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वरिष्ठ अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींढसा का मोहाली में निधन

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चंडीगढ़, 28 मई (भाषा) शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा का उम्र संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बुधवार शाम को मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया।

वह 89 साल के थे। उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं।

अस्पताल के बयान के अनुसार, ढींढसा को मंगलवार को गंभीर हालत में भर्ती कराया गया था। वह गंभीर निमोनिया और हृदय संबंधी जटिलताओं से पीड़ित थे, साथ ही अधिक उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी थीं।

बयान में कहा गया, ‘‘बहु-विषयक चिकित्सा दल के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, हृदय गति रुकने के कारण आज शाम लगभग 5:05 बजे उनका निधन हो गया।’’

ढींढसा के पुत्र परमिंदर सिंह ढींढसा पूर्ववर्ती अकाली सरकार में वित्त मंत्री रहे।

ढींढसा अकाली दल के टिकट पर संगरूर लोकसभा सीट से सांसद रहे। वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय खेल, रसायन और उर्वरक मंत्री रहे थे।

ढींढसा 1998 से 2004 और 2010 से 2022 तक राज्यसभा सदस्य रहे। अकाली नेता को 2019 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, लेकिन उन्होंने तब घोषणा की थी कि वह उन किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इसे लौटा देंगे जो अब निरस्त किए जा चुके तीन किसान कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

संगरूर जिले के उभावाल गांव में नौ अप्रैल,1936 को जन्मे ढींढसा का राजनीतिक सफर सरकारी रणबीर कॉलेज में एक छात्र नेता के रूप में शुरू हुआ। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद ढींढसा अपने गांव के सरपंच चुने गए। वर्ष 1972 में वह धनौला विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए।

बाद में वह सुनाम और संगरूर विधानसभा क्षेत्रों से विधायक बने। अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के बाद ढींढसा शिरोमणि अकाली दल में सबसे वरिष्ठ नेता थे। ढींढसा को पार्टी से दो बार निष्कासित किया गया था – पहली बार फरवरी 2020 में और फिर अगस्त 2024 में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पर सवाल उठाने के बाद।

उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींढसा, जो 2012 से 2017 तक वित्त मंत्री थे, को भी दो बार पार्टी से निष्कासित किया गया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद सुखदेव ढींढसा ने पार्टी की आलोचना की थी।

वर्ष 2018 में उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था और आरोप लगाया गया था कि पार्टी के पुराने नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है।

उन्होंने 2020 में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया और खुद का संगठन शिरोमणि अकाली दल (डेमोक्रेट) बनाया।

मई 2021 में, ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, जिन्हें भी शिरोमणि अकाली दल से निकाल दिया गया था, ने एक नया राजनीतिक संगठन शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) बनाया। ढींढसा इस पार्टी के अध्यक्ष बने और ब्रह्मपुरा इसके संरक्षक।

शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) ने 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन करके लड़ा। लेकिन मार्च 2024 में लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ढींढसा ने अपनी पार्टी का सुखबीर बादल के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल में विलय कर दिया।

उस समय ढींढसा ने कहा, ‘‘पंथ में एकता लाने के लिए हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं में शिअद में विलय की बहुत अधिक इच्छा थी।’’

विलय की बातचीत दिसंबर 2023 में शुरू हुई, जब बादल ने 2015 में अकाली शासन के दौरान हुई बेअदबी की घटनाओं के लिए माफी मांगी।

हालांकि, अगस्त 2024 में शिअद ने कथित तौर पर ‘पार्टी विरोधी’ गतिविधियों में लिप्त होने के कारण ढींढसा को इस बार पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया।

पार्टी ने अन्य विद्रोही नेताओं को भी निष्कासित कर दिया, जिनमें पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की पूर्व प्रमुख बीबी जागीर कौर और परमिंदर सिंह ढींढसा शामिल थे।

बागी नेताओं ने 103 साल पुरानी पार्टी को ‘मजबूत और उन्नत’ करने के उद्देश्य से ‘शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर’ शुरू की।

ढींढसा को धार्मिक दंड का भी सामना करना पड़ा। अकाल तख्त के सिख धर्मगुरुओं ने दो दिसंबर, 2024 को सुखबीर बादल और अन्य अकाली नेताओं के लिए ‘तनखाह’ (धार्मिक दंड) सुनाया। यह धार्मिक दंड वर्ष 2007 से 2017 तक पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और उसकी सरकार द्वारा की गई ‘गलतियों’ के लिए सुनाया गया।

भाषा संतोष वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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