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Saturday, 5 October, 2024
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वरिष्ठ पत्रकारों ने संवैधानिक संस्थाओं से अल्पसंख्यकों पर ‘हमलों’ के खिलाफ कदम उठाने की अपील की

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नयी दिल्ली, 23 मार्च (भाषा) देश के वरिष्ठ पत्रकारों के एक समूह ने बुधवार को संवैधानिक संस्थाओं से अपील की है कि वे भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर हो रहे ‘‘हमलों’’ के मद्देनजर कदम उठायें और अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।

अपील में 28 वरिष्ठ पत्रकारों और मीडियाकर्मियों ने देशभर में बनाए जा रहे उस ‘‘उन्माद’’ को लेकर भी चिंता व्यक्त की कि ‘‘हिंदुत्व खतरे में है’’ और मुसलमानों को एक ‘‘खतरे’’ के रूप में चित्रित किया गया है।

अपील में फिल्म ‘‘द कश्मीर फाइल्स’’ की स्क्रीनिंग; कर्नाटक में हिजाब को लेकर उठा विवाद, ‘बुली बाई’ ऐप समेत सोशल मीडिया मंचों पर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाना और अन्य घटनाओं को लेकर मुस्लिम विरोधी भावना को भड़काने के हाल के प्रयासों का उल्लेख किया गया है। अपील में राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और विभिन्न उच्च न्यायालयों, भारत के निर्वाचन आयोग और अन्य वैधानिक निकायों से हस्तक्षेप का आह्वान किया गया है।

अपील में कहा गया है, ‘‘जब इन सभी घटनाओं को एक साथ लिया जाता है, तो यह स्पष्ट है कि इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए देशभर में एक खतरनाक उन्माद पैदा किया जा रहा है कि ‘‘हिंदुत्व खतरे में है।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘हमारी संवैधानिक, वैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं द्वारा केवल त्वरित और प्रभावी कार्रवाई ही इस तरह की गंभीर प्रवृत्ति को नियंत्रित और रोक सकती है।’’

अपील में कहा गया है, ‘‘पूरे भारत के पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के रूप में, हम इन सभी संस्थाओं से भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों पर ‘‘हमलों’’ के मद्देनजर कदम उठाने और अपने कर्तव्य का निर्वहन करने का आह्वान करते हैं।’’

इस अपील में जिन लोगों के हस्ताक्षर हैं उनमें ‘द हिंदू’ के पूर्व प्रधान संपादक एन राम, वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे; द टेलीग्राफ के संपादक आर राजगोपाल; द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और कारवां पत्रिका के कार्यकारी संपादक विनोद जोस भी शामिल हैं।

इसमें कहा गया है कि यह अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण है कि भारत के संवैधानिक संस्थान, और विशेष रूप से राष्ट्रपति, उच्च न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग, हमारे संविधान के तहत अपने जनादेश का निर्वहन करें।

अपील में कहा गया है, ‘‘मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों को ‘बुली बाई ऐप’ सहित सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से 2021 और 2022 में व्यवस्थित रूप से लक्षित किया गया है। कर्नाटक में हिजाब को लेकर हुए विवाद के परिणामस्वरूप भारत के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम महिलाओं को परेशान और अपमानित किया जा रहा है।’’

अपील में कहा गया है, ‘‘हाल में, ‘द कश्मीर फाइल्स’ की स्क्रीनिंग – एक ऐसी फिल्म जो मुसलमानों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने के बहाने कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा और त्रासदी का निंदनीय रूप से शोषण करती है – के जरिये फिल्म हॉल के अंदर और बाहर मुस्लिम विरोधी भावना को भड़काने के सुनियोजित प्रयास देखे गए हैं।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘सरकार के उच्चतम स्तर से पूरी तरह से उचित आलोचना को दबाने का प्रयास किया गया है और पिछले वर्षों और महीनों में घृणा बढ़ी है।’’

अपील में कहा गया है, ‘‘कभी चुनाव, कभी राजनीतिक सभाओं, कभी एक तथाकथित ‘धर्म संसद’, या कपड़ों पर विवाद या यहां तक ​​कि एक फिल्म की स्क्रीनिंग के जरिये घृणा का माहौल पैदा किया जाता है।’’

पत्रकारों ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन, यूनियनों और कामकाजी पत्रकारों के संघों और मीडिया से संबंधित सभी निकायों से इस संबंध में तत्काल प्रतिक्रिया दिये जाने का आह्वान किया। उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया के कुछ वर्गों ने खुद को ‘‘घृणास्पद भाषण के वाहक’’ बनने की अनुमति दी है।

भाषा देवेंद्र उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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