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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशवाहनों की स्क्रैपिंग पॉलिसी 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उलझी, सरकार कानूनी राय लेने की तैयारी में

वाहनों की स्क्रैपिंग पॉलिसी 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उलझी, सरकार कानूनी राय लेने की तैयारी में

सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को वॉलंटियरी व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी का ब्योरा घोषित किया जिसके 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भिन्न होने के कारण अनिश्चितता की स्थिति में बन गई है.

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नई दिल्ली: सरकार की तरफ से गुरुवार को वाहनों की स्वैच्छिक स्क्रैपिंग नीति का ब्योरा घोषित किए जाने के बाद सड़क परिवहन मंत्रालय अब इस पर विचार कर रहा है कि क्या इस पर 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील करने की जरूरत है जो कि इस नीति से अलग है.

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को कहा कि उनका मंत्रालय इस पर कानूनी राय लेगा कि क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों के चलने पर रोक संबंधी शीर्ष कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की जानी चाहिए या नहीं.

यह आदेश सड़क मंत्रालय की वाहन स्क्रैपिंग नीति के साथ भिन्न है, जिसमें सरकारी और कॉमर्शियल वाहनों के लिए 15 साल और निजी वाहनों के लिए 20 साल की समयसीमा रखी गई है. शीर्ष अदालत के आदेश के तहत 15 साल से ज्यादा डीजल और पेट्रोल वाहनों पर रोक है.

गडकरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘हम इस पर कानूनी राय लेंगे कि क्या इसे लागू किया जा सकता है…क्योंकि मोटर वाहन अधिनियम, जो वाहन स्क्रैपिंग नीति का आधार है, कहता है कि निजी वाहन 20 साल तक सड़क पर रह सकते हैं.’

मंत्री ने आगे कहा, ‘मेरी राय यह है कि संसद ने मोटर वाहन अधिनियम पारित किया है…संसद सर्वोच्च है. हमने मोटर वाहन कानून के मद्देनजर ही यह नीति बनाई है…संसद को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसकी व्याख्या करने का अधिकार रखता है.’


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2018 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था

अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जब दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से 15 साल पुराने डीजल और 10 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को हटाने का आदेश दिया, तो इसने क्षेत्र में प्रदूषण की स्थिति को ‘बहुत ही गंभीर’ बताया था.

शीर्ष कोर्ट ने दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग से ऐसे वाहनों की पहचान करने और उन्हें हटाने को कहा था, जिनके कारण प्रदूषण की समस्या बढ़ रही. कोर्ट ने यह भी कहा था कि ऐसे वाहनों की सूची केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और परिवहन विभाग की वेबसाइट पर भी डाली जाए.

2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर 15 वर्ष पुराने डीजल और 10 वर्ष पुराने पेट्रोल वाहनों के चलने पर प्रतिबंध लगाया था. इसके बाद सड़क मंत्रालय ने इस मामले में भारी उद्योग विभाग (डीएचआई) के साथ एक पक्ष बनने का फैसला किया, जिसमें जनवरी 2017 में एनजीजी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई.

डीएचआई ने वाहनों की उम्र सीमा को लेकर की गई अपील में तर्क दिया था कि इससे वाहनों का नुकसान होता है, खासकर निजी स्वामित्व वाले ऐसे वाहनों का जिनका रखरखाव काफी अच्छी तरह से किया गया होता है.

सरकार की नीति क्या है

सरकार ने गुरुवार को जो नीति घोषित की उसके तहत 1 जून 2024 से 20 वर्ष से अधिक पुराने ऐसे निजी वाहनों का पंजीकरण निश्चित तौर पर रद्द हो जाएगा जो फिटनेस टेस्ट में फेल रहते हैं या उनका रजिस्ट्रेशन सार्टिफिकेट रिन्यू नहीं कराया जाता. वहीं, 15 साल से ज्यादा पुराने और फिटनेट टेस्ट में फेल रहने वाले भारी कॉमर्शियल वाहनों का पंजीकरण रद्द करने की समयसीमा 1 अप्रैल 2023 है.

20 साल से ज्यादा पुराने अपने निजी वाहन का फिटनेस सार्टिफिकेट रिन्यू कराने के लिए बढ़ी हुई फीस 7000 रुपये का भुगतान करना होगा, साथ ही रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण पर 5,000 रुपये अलग से अदा करने होंगे.

गडकरी ने कहा कि सरकार पुराने वाहनों के मालिकों को रजिस्टर्ड स्क्रैपिंग सेंटर के जरिये इन्हें कबाड़ में तब्दील कराने पर नकद प्रोत्साहन राशि देगी.

साथ ही, ऑटोमोबाइल निर्माता अपना पुराना वाहन स्क्रैप कराने के बाद नए वाहन खरीदने वालों को 5 प्रतिशत की छूट भी देंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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