शोपियां और पुलवामा में 2019 में 3% और 2.15% मतदान दर्ज किया गया था.

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श्रीनगर/त्राल/पुलवामा: बारिश के बाद की सर्द सुबह के बीच, सुबह 7:30 बजे, पुलवामा के काकापोरा मतदान केंद्र का नज़ारा अपने अशांत अतीत से बिल्कुल अलग दिख रहा था.

ऐतिहासिक रूप से आतंकवादी गतिविधियों से प्रभावित, जिसमें फरवरी 2019 का विनाशकारी पुलवामा हमला भी शामिल है, जिसमें 40 से अधिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों की जान चली गई, यह क्षेत्र लंबे समय से मतदाताओं की उदासीनता और भय का प्रतीक रहा है.

पिछले दो दशकों में उग्रवादियों के बहिष्कार के आह्वान के कारण संसदीय चुनावों में मतदान प्रतिशत मात्र 1 से 2 प्रतिशत ही रहा. पथराव की घटनाएं बड़े पैमाने पर थीं और हड़तालें आम बात हुआ करती थीं.

हालांकि, इस सोमवार को जब श्रीनगर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार मतदान हुआ, तो पुलवामा में अभूतपूर्व 45 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया.

“कश्मीर की बेहतरी” की सामूहिक आकांक्षा और अपने चुनावी जनादेश को व्यक्त करने की इच्छा से प्रेरित होकर, मतदाता काकापोरा बूथ पर कतार में खड़े थे. काकापोरा, पुलवामा के निवासी इम्तियाज अहमद ने इस बदलाव पर प्रकाश डाला और नए आत्मविश्वास का श्रेय बहिष्कार के आह्वान और धमकियों की अनुपस्थिति को दिया.

उन्होंने कहा, “यहां बहुत उग्रवाद था, लोग डरे हुए थे, बंद के आह्वान थे, इसलिए कोई भी वोट देने के लिए बाहर नहीं आता था. बिना किसी बहिष्कार कॉल और धमकियों के, हमें बाहर आने का आत्मविश्वास मिला है.”

इसके अलावा, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की तत्काल ज़रूरत पर जोर दिया, जो 2018 से राज्यपाल शासन के अधीन है. मतदाता भागीदारी में वृद्धि एक पीढ़ीगत बदलाव का भी प्रतीक है, जिसमें पहली बार के मतदाता के अलावा 50 और 60 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति भी पहली बार वोट डालने आए थे.

उनकी भागीदारी उनके समुदाय की चुनौतियों के प्रति संवेदनशील प्रतिनिधियों को चुनने की इच्छा से प्रेरित थी, इस उम्मीद के साथ कि वे जल्द ही आगामी विधानसभा चुनावों में अपने विधायकों को चुनने में सक्षम होंगे.

उन्होंने कहा, “हम इस चुनाव को सफल बनाना चाहते हैं क्योंकि हमें राजनीतिक प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है. इंशाअल्लाह, हमारे यहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होंगे.”

Voters at the Government Higher Secondary School, Dadasara, Tral | Praveen Jain | ThePrint
गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल, दादासरा, त्राल में मतदाता | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट
Voters at the Government Higher Secondary School, Dadasara, Tral | Praveen Jain | ThePrint
गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल, दादासरा, त्राल में मतदाता | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

मात्र 20 किमी दूर, त्राल के दादासरा में — एक और उग्रवादी गढ़ और 2016 में मारे गए दिवंगत हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी का गृहनगर — यहां मतदाता मतदान मात्र 0.05 प्रतिशत पर स्थिर रहता था.

हालांकि, सोमवार को उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई और मतदान 37.52 प्रतिशत तक पहुंच गया. पूछे जाने पर, मतदाताओं ने अपनी “आवाज़ सुने” जाने और अतीत में हुए नुकसान से उबरकर प्रगति की ओर बढ़ने की इच्छा व्यक्त की.

इसी तरह, मारे गए हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर समीर अहमद भट उर्फ समीर टाइगर के गृहनगर द्रबग्राम में भी काफी मतदान हुआ.

उल्लेखनीय रूप से अन्य क्षेत्र भी, जो कभी उग्रवाद के केंद्र थे, जैसे कि शोपियां, त्राल और पुलवामा, में मतदाता मतदान उम्मीदों के विपरीत क्रमशः 45%, 37.52% और 39.25% रहा. सभी बूथों पर तैनात मतदान अधिकारियों ने कहा कि यह इन क्षेत्रों में बढ़ी हुई नागरिक भागीदारी और भागीदारी की दिशा में एक उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाता है. दरअसल, जिन इलाकों के गांव आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित थे, वहां शहर की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ.

शाम 6 बजे तक श्रीनगर में कुल मतदान लगभग 36 प्रतिशत दर्ज किया गया. जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2019 में यह 13 प्रतिशत था और 1989 के बाद से सबसे अधिक मतदान 1996 में 40.8 प्रतिशत दर्ज किया गया था.

अतिरिक्त महानिदेशक विजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि यह कश्मीर के लिए एक बड़ी सफलता है. एडीजी ने जोर देकर कहा, “यह इस क्षेत्र के लिए एक सफलता है कि चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया. हिंसा या आतंक की कोई घटना सामने नहीं आई, जो सराहनीय है. मतदान प्रतिशत बेहद अच्छा रहा. पुलवामा और शोपियां जैसे कुछ जिलों में अत्यधिक आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में, जहां मतदान केवल 2-3 प्रतिशत था, वहां 45 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ.”

श्रीनगर में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “आज कश्मीर में जो हुआ वो अत्यंत महत्वपूर्ण है. इससे पता चलता है कि लोगों को बाहर आने और वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाया गया है.” उन्होंने कहा, “ये क्षेत्र, जहां सबसे ज्यादा मतदान हुआ, आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित थे. ये गांव लश्कर और हिज्बुल जैसे संगठनों के ठिकाने थे. ग्रामीण उन्हें साजो-सामान, आश्रय और भोजन देते थे, जब भी हड़ताल का आह्वान होता था तो गांव बंद हो जाते थे, लेकिन इस बार वे बड़ी संख्या में बाहर आए हैं. यह ऐतिहासिक है.”

जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री और शिया धर्मगुरु आगा रूहुल्लाह मेहदी को मैदान में उतारा है, अपनी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद अशरफ मीर हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने राज्य खेल परिषद के पूर्व सचिव और इसकी युवा शाखा के अध्यक्ष वहीद उर रहमान परा को नामित किया है.

‘पत्थरबाजी से लेकर वोट डालने के लिए बटन दबाने तक’

त्राल के दादासरा में मतदान अधिकारी मुश्ताक को उम्मीद नहीं थी कि मतदान का प्रतिशत इतना होगा. उन्होंने कहा कि उनके बूथ पर दोपहर 12 बजे तक मतदान सात प्रतिशत तक पहुंच गया जिसे वह “बड़ी सफलता” मानते हैं. उन्होंने कहा, इन दोनों जगहों पर मतदान प्रतिशत 0 से 0.05 प्रतिशत तक होता था.

उन्होंने कहा, “मैंने कई चुनावों में इस मतदान केंद्र पर ड्यूटी दी है और हम बस बैठकर लोगों के आने का इंतज़ार करते थे. यह देखना बहुत उत्साहजनक है कि इतने सारे लोग मतदान करने आए. वोटिंग नगण्य होती थी. कुछ लोगों ने 25-28 साल बाद वोट किया है. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुधार है और यह यहां से बेहतर ही होगा.”

Voters at Government High School, Zampathri, Shopian | Praveen Jain | ThePrint
गवर्नमेंट हाई स्कूल, ज़म्पथरी, शोपियां में मतदाता | फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

एसएसपी पुलवामा पी.डी.नित्या ने दिप्रिंट को बताया कि इतना अधिक मतदान बहुत उत्साहजनक है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में नियमित आधार पर पथराव की घटनाएं सामने आती हैं और अब उन हाथों का इस्तेमाल पथराव करने के लिए नहीं बल्कि अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए वोट डालने के लिए किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “कोई हड़ताल का आह्वान नहीं किया गया और सभी दलों से भाग लेने का आग्रह किया गया था. यह सकारात्मक बात है कि हमारे प्रयास सफल हुए. काकापोरा उग्रवादियों का गढ़ था. हर दिन पथराव होता था और वोटिंग 1-2 प्रतिशत से अधिक नहीं होती थी. यह इस क्षेत्र के लिए एक अपेक्षित मानदंड बन गया था, लेकिन चीज़ें काफी बदल गई हैं. देखिए, कितने सारे लोग वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए कतार में खड़े हैं.”

त्राल के दादासरा मतदान केंद्र पर मौजूद जम्मू-कश्मीर भाजपा के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा कि केंद्र सरकार के प्रयासों से अच्छा मतदान संभव हो सका.

उन्होंने कहा, “2019 के बाद एक बड़ा बदलाव आया है. वहां शांति है, विकास हो रहा है. लोगों की सोच बदल गई है. यहां दादासरा में 175 आतंकियों को दफनाया गया है. यहां से आतंकवाद का नेटवर्क संचालित होता था, लेकिन अब लोग लोकतंत्र का त्योहार मनाने के लिए वोट देने निकल रहे हैं. यही वह बदलाव है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं. यहां शून्य प्रतिशत वोट होता था.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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