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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशआपकी बुजुर्ग मां दुर्व्यवहार का शिकार तो नहीं? 40% बेटे करते हैं मां को पीड़ित, बहुएं सिर्फ 27% : रिपोर्ट

आपकी बुजुर्ग मां दुर्व्यवहार का शिकार तो नहीं? 40% बेटे करते हैं मां को पीड़ित, बहुएं सिर्फ 27% : रिपोर्ट

हमारे समाज की यह एक कठोर सच्चाई है कि जैसे जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, वो उपेक्षित होती जाती हैं और अक्सर हाशिये पर चली जाती है.

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नई दिल्ली: क्या आपको पता है आपकी ‘मां’ का फेवरेट कलर कौन-सा है?, क्या आप जानते हैं कि आपकी मां को खाने में सबसे ज्यादा क्या पसंद है? या फिर उन्हें मीठे में क्या खाना अच्छा लगता है?, क्या आपको ये भी पता है कि आपकी मां को फिल्म देखना ज्यादा पसंद है या फिर गाना सुनना?

उन्हें अपने खाली समय में क्या करने में मज़ा आता है, आपको शायद ये भी नहीं पता होगा कि उन्हें अब घर के काम काज करने में मजा नहीं आता है? उनका मन करता है कि अब जब उनके बच्चे अपनी अपनी जिंदगी में मस्त हो गए हैं तो वो अपने कुछ अधूरे सपनों में रंग भर लें. वो जो अंदर ही अंदर कुछ अपने टैलेंट को व्यवसाय में बदलना चाहती हैं. वो चाहती हैं कि उनके द्वारा किए गए काम की अहमियत समझते हुए उनके हाथ में चंद रुपये दिए जाएं. उन्हें आपके नटखट बच्चों से प्यार तो बहुत है लेकिन वो उसे पालना, आपकी गैर-मौजूदगी में संभालना और जिम्मेदारी लेना नहीं चाहती हैं.. तो क्या कभी उनसे पूछा कि वो ये काम करना चाहती भी हैं या नहीं?

“यह एक कठोर वास्तविकता और सच्चाई है कि महिलाएं, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, वो उपेक्षित होती जाती हैं और अक्सर हाशिये पर चली जाती हैं.” ये कहना है हेल्पएज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहित प्रसाद का. वो बताते हैं,” बुजुर्ग महिलाएं असुरक्षित है. उनकी जरूरतों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और उनके योगदान की अनदेखी कर दी जाती है.”

वह आगे कहते हैं, “2021 में 60 से अधिक उम्र की महिलाओं का प्रतिशत कुल महिला आबादी में 11% (66 करोड़ में 7 करोड़) है और 2031 तक यह 14% (72 करोड़ में 10 करोड़) हो जाएगी. इनमें 54% महिलाएं अशिक्षित हैं, 43% विधवा हैं, 16% को शोषण का सामना करना पड़ता है, 75% के पास कोई बचत नहीं है, 66% वृद्ध महिलाओं के पास संपत्ति नहीं है और कई वित्तीय रूप से असुरक्षित महसूस करती हैं.”

देश आज ‘विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस’ (15 जून) मनाया जा रहा है. इसके अंतर्गत हेल्पएज इंडिया ने “वीमेन एंड एजिंग: इनविजिबल ऑर एम्पावर्ड?” पर एक रिपोर्ट जारी की. यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जो केवल बुजुर्ग महिलाओं पर केंद्रित है, जिसमें बताया गया है कि अक्सर बुजुर्ग महिलाओं की जरूरतों का ख्याल नहीं रखा जाता है और उनका अधिकार खो जाता है.

इस रिपोर्ट में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और भेदभाव, वित्तीय संसाधनों तक वृद्ध महिलाओं की पहुंच और स्वामित्व, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक और डिजिटल समावेशन, सुरक्षा और संरक्षा, जागरूकता और निवारण तंत्र और अन्य के उपयोग के पहलुओं की पड़ताल भी शामिल की गई है. बुजुर्ग महिलाओं पर सर्वेक्षण इप्सोस रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कराया गया था.

इस रिपोर्ट में देश के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों को समेटते हुए भारत के 20 राज्यों, 2 केंद्रशासित प्रदेशों और 5 महानगरों को शामिल किया गया है.

पुरुषों से ज्यादा जीती हैं महिलाएं

2020 की ‘भारत और राज्यों की जनसंख्या अनुमान’ रिपोर्ट और जनांकिकीय बदलाव के अनुसार, ‘फेमिनाइजेशन ऑफ एजिंग’ को विशिष्ट स्थान दिया गया है जो कि बढ़ती उम्र वाली आबादी में महिलाओं के अधिक उम्र तक जीने के कारण घटित हो रहा है. इसमें एक और खुलासा हुआ है कि जब पुरुष और महिलाओं की औसत जनसंख्या का अनुपात 1000:948 है, बुजुर्गों में यह अनुपात 1065 है (बुजुर्गों की आबादी में महिलाएं अधिक हैं) जो उम्र के साथ और बढ़ जाती है.

हेल्पएज की रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि बुजुर्ग महिलाओं में ‘निर्भरता’ सीधे रूप से सामने आया है, जिसमें उनकी निरक्षरता, फाइनेंशियल सिक्योरिटी, जागरूकता की कमी और उनके लिए फायदेमंद योजनाएं, रोजगार के अवसरों और चिकित्सा कवर की कमी, और दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशीलता जैसी बातों को रेखांकित किया गया है.

बेटे ही मां के साथ करते हैं दुर्व्यवहार

अपने साथ दुर्व्यवहार होने के बावजूद अधिकांश वृद्ध महिलाएं इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती हैं, परिवार की इज्जत और अधिक होने वाले दुर्व्यवहार के डर के कारण 18% बुजुर्ग महिलाएं रिपोर्ट भी नहीं कराती हैं, इसके बाद 16% भारतीय बुजुर्ग महिलाओं को उनके लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जबकि 13% वृद्ध महिलाओं को लगता है कि उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है.

वृद्ध महिलाओं के खिलाफ दुर्व्यवहार के संबंध में एक खतरनाक प्रवृत्ति का पता चला है. इसमें पिछले दो वर्षों में 16% की वृद्धि हुई है. इसमें सबसे अधिक उनके साथ मार-पीट और शारीरिक हिंसा में वृद्धि हुई है. 50% महिलाओं ने इसका अनुभव किया है. इसके बाद अनादर (46%) और भावनात्मक/मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार (40%) का स्थान रहा. दुर्व्यवहार के मामले में सबसे अधिक आंकड़े पुत्रों के हैं 40% बेटे ही करते हैं मां के साथ दुर्व्यवहार और शारीरिक उत्पीड़न. उसके बाद 31 % रिश्तेदार (31%) थे जिससे पता चलता है कि दुर्व्यवहार करने वालों में निकट परिजनों के अलावा दूसरे भी प्रमुख रूप से शामिल हैं. इसके बाद बहू (27%) की प्रताड़ना के मामलों का पता चला.

हेल्पऐज इंडिया की रिसर्च पार्टनर प्रज्ञा कहती हैं, “हमारे देश में एक समय के बाद जैसे ही बुजुर्ग लोग घर में रहना शुरू करते ही तो उन्हें केयर टेकर बना दिया जाता है, उनसे कभी ये पूछा ही नहीं जाता हैं कि वो ये काम करना चाहते हैं या नहीं. और घर के बुजुर्ग खास कर महिलाएं इसका विरोध भी नहीं कर पाती है क्योंकि वह वित्तीय रूप से सशक्त नहीं होती है और नाहि समाज उन्हें अकेले रहने देता है. पति की मृत्यु के बाद महिला को परिवार के किसी दूसरे पुरुष पर निर्भर होना पड़ता है.”

हमारे समाज की यह एक कठोर सच्चाई है कि जैसे जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, वो उपेक्षित होती जाती हैं और अक्सर हाशिये पर चली जाती है.

प्रज्ञा आगे कहती हैं कि हमारे देश में आपको 24 घंटे एक बच्चे का ध्यान रखने वाली बेबी सिटर तो मिल जाएगी लेकिन आपको ऐसा कोई नहीं मिलेगा जो एक बुजुर्ग व्यक्ति का ध्यान रख सके उसकी हर वक्त मदद कर सके उसके साथ रह सके.”


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बुजुर्गों के अधिकार

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मीरा खन्ना कहती हैं, “हमारे समाज में हमेशा से ही बुजुर्गों के सम्मान करने की बात बहुत की जाती है, लेकिन अगर हम थोड़ा गौर करें तो यह सम्मान भी केवल पुरुषों के लिए होता है. बुजुर्ग पुरुषों के सम्मान की बात होती है महिला की नहीं.”

उन्होंने कहा, “हमारे भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही यह चलन है कि मां बाप ने बच्चों को पाल-पोस के बड़ा किया है तो, बाद में बच्चों की जिम्मेदारी है कि वो अपने माता पिता का ख्याल रखेंगे. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि क्योंकि बुजुर्ग इस देश के नागरिक हैं और वो हमेशा से ही देश के जीडीपी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसलिए सरकार को भी उनकी तरफ ध्यान देना चाहिए. उनके लिए रूल्स बनाने चाहिए और जो पुराने अधिकार उन्हें मिले हुए है उनका सही से पालन किया जाए, यह भी सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए.”

डॉ. मीरा कहती हैं, “बुजुर्ग महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताना बहुत ही जरूरी है तभी उन्हें किसी तरह से सशक्त बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा, “हमारे देश में विधवा बुजुर्ग महिलाओं को पेंशन मिलती है, लेकिन बहुत सारी महिलाओं को यह पता ही नहीं होता है कि उनके कितने प्रकार का और कितना पैसा मिलना है. उन्हें बैंक जाने के लिए भी किसी न किसी पर निर्भर रहना पड़ता है, तो इन सब चीज़ो के लिए उन्हें जागरूक करना बहुत ही जरुरी है.”

जहां तक डिजिटल उपकरण – स्मार्टफोन, लैपटॉप उपयोग करने की बात है, वृद्ध महिलाएं बहुत पीछे हैं, 60% वृद्ध महिलाओं ने कभी भी डिजिटल उपकरणों का उपयोग ही नहीं किया है, 59% वृद्ध महिलाओं के पास स्मार्टफोन नहीं है. 64% वृद्ध महिलाओं ने किसी प्रकार का स्वास्थ्य बीमा नहीं होने की सूचना दी है. 67% वृद्ध महिलाएं अभी भी अपने परिवारों में देखभाल करने वाली भूमिकाएं निभाती हैं, जबकि 36% देखभाल करने के बोझ का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं हैं.

एल्डरलाइन

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 56% वृद्ध महिलाओं में दुर्व्यवहार के लिए उपलब्ध निवारण तंत्र के बारे में जागरूकता की कमी है, केवल 15% माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के बारे में जागरूक हैं और 78% वृद्ध महिलाओं को किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी ही नहीं है.

‘14567’ आपको शायद इस हेल्पलाइन नंबर के बार में पता नहीं होगा, वैसे तो हम आपको इसके बारे में बता ही देंगे पर आप चाहे तो एक बार गूगल करके भी देख सकते है. यह बुजुर्गों के लिए जारी किया गया एक टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर हैं जिसे ‘एल्डरलाइन’ भी कहा जाता है.

हम अक्सर ही ऐसा करते है या फिर होते हुए देखते हैं कि यदि हमारे घर के किसी बुजुर्ग को कोई नया गैजेट चलाना नहीं आता है और वो हमसे उसके बारे पूछते हैं तो हम उन्हें साइड में बिठा देते है और फटाफट वो काम खत्म कर देते है. हमारे पास इतना वक्त ही नहीं होता है कि हम अपने घर के बुजुर्गों को कोई नई चीज़ सिखाए, उनसे बात करे या फिर उनके बारे में थोड़ा जाने.

अगर आप के घर में कोई बुजुर्ग व्यक्ति है – आपके माता-पिता, या फिर दादा-दादी जो अब बाहर कम जाते है और घर पर ही रहते है, तो हम अक्सर ही ऐसे लोगो से अपेक्षा करते है कि वो घर पर हैं तो सारा काम कर दे, छोटे बच्चे हैं तो उनका ध्यान रखे. हम उनसे कभी नहीं पूछते कि इस काम में उनकी दिलचस्पी हैं या नहीं.

‘एल्डर एब्यूज’ एक ऐसी चीज़ है जो होते हुए भी दिखाई नहीं देती है या फिर ऐसे किसी टर्म के बारे में हमको जानकारी ही नहीं है. बता दें कि बुजुर्गों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार, भेद-भाव, वित्तीय संसाधनों तक उनकी पहुंच न होने देना, उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करवाना भी एल्डर एब्यूज कहलाता है. और जब भी हम एब्यूज की बात करते हैं तो पहला नाम तो महिलाओं का ही होता है.


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