नई दिल्ली: जाने माने इतिहासकार, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और आरएसएस के जानकार ‘पांचजन्य’ के पूर्व संपादक देवेंद्र स्वरुप नहीं रहे. उनका देहांत 14 जनवरी को 93 वर्ष की आयु में दिल्ली के एम्स में हुआ जहां पर वह 30 दिसंबर 2018 से भर्ती थे।
देवेंद्र स्वरुप को चलता फिरता मोबाइल इनसाइक्लोपीडिया माना जाता था. वे 13 साल तक संघ प्रचारक रहे. उनके आरएसएस के सरसंघचालकों से काफी नज़दीकी संबंध रहे थे. सर-संघचालक श्री गुरूजी, के एस सुदर्शन और भाऊराव देवरस से उनके नज़दीकी संबंध जग ज़ाहिर थे.
उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत 1948 में बनारस से छपने वाली हिंदी पत्रिका ‘चेतना’ से की थी. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ पत्रिका में काम किया था. वे हमेशा सक्रिय राजनीति से दूर रहे.
विद्वान और इतिहासकार होने के अलावा उन्होंने भारतीय संविधान की संरचना का भी गहन अध्ययन किया था.
उनके व्यक्तिगत संग्रह में 15,000 से अधिक पुस्तकें थीं, जो उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पुस्तकालय को दान कर दी थीं. उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग 20 पुस्तकें भी लिखीं थीं.
30 मार्च 1926 को मुरादाबाद ज़िले के कांठ शहर में जन्मे देवेंद्र स्वरुप की प्राथमिक शिक्षा कांठ और चंदौसी (उत्तर प्रदेश) से हुई थी. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से उन्हें स्कूल से दो बार निकाल दिया गया था. जब वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीएससी कर रहे थे, तब वे आरएसएस से पूर्ण रूप से जुड़ गए थे. वह 1947 से 1960 तक संघ प्रचारक रहे थे. गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस पर देशभर में प्रतिबंध लगाया गया था। इस दौरान वह छह महीने तक जेल में रहे थे. उसके बाद 1975 में इमरजेंसी के दौरान भी जेल गए थे।
उन्होंने 1958 में हिंदी साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ को ज्वाइन किया. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर किया और 1964 में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में पीजीडीएवी कॉलेज के इतिहास विभाग को ज्वाइन किया. वे 1991 में सेवानिवृत्त हुए. वे दिल्ली प्रदेश अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के अध्यक्ष भी थे. उसके बाद वह 1968 से 1972 तक ‘पांचजन्य ’ के संपादक रहे. उन्हें आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया गया था. वे 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्थान (डीआरआई) के निदेशक और उपाध्यक्ष भी रहे थे. उन्होंने डीआरआई की गृह पत्रिका ‘मंथन’ का संपादन भी किया. वे एक इतिहासकार के रूप में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद से जुड़े थे. वास्तव में वे उन लोगों के लिए एक प्रेरणादायक रहे, जो विशेष रूप से पत्रकारिता में हैं.
डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक अनिर्बान गांगुली ने भी उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट किया हैं. उन्होंने कहा ‘देवेंद्र स्वरुप जी का इस दुनिया से जाना बहुत दुखद है. देवेन्द्र स्वरूप जी का निधन सही मायने में विचारों की दुनिया में एक युग के अंत का संकेत है.’
Prof. Devendra Swaroop ji's passing truly marks the end of an era in the world of ideas, narrative-creation, counter-narratives, defining articulation & thought. He was a towering mind who dominated the ideational world of Hindutva for decades & inspired many of us.
OM SHANTI pic.twitter.com/fNCch0COIN
— Dr. Anirban Ganguly (@anirbanganguly) January 14, 2019
विनम्र श्रद्धांजलि
"स्वर्गीय देवेन्द्र स्वरूप जी के निधन से एक कर्मठ एवं अध्ययनशील स्वयंसेवक की क्रियाशील जीवन यात्रा समाप्त हुई है। अपने सारगर्भित अध्ययन तथा मूलभूत चिंतन से परिपूर्ण नियमित और सातत्यपूर्ण लेखन से उन्होंने राष्ट्रीय विमर्श को हमेशा परिपुष्ट किया। १/२— RSS (@RSSorg) January 14, 2019
आरएसएस को जानने समझने वालों में देवेन्द्र स्वरूप एक ऐसी शख्शियत थे जो इसके इतिहास और वर्तमान दोनों को अच्छे से जानते थे. उनके लेख और किताबें भविष्य के लिए आरएसएस विचारधारा को समझने की ज़रूरी कूंजी बनेंगे.