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Wednesday, 18 December, 2024
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कैसे एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी की सरल गणित के प्रति चाह ने उन्हें पद्म भूषण दिलाया

बोल्ट्जमान मेडल पाने वाले पहले भारतीय दीपक धर ने स्टैटिस्टिकल मैकेनिक्स के अपने दृष्टिकोण को कला के बराबर बताया और कहा कि 'इस विचार का प्रचार करना गलत है कि हर किसी को सिर्फ एप्लाइड वर्क पर ही काम करना चाहिए.'

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नई दिल्ली: जब वह कॉलेज में पढ़ते थे तो उन्हें पत्रिकाओं में छपी गणित की सरल समस्याओं को हल करने में मज़ा आता था. सालों बाद यही दीपक धर स्टैटिस्टिकल मैकेनिक्स में अपना रास्ता बनाते हुए भारत के अग्रणी सैद्धांतिक भौतिकविदों में से एक बन गए.

71 वर्षीय धर को उनके सांख्यिकीय भौतिकी विज्ञान में योगदान के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं. इस साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. दिप्रिंट के साथ हुई एक बातचीत में धर ने कहा, ‘गणित में कई समस्याएं सरल पहेलियों के तौर पर सामने आती है. लेकिन जब आप उन्हें हल करने लगते हैं, तो कभी-कभी ये समाधान गहरी समस्याओं को सुलझाने का रास्ता बन जाते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आप नहीं जानते कि मुश्किल समस्याओं को सुलझाने की शुरुआत के लिए ऐसे समाधानों की क्या प्रासंगिकता हो सकती है. हम रामानुजन का नाम लेते हैं और उन्हें सबसे महान गणितज्ञों में से एक के रूप में उद्धृत करते हैं, लेकिन उनका काम उस समय तुरंत लागू नहीं होता था. अब भी, उनके काम के बहुत कम प्रत्यक्ष तकनीकी अनुप्रयोग हैं.’

पिछले साल धर बोल्ट्जमान पदक से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक बने थे. सांख्यिकीय भौतिकी में हर तीन साल में एक बार दिए जाने वाले सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय सम्मानों में से यह एक है.

2002 में उन्हें TWAS (द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज) पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वैज्ञानिक ज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए विकासशील देशों के वैज्ञानिकों को दिया जाने वाला पुरस्कार है. भौतिक विज्ञान में उनके योगदान के लिए उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए 1991 के शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. यह सर्वोच्च भारतीय विज्ञान पुरस्कारों में से एक है.

मौजूदा समय में धर भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER), पुणे के भौतिकी विभाग में एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर हैं.

धर के लिए सांख्यिकीय यांत्रिकी में उनके सफर की शुरुआत रविवार को पत्रिकाओं के सप्लीमेंट पेज पर छपने वाली मनोरंजक मैथमेटिकल प्रॉब्लम्स को हल करते हुई थी. धर ने बताया कि पहेलियों को हल करते हुए उन्हें कई नई गणितीय तकनीक सीखने को मिलीं और उन्हें कई जटिल गणितीय प्रश्नों के जवाब की तरफ ले गईं.

उनका शोध इस बात के इर्द-गिर्द घूमता है कि छोटी-छोटी चीजों से मैक्रोस्कोपिक प्रोपर्टीज कैसे उभर कर आती हैं. उदाहरण के लिए एक सरल नियम यह निर्धारित करता है कि रेत के एक बड़े ढेर में क्या होता है. उनका सरल मॉडल बताता है कि रोजमर्रा की चीजों में जटिल प्रोपर्टीज को कैसे देखा जा सकता हैं.

धर इसे इस प्रकार समझाते हैं, ‘मान लीजिए कि एक सपाट मेज पर कुछ सूखी रेत धीरे-धीरे डाली जाती है. हम जानते हैं कि यह टेबल पर एक कोनिकल आकार का ढेर बना देगा. अब, अगर आप उस पर रेत किसी अन्य कण को डालते हैं, तो कभी-कभी वह कण सिर्फ एक प्वाईंट पर जाकर रुक जाएगा. दूसरी बार, यह फिसल जाएगा और अन्य कणों को तेजी से धक्का देगा और मिनी एवलांच का कारण बन जाएगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर आप एक बार में अन्य रेत के एक कण को गिराते रहेंगे, तो कभी-कभी कुछ नहीं होगा, जबकि कई बार ये कण फिसल कर नीचे गिर जाएगा और बाकी सब को भी ढहा देगा.’

वह कहते हैं कि यह एक ऐसे सिस्टम का एक सरल उदाहरण है जिसमें बाहर से किसी चीज या स्थिर गड़बड़ी को जोड़ा जाता है, लेकिन जब वह वहां से निकलती है तो झटके के साथ बाकी सब को अपने साथ ले लेती है.’


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‘टीआईएफआर स्कूल ऑफ स्टैटिस्टिकल फिजिक्स’

धर का शोध अक्सर अमूर्त गणितीय अवधारणाओं से संबंधित होता है, लेकिन उन्हें जटिल अवधारणाओं को बहुत सरल शब्दों में तोड़ने की उनकी दुर्लभ क्षमता के लिए व्यापक रूप से पहचाना जाता है.

बेंगलुरु में जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च के एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी श्रीकांत शास्त्री ने  दिप्रिंट को बताया, ‘धर सांख्यिकीय भौतिकी में कई समस्याओं का सटीक समाधान पाने के लिए सरल तरीके विकसित करने के लिए प्रसिद्ध है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वह सैद्धांतिक सांख्यिकीय भौतिकी की इस शैली को आगे बढ़ाने में छात्रों और सहयोगियों को प्रशिक्षण देने और प्रभावित करने के लिए भी जाने जाते हैं. उन्हें और प्रोफेसर मुस्तानसिर बर्मा को ‘सांख्यिकीय भौतिकी के टीआईएफआर स्कूल’ को अस्तित्व में लाने और उसे आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है.’

शास्त्री का कहना है कि यह एक सोचा समझा प्रयास नहीं था बल्कि कुछ ऐसा था जो धर के उच्च गुणवत्ता वाले शोध के नतीजों के माहौल से निकला था.

मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में सैद्धांतिक विज्ञान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना करने वाले सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी स्पेंटा वाडिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘सैंडपाइल मॉडल के समाधान ने कई प्राकृतिक घटनाओं की जानकारी देने के लिए प्रतिमान निर्धारित किए. मसलन भूकंप का मैग्निट्यूड और आफ्टरशॉक्स की फ्रीक्वेंसी, वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव और जंगल की आग आदि.

सैंडपाइल मॉडल को 1987 के पेपर में तीन भौतिकविदों परबक, चाओ तांग और कर्ट विसेनफेल्ड ने पेश किया गया था. इसे आखिरकार तीन साल बाद धर ने सुलझा लिया.

धर ने दिखाया कि रेत के कणों को ढेर पर किस क्रम में रखा गया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. एवलांच रुकने के बाद, अंतिम परिणाम वही था. उदाहरण के लिए, अगर रेत के दो कणों को दो अलग-अलग क्रम में एक स्थिर ढेर में जोड़ते हैं , पहले साइट ए पर और फिर साइट बी पर, रेत के कणों का अंतिम ढेर बिल्कुल वैसा ही निकला.

धर कहते हैं, ‘मॉडल का एक बहुत ही रोचक समाधान था और सांख्यिकीय यांत्रिकी में अन्य समस्याओं के समाधान से जुड़ा था.’

एक अन्य गणितीय समस्या ‘डायरेक्टेड साइट एनिमल्स एन्यूमरेशन प्रॉब्लम’ को हल करने का श्रेय भी धर को दिया जाता है. मान लीजिए कि एक चौकोर शतरंज बोर्ड की तरह एक टू-डाइमेंशनल लैटिस है. शतरंज की गोटियों को कैसे लगाया जाना है, इस पर बोर्ड का एक नियम है: अगर एक मोहरा रखा गया है, तो अगला मोहरा सिर्फ दो अन्य सन्निकट बक्सों में रखा जा सकता है.

इस तरह के एक सेट अप में, एक सीमित संख्या में गोटियों के साथ कितने अलग-अलग आकार बनाए जा सकते हैं? धर ने ही इस समस्या का समाधान निकाला था.

ऐसी समस्याओं के गणितीय समाधान का इस्तेमाल अणुओं की संरचना को समझने के लिए भी किया जा सकता है. जैसा कि धर कहते हैं, ‘अगर पोटेशियम और सोडियम क्लोराइड का एक सोल्युशन है और वह क्रिस्टलीकरण से गुजरता है, तो सोडियम और पोटेशियम के परमाणु किस सांद्रता पर होंगे?’


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‘हमेशा अस्त-व्यस्त रहती है उनकी डेस्क’

आईआईएसईआर में फिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर और धर के सहयोगी श्रीजीत जी.जे. ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रोफेसर धर की खासियत ये है कि वह काफी तेज दिमाग के हैं. कभी-कभी मैं उनके साथ अपने काम के पहलुओं पर चर्चा करता हूं. मेरे सवाल पूछने से पहले ही वह समझ जाते हैं कि मैं क्या जानना चाहता हूं. जब तक आप अपना सवाल पूरा करते हैं, वह जान जाते है कि समस्या कहां है और अक्सर वह मुझे तुरंत सही दिशा दिखा देते हैं.’

करीब तीस साल तक धर के साथ काम करने वाले वाडिया ने चुटकी लेते हुए कहा कि उनके सहयोगी की डेस्क हमेशा अव्यवस्थित रहती थी. उन्होंने कहा, ‘ सिर्फ वही जानते हैं कि कौन सा पेपर कहां खोजना है. कभी-कभी उनकी पत्नी अंदर आकर डेस्क को व्यवस्थित करती है. लेकिन सेल्फ-ऑर्गेनाइज डेस्क जल्दी ही अराजक स्थिति में आ जाती है.

वाडिया के मुताबिक, धर को अपने विचारों को सटीक रूप से व्यक्त करने की समझ है. वह कहते हैं, ‘ग्रेड देते समय भी धर के पास दशमलव अंकों के साथ ग्रेड देने की व्यवस्था थी. उदाहरण के लिए वह सिर्फ 8 ग्रेड नहीं देंगे, वह 8.2 या 8.53 देंगे.

उन्होंने यह भी बताया कि धर की पढ़ाने की शैली इतनी बेहतरीन है कि उनसे पढ़े हुए छात्र बाकी सबसे अलग मुकाम बनाते नजर आते हैं. इनमें से कुछ अब आईसीटीएस (बेंगलुरु में सैद्धांतिक विज्ञान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र) का हिस्सा हैं. वाडिया कहते हैं, उनके छात्र सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में कुछ सबसे प्रसिद्ध शोधकर्ता बन गए हैं, जिन्हें विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है.

यह कहते हुए कि ‘सैद्धांतिक शोध के लिए फंड प्राप्त करना अधिक कठिन है’ धर ने बताया कि केंद्र सरकार वर्तमान में ‘एप्लाइड रिसर्च को उच्च प्राथमिकता दे रही है’ एप्लाइड वर्क पर जोर दिए जाने पर उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इस विचार का प्रचार करना ‘गलत’ है कि ‘हर किसी को सिर्फ एप्लाइड वर्क पर काम करना चाहिए’.

उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि शीर्ष शोधकर्ताओं से हर समय सैद्धांतिक अनुसंधान की प्रासंगिकता के बारे में पूछा जाता है. वह कहते हैं, ‘यहां तक कि माइकल फैराडे से भी यह सवाल पूछा गया था, जबकि उस समय वह जटिल सर्किट और तारों के माध्यम से प्रवाह के प्रवाह का अध्ययन कर रहे थे.’ धर बताते हैं कि उस समय फैराडे कुछ अजीबोगरीब घटनाओं का पीछा कर रहे थे, लेकिन उनका शोध समय के साथ प्रासंगिक हो गया क्योंकि पावर ग्रिड अधिक जटिल हो गए थे.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि शोध में बहुत से नए विचार इस प्रकार के सेटअप के साथ शुरू होते हैं, लेकिन ये विचार आगे चलकर काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किए जा सकते हैं. मुझे लगता है कि प्रासंगिक और गैर-प्रासंगिक अनुसंधान का एक स्वस्थ मिश्रण होना चाहिए.’ कला के साथ अपने दृष्टिकोण की तुलना करते हुए वह कहते हैं, ‘एक लेखांकन-दिमाग वाला व्यक्ति चित्रों के इस्तेमाल पर सवाल उठा सकता है, लेकिन लोगों का एक बड़ा हिस्सा यह मानता है कि चित्र संदर्भों के एक बड़े समूह में उपयोगी हो सकते हैं.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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