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Saturday, 23 November, 2024
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1980 के दशक में अंटार्कटिका में मिला फॉसिल 25 लाख साल पहले पाए जाने वाले ‘विशालकाय, हड्डी जैसे दांत वाले’ पक्षियों का है

हमारा साप्ताहिक फीचर ScientiFix इस हफ्ते की विज्ञान से जुड़ी दुनियाभर की शीर्ष खबरें आपके सामने पेश करता है.

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अंटार्कटिका के मिला जीवाश्म पक्षियों की विशालकाय प्रजातियों का है

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि 1980 के दशक में अंटार्कटिका में मिला जीवाश्म दक्षिणवर्ती समुद्रों के आसपास मंडराने वाले विलुप्तप्राय पक्षियों के समूह की सबसे पुरानी विशालकाय प्रजातियों का है.

इन पक्षियों के पंख 21 फीट तक होते थे. इनके आगे मौजूदा समय के सबसे बड़े पक्षी वांडरिंग अल्बाट्रॉस, जिनके पंख साढ़े ग्यारह फुट के होते हैं भी बौने नजर आते हैं.

‘पेलागॉर्निथिड्स’ कहे जाने वाले ये पक्षी अल्बाट्रोस की तरह ही नजर आते थे और माना जाता है कि कम से कम छह करोड़ सालों तक पृथ्वी के महासागरों पर उड़ान भरते रहे.

खोज में शामिल अमेरिकी और चीनी शोधकर्ताओं की टीम का मानना है कि डायनासोर के विलुप्त होने के बाद ये पक्षी अपेक्षाकृत तेजी से विशालकाय आकार में विकसित हुए. इस प्रजाति के अंतिम ज्ञात पक्षी के 25 लाख साल पहले पाए जाने का अनुमान लगाया गया है, जो वह समय था जब पृथ्वी पर ठंड के साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा था और हिम युग शुरू हो गया था.

पेलागॉर्निथिड्स को उनके जबड़े पर हड्डियों के ढांचे के कारण हड्डी जैसे दांतों वाले पक्षी के रूप में जाना जाता है. हालांकि, ये ढांचा इंसानों के दांतों की तरह नहीं होता था. इसके बजाये उन पर हमारे हाथ के नाखूनों की तरह सींग के आकार में केराटिन की एक परत होती थी. ‘छद्म दांत’ कहे जाने वाला यह ढांचा इन पक्षियों के पृथ्वी के महासागरों पर एक बार में हफ्तों तक ऊंची उड़ान भरने के दौरान मछलियों और अन्य समुद्री जीवों का शिकार करने में मददगार होता था. विस्तार के लिए द इंडिपेंडेंट देखें.

खगोलविज्ञानियों ने ब्लैक होल, न्यूट्रॉन स्टार को दर्शाने वाली वाली 39 गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया.

भारतीय वैज्ञानिकों समेत खगोलविदों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने हाल में गुरुत्वाकर्षण-तरंगों के सबसे ताजा डाटा का विश्लेषण करते हुए मौजूदा समय में ब्लैक होल का काफी विस्तृत चित्र तैयार किया है.

गुरुत्वाकर्षण तरंगें अंतरिक्ष-समय के सापेक्ष उठने वाली लहरें होती हैं. लीगो वैज्ञानिक संगठन (एलएससी) और वर्गो कोलेबोरेशन- गुरुत्वाकर्षण तरंगों के दो खोजकर्ता- के नवीनतम डाटा ने 39 ब्रह्मांडीय पिंडों की खोज में मदद की है, जो विभिन्न प्रकार के ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों का हिस्सा हैं.

यह विश्लेषण बाइनरी स्टार के बीच संपर्क से जुड़े कई रहस्यों को सुलझाने में अहम साबित हो सकता है, जिसे बेहतर ढंग से समझने पर तारों की उत्पत्ति से लेकर आकाशगंगा बनने तक ब्रह्मांड के तमाम रहस्यों का पता लगाया जा सकेगा. आगे जानने लिए देखें साइंस मैगजीन.

क्षुद्रग्रह बेन्नू करीब 17.5 लाख वर्षों से पृथ्वी की कक्षा के नजदीक मौजूद

वैज्ञानिकों ने पाया है कि क्षुद्रग्रह बेन्नू लगभग 17.5 लाख वर्षों से पृथ्वी के आसपास परिक्रमा कर रहा है.

बेन्नू एक क्षुद्रग्रह है जिसके नमूने लेने के लिए इस सप्ताह नासा के ओरिसिस-रेक्स अंतरिक्ष यान ने यहां कदम रखा. इन नमूनों को 2023 तक पृथ्वी पर लाया जाना निर्धारित हैं, जिससे वैज्ञानिकों को सौर मंडल के प्राचीन इतिहास के बारे में और ज्यादा जानने में मदद मिलेगी.


यह भी पढ़ें : ब्राजील के एक अध्ययन का कहना है- डेंगू एंटीबॉडीज कोविड के खिलाफ पैदा कर सकते हैं इम्युनिटी


क्षुद्रग्रह की उम्र और पृथ्वी के निकट परिक्रमा में लगने वाले समय के बारे में और अधिक जानकारी के लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अपना सारा ध्यान इसकी सतह के ऊबड़-खाबड़ हिस्सों और ज्वालामुखी फटने के कारण बने गड्ढों पर केंद्रित किया है.

पिछला शोध बताता है कि बेन्नू पूर्व में एक बड़े क्षुद्रग्रह का हिस्सा था और मंगल ग्रह और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह बेल्ट की सर्कमस्टेलर डिस्क में परिक्रमा करते हुए किसी अन्य वस्तु से टकराकर टूट गया था.

टक्कर के बाद बेन्नू ने धीरे-धीरे क्षुद्रग्रह बेल्ट से बाहर अपना रास्ता बना लिया. फिर यह अन्य वस्तुओं से टकराया और जिनमें से कुछ ने इसकी सतह पर बने गड्ढों को मारकर उन्हें और बड़ा कर दिया.

क्षुद्रग्रह बेल्ट छोड़ने के बाद भी बेन्नू अन्य छोटी वस्तुओं से टकराता रहा, जिनमें से कुछ ने इसकी सतह पर स्थित गड्ढों पर भी चोट की. टीम का मानना है कि इन नई टक्करों के कारण भी कुछ छोटे गड्ढे बने. बेन्नू जबसे पृथ्वी के निकट की कक्षा में चला गया, ये छोटे क्रेटर नई कक्षा में इसकी चाल की समयरेखा बताते हैं.

ओरिसिस-रेक्स के डाटा इस्तेमाल करते हुए इन गड्ढों का आकार और गहराई का अध्ययन करके शोधकर्ता इनकी उम्र का लगभग 17.5 लाख वर्ष होने का अनुमान लगाने में सक्षम हुए हैं, जो यह भी दर्शाता है कि बेन्नू कितने समय से पृथ्वी की कक्षा के नजदीक है. विस्तार से देखें सीएनएन पर.

शनि के चंद्रमा पर दुर्लभ अणु वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना

नासा वैज्ञानिकों ने शनि के चंद्रमा टाइटन के वातावरण में एक अणु की पहचान की है, जिसे किसी भी अन्य वातावरण में कभी नहीं पाया गया है. अणु को साइक्लोप्रोपेनिलिडीन या C3H2 कहा जा रहा है.

न्यू साइटिंस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ऐसे रिंग के आकार के अणु जीवन के लिए आवश्यक डीएनए और आरएनए जैसे अणुओं के निर्माण में बिल्डिंग ब्लॉक्स की तरह काम करते हैं.’ शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है.

टीम ने उत्तरी चिली में एक रेडियो टेलीस्कोप वेधशाला का उपयोग करके सी3एच2 को खोजा, जिसे अटाकामा लार्ज मिलीमीटर/सबमिलीमीटर ऐरे (एएलएमए) के रूप में जाना जाता है.

यद्यपि वैज्ञानिकों ने सी3एच2 को आकाशगंगा में कुछ हिस्सों में पाया था लेकिन इसका वायुमंडल में मिलना थोड़ा आश्चर्यजनक है, क्योंकि साइक्लोप्रोपेनाइडीन अन्य अणुओं के संपर्क में आने पर आसानी से प्रतिक्रिया कर सकता है और किसी अन्य प्रजाति में बदल जाता है.

खगोलविदों ने अब तक सी3एच3 को केवल गैस और धूल के बादलों में पाया है जो स्टार सिस्टम के बीच तैरते रहते हैं. यह क्षेत्र काफी ठंडे और विभिन्न तरह की रासायनिक प्रतिक्रियाओं से परे होते हैं.

हालांकि, टाइटन का वातावरण काफी सघन है, यही वजह है कि नासा 2034 में इस चंद्रमा पर ‘ड्रैगनफ्लाई मिशन’ नामक एक प्रोब भेजने की योजना बना रहा है, इससे आगे न्यू साइंटिस्ट में देखें.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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