बेंगलुरू: आज रात (21 दिसंबर) के समय आसमान एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बनेगा— वर्ष 1623 के बाद ये पहला मौका होगा जब बृहस्पति और शनि के मिलन की खगोलीय घटना नज़र आएगी. पिछले कुछ वक्त से एक दूसरे के करीब आते नज़र आ रहे दोनों ग्रह रात के समय आसमान में परस्पर दूर जाने से पहले कुछ समय के लिए एक बेहद चमकदार धब्बे के रूप में एक-दूसरे में समा गए जैसे दिखाई देंगे.
यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना है— जिसमें सौर मंडल के दो सबसे बड़े ग्रह आसमान में एक साथ मिलते दिखाई देंगे—यह घटना 400 वर्षों बाद होने जा रही है. और 800 वर्षों में पहला मौका होगा जब इस खगोलीय घटना को सूर्यास्त के बाद नग्न आंखों से स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा.
यह दुलर्भ संयोग ऐसे समय पर बन रहा है जब उत्तरी गोलार्ध में शीतकालीन संक्रांति पड़ने वाली है जिसमें उत्तरी ध्रुव पर 24 घंटे के लिए अंधेरा छाया रहेगा.
आज रात का दुलर्भ संयोग पहला ऐसा मौका भी होगा जब मानव जाति दूरबीन के जरिये इस खगोलीय घटना के क्लोज-अप चित्र भी ले पाएगी जिससे सौर मंडल में गैस के दो बड़े गोलों रूपी इन ग्रहों को एक फ्रेम में कैद किया जा सकेगा.
इसे कैसे देख पाएंगे
यह दुर्लभ मिलन सूर्यास्त के बाद क्षितिज के ऊपर दक्षिण-पश्चिमी आकाश में दिखाई देगी. इसे भारतीय समय के मुताबिक केवल शाम 7.30 बजे तक ही देखा जा सकेगा, जब यह ग्रह क्षितिज के नीचे की ओर जाने लगेंगे.
पिछले कुछ हफ्तों से बृहस्पति की तुलना में शनि कुछ छोटा और कुछ अलग ही तरह से उसकी ओर बढ़ता दिख रहा था. आज रात दोनों ग्रह एकाकार होते हुए आकाश में एक मंद लेकिन अजीबो-गरीब से तारे की तरह नज़र आएंगे. कल से ग्रह फिर अलग हो जाएंगे क्योंकि हमारे दृष्टिकोण से बृहस्पति अपनी कक्षा में शनि से आगे निकल चुका होगा.
इस खगोलीय मिलन के दौरान बायीं ओर चंद्रमा काफी ऊंचा नज़र आएगा.
शहरों में प्रदूषण के बावजूद अगर आसमान साफ रहा तो ग्रहों के एक सीध में आने की यह दुर्लभ घटना नग्न आंखों से देखी जा सकेगी. टेलीस्कोप या दूरबीन के जरिये दोनों ग्रहों को एक ही फ्रेम में देखा जा सकना अपने आप में ऐतिहासिक होगा. शक्तिशाली टेलीस्कोप दोनों गैलीलियन चंद्रमा (बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमा: गेनीमेड, कैलिस्टो, यूरोपा, लो) और साथ ही शनि के छल्ले दोनों को कैप्चर कर सकते हैं.
दक्षिण ध्रुव को छोड़कर दुनिया के अधिकांश हिस्सों में यह खगोलीय घटना दिखाई देगा, जहां दक्षिणी गोलार्ध की गर्मियों की संक्रांति या 24 घंटे का दिन नज़र आएगा.
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ग्रहों का मिलन
ग्रहों का इस तरह का मिलन एक सामान्य प्रक्रिया है और आसन्न ग्रहों के साथ भी हो सकती है क्योंकि वे हमें पृथ्वी की स्थिति के हिसाब से नज़र आते हैं.
रात के आकाश में सबसे चमकीले ग्रहों के मिलन में शुक्र सबसे अधिक आकर्षित करता है. बृहस्पति-शनि का दुर्लभ मिलन लगभग 20 वर्षों में होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि हर दो दशक में बृहस्पति (लगभग 12 वर्ष में कक्षा का चक्कर पूरा करता है) पृथ्वी से देखे जाने पर शनि (लगभग 30 वर्षों की कक्षीय अवधि के साथ) से आगे निकल जाता है.
आज रात का दुर्लभ संयोग हाल के समय में दोनों ग्रहों की निकटतम स्पष्ट स्थिति है. पूर्व में आकाश में इन दो ग्रहों के बीच नज़र आने वाले मिलन में कम से कम एक डिग्री का अंतर होता था, जबकि आज रात की घटना इस दृष्टि से दुर्लभ है कि यह अंतर एक डिग्री के दसवें हिस्से से भी कम होगा. इसका मतलब है कि दोनों ग्रहों को आज रात पृथ्वी से देखे जाने पर केवल एक पेंसिल की नोंक से चिह्नित किया जा सकता है.
इसी तरह का एक और करीबी ग्रह संयोग शुक्र और शनि के बीच 30 जनवरी, 2048 को तड़के आकाश में नज़र आएगा.
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बृहस्पति-शनि का अगला मिलन 2080 में
बृहस्पति और शनि के बीच अगला दुर्लभ मिलन वर्ष 2080 में नज़र आएगा. पिछली बार ये दुर्लभ घटना 1623 ईसवी में हुई थी जब गैलीलियो ने दूरबीन को रिफाइन किया ही था. लेकिन ऑब्जर्वेशन के लिहाज से यह सूर्य के बहुत करीब था. इससे पहले 1226 ईसवी में एक बार इसे रात के समय आकाश में स्पष्ट रूप से देखा गया था.
इस दुर्लभ संयोग का शीतकालीन संक्रांति से कोई संबंध नहीं है, हालांकि इस वर्ष दोनों स्थितियां एक ही दिन बनी हैं.
पृथ्वी पर संक्रांति वर्ष में दो बार होती है, जब पृथ्वी की धुरी सूर्य की ओर अधिकतम झुकी हुई होती है. सूर्य की ओर पड़ने वाले ध्रुव पर उस समय वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है, जबकि विपरीत ध्रुव में वर्ष की सबसे लंबी रात होती है.
उत्तरी गोलार्ध की ग्रीष्मकालीन संक्रांति (और दक्षिणी गोलार्ध की शीतकालीन संक्रांति) प्रत्येक वर्ष 20-21 जून को होती है, जबकि शीतकालीन संक्रांति 21-22 दिसंबर को होती है.
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