नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए- हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने हिजाब को इस्लाम का अभिन्न अंग बताते हुए बुधवार को कहा कि यह कहना ‘सरासर गलत है कि पर्दा इस्लाम का हिस्सा’ नहीं है।
कक्षाओं में हिजाब पहनने को लेकर मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा था कि हिजाब इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।
प्रमुख मुस्लिम नेता मौलाना मदनी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति या समुदाय अपनी धार्मिक पहचान ज़ाहिर न करे। उन्होंने पूछा कि बहुत से लोग नमाज़ नहीं पढ़ते हैं या रोज़ा नहीं रखते हैं, इससे क्या नामाज़-रोज़ा इस्लाम का हिस्सा नहीं रहेगा?
संगठन की ओर से जारी बयान में मौलाना मदनी के हवाले से कहा गया है कि उच्च न्यायालय का फैसला इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार नहीं है, क्योंकि सिर ढंकना कुरान से साबित है जिसका मतलब है कि यह ‘अनिवार्य’ है।
उन्होंने कहा, “ जो चीज़ें अनिवार्य होती हैं, उनका पालन करना जरूरी होता है और ऐसा नहीं करने पर गुनाह मिलता है।”
मौलाना मदनी ने कहा कि हिजाब एक ज़रूरी आदेश है, लेकिन कोई महिला इसका पालन नहीं करती है तो वह इस्लाम से खारिज नहीं हो जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इसलिये यह कहना कि पर्दा इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है सरासर गलत है।”
जमीयत प्रमुख ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अल्पसंख्यकों को अधिकार प्राप्त हैं। संविधान इस बात की गारंटी देता है कि देश के हर नागरिक को धर्म के अनुसार आस्था रखने, धार्मिक नियमों का पालन करने और इबादत की पूर्ण स्वतंत्रता है।” उन्होंने कहा कि भारत सरकार या राज्य का अपना कोई सरकारी धर्म नहीं है और सरकार किसी विशेष धर्म की पहचान को सभी नागरिकों पर न थोपे।
भाषा नोमान नोमान पवनेश
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