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Wednesday, 20 November, 2024
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होमोफोबिक और गर्भपात विरोधी प्रचारक दक्षिण भारत के साइंस कॉलेजों के कर रहे हैं दौरे

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अभिषेक क्लिफोर्ड, जो गैर सरकारी संगठन ‘रेस्क्यू 108’ के प्रमुख हैं, को ब्रिटिश मूल का माना जाता है और दावा किया जाता है कि इन्हें कई नामों से जाना जाता है।

बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान बैंगलोर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीएमसीआरआई) में आकांक्षी डॉक्टरों ने इसे आते हुए नहीं देखा होगा।

मैसूर के एक एनजीओ के सीईओ द्वारा निरोधक और सामाजिक चिकित्सा पर वार्ता के लिए सभागार में लाये गए प्रथम वर्ष के छात्रों ने इस पर चर्चा के बजाय खुद को भारत के “शिशु नरसंहार”, विवाह से पहले यौन सम्बन्ध के “पाप”, समलैंगिकता की “बुराई” और क्रम-विकास की मिथक के बारे में भाषण सुनते हुए पाया।

उपदेश देने वाले व्यक्ति थे अभिषेक क्लिफोर्ड, अपनी ही शैली के एक तस्करी विरोधी कार्यकर्ता, जो अपने स्पष्ट रूप से अवैज्ञानिक दावों के बावजूद पूरे दक्षिण भारत के विज्ञान और इंजीनियरिंग कॉलेजों के मंचों पर एक विवादास्पद व्यक्ति के रूप में उभरे हैं।

बीएमसीआरआई की एक छात्रा ने कहा, “उन्होंने हमें बताया कि एक भ्रूण को समाप्त करने और एक बच्चे को (मारने) में कोई अंतर नहीं है। एक महिला आकांक्षी डॉक्टर के रूप में मुझे यह आक्रामक लगता है कि एक मेडिकल कॉलेज में उनसे ऐसी बातें कहने के लिए कहा गया।”

उन्होंने कहा, “हालाँकि नैतिक प्रश्न हैं लेकिन भारत उन स्थानों में से एक नहीं है जहां गर्भपात एक चुनावी मुद्दा है, और इस तरह के लोग महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित कर सकते हैं।”

एक अन्य छात्रा ने कहा, “मैंने क्लिफोर्ड के भाषण में भाग लिया था, यह सोचकर कि यह विदेशों में चिकित्सा के बारे में एक शिक्षाप्रद भाषण होगा लेकिन इसके बजाय मेरा सामना छद्मवैज्ञानिक बकवास की बौछार, कि कैसे समलैंगिकता एक बीमारी है और क्रम-विकास की उपेक्षा करने वाले तोड़े-मरोड़े तर्कों, से हुआ।

यह छात्रा उन छात्र-छात्राओं में से थी जिन्होंने पिछले महीने भाषण के दौरान इसका बहिष्कार किया था।

क्लिफोर्ड, जो गैर सरकारी संगठन ‘रेस्क्यू 108’ के प्रमुख हैं, को ब्रिटिश मूल का माना जाता है और दावा किया जाता है कि इन्हें कई नामों से जाना जाता है। उनका बीएमसीआरआई भाषण एक रेड्डिट पोस्ट के बाद प्रकाश में आया जिसने इस भाषण की अंतर्वस्तु का विस्तृत विवरण दिया था। बाद में यह पोस्ट हटा दी गयी लेकिन इससे पहले इसने एक तूफ़ान की शुरुआत कर दी थी।

इस साल की शुरुआत में एक स्वायत्त संस्थान और शहर के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक सेंट जोसफ कॉलेज में एक भाषण देते हुए क्लिफोर्ड ने जोर दिया कि बाल शोषण और समलैंगिकता “पोर्न द्वारा पैदा होती है”। उनके बोलने के दौरान मंच पर मरे पैदा हुए बच्चे की ग्राफ़िक इमेजेज़ को प्रदर्शित किया गया था, उन्होंने कहा कि यह गर्भपात को कम करने का प्रयास है।

क्लिफोर्ड ने कहा कि बलात्कार से उत्पन्न होने वाले अनचाहे गर्भधारण के समय को पूरा किया जाना चाहिए। एक प्रतिभागी ने याद करते हुए बताया कि एक क्रोधित छात्र को जवाब देते हुए क्लिफोर्ड ने कहा था कि अपने गर्भधारण को जारी रखने या समाप्त करने के एक महिला के अधिकार का समर्थन और गर्भपात की कानूनी रूप से वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं ने होलोकॉस्ट में मरने वाले लोगों से कहीं अधिक लोगों को मारा है।

‘रोमांस को नष्ट करने के’ खिलाफ

अपनी वेबसाइट के अनुसार, क्लिफोर्ड का एनजीओ रेस्क्यू 108 मुख्य रूप से तस्करी की गयी युवा लड़कियों के साथ काम करना चाहता है और “शिशु नरसंहार को रोकना चाहता है” तथा भारत में “ख़त्म हो रहे रोमांस” पर काम करना चाहता है।

अन्य पसंदीदा क्षेत्रों में विज्ञान के रूप में प्रोपेगंडा बेचने के उद्देश्य वाले गर्भपात विरोधी विडियोज़ की वेबसाइट में क्रम-विकास के विज्ञान को झुठलाने वाली सामग्री और सिद्ध करता हुआ इंटेलीजेंट डिजाईन (एक विचार कि दुनिया को भगवान द्वारा बनाया गया था) शामिल था।

उनमें से एक में, क्लिफोर्ड बदली हुई संस्कृति के साथ ईश्वर और ऑप्टिमस प्राइम, एक रोबोट सुपर हीरो फ्रैंचाइज़ी से एक ‘ट्रांसफार्मर’, के बीच एक तुलना प्रस्तुत करते हैं।

वेबसाइट, ‘नैतिक जागरूकता’ कार्यक्रमों के लिए क्लिफोर्ड को आमंत्रित करने हेतु संस्थानों के प्रधानाचार्यों को प्रभावित करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करती है। अन्य चीजों के साथ साथ छात्रों से कहा जाता है कि वे अपने प्रधानाचार्यों को बताएं कि कॉलेज के युवा मोबाइल फ़ोन के कारण बिगड़ रहे हैं।

क्लिफोर्ड, जिन्हें वेबसाइट लन्दन में एक पूर्व सांख्यिकी और नीति शास्त्र प्रवक्ता के रूप में वर्णित करती है, विवाद के लिए कोई अजनबी नहीं हैं, जिन्होंने अपने दावों के समर्थन के लिए संदिग्ध सर्वेक्षणों को हड़बड़ी में जारी किया था। सामूहिक बलात्कार के साथ पोर्न कैसे जुड़ा है, इस पर मंगलुरु में 470 छात्रों पर इस तरह का एक ‘अध्ययन’ हुआ है।

2014 में उन्होंने दावा किया था कि वह गोवा के स्कूलों में दो महीने से अधिक समय के दौरे में 5000 से ज्यादा छात्रों तक पहुंचे थे। जिसमें उनका सन्देश था कि पोर्न देखना समलैंगिकता का कारण है, गर्भनिरोधक अप्रभावी होते हैं, लोगों को एक खुशहाल विवाह के लिए कुंवारे/कुंवारी रहते हुए शादी करनी चाहिए और जलवायु परिवर्तन “गर्भपात को रोकने के लिए हमसे कहने का भगवान का एक तरीका था”।

चेन्नई के एक निजी विश्वविद्यालय, एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एक वार्ता में उन्होंने सेक्स के लिए तस्करी की गयी लड़कियों की ग्राफ़िक छवियों को दिखाया और दावा किया कि मुखमैथुन महिलाओं को स्तन कैंसर के बड़े जोखिम में डालता है। उन्होंने कहा, शारीरिक सम्बन्ध धूम्रपान से दोगुना घातक हैं।

दिप्रिंट से बात करते हुए क्लिफोर्ड ने कहा कि उनके निष्कर्ष कॉलेज जाने वाले छात्रों के एक सर्वेक्षण से निकले हैं जिनसे उनके दोस्तों द्वारा देखी गई अश्लील सामग्री के प्रकार के बारे में अप्रत्यक्ष रूप से पूछा गया था। उन्होंने दावा किया कि इसमें चार दक्षिणी राज्यों के 272 विद्यालयों के 5800 विद्यार्थी शामिल थे जिसमें 16 से 21 वर्ष की उम्र के बीच के 3890 छात्र और 1910 छात्राएं शामिल थीं।

उन्होंने कहा कि पोर्न देखने वाले युवा पुरुषों के बारे में परिणामों ने उन्हें चिंतित किया था। उन्होंने कहा, “आप जानते हैं जो आप विज्ञापनों में देखते हैं वह आपके क्रय की पसंद को प्रभावित करता है। ठीक यही चीज बलात्कार के मामले में होती है।”

उन्होंने कहा, वे छात्र जो ‘वनीला पोर्न’ से ऊब चुके हैं, अन्य तरीके के पोर्न को चुन सकते हैं, जैसे कि समलैंगिक सामग्री, जो “उन्हें समलैंगिकता में तब्दील करती है”।

दिप्रिंट के साथ उनके साक्षात्कार में यौन सम्बन्धी हानिकारक कृत्यों के उग्र वर्णन उदारता के साथ उनकी बातों के शीर्ष पर थे, ठीक वैसे ही जैसे उनके भाषण हैं, जिनके बारे में वह दावा करते हैं कि वह हैदराबाद, चेन्नई, मंगलुरु, बेलगाम, गडग, बिदर, कोयम्बटूर और बेंगलुरु के साथ साथ गोवा के संस्थानों में भी भाषण दे चुके हैं।

क्लिफोर्ड ने तब कहा था कि यौन शिक्षा से परहेज की “श्रेष्ठ भारतीय परंपरा” गर्भपातों की बढती संख्या का समाधान थी।
क्लिफोर्ड द्वारा दिप्रिंट को ईमेल किये सर्वेक्षण के प्रश्न प्रतिशत के रूप में उत्तरदाताओं की राय की मांग करते हैं, उदाहरण के लिए: – “जितने लोगों को आप जानते हैं (दोस्त, रिश्तेदार, पूर्व और वर्तमान सहपाठी) उनमें से कितने प्रतिशत लोग टीन पोर्न देखते हैं?” या “कितने प्रतिशत वेबसाइटों में लेस्बियन/गे वीडियोज़ उपलब्ध हैं?”

इस डेटा ने कथित तौर पर निष्कर्ष निकाले जैसे कि “कॉलेज के 36 प्रतिशत छात्र हिंसक पोर्न, रेप और गैंग रेप देखते हैं। ये प्रति सप्ताह औसतन 19 रेप वीडियोज़ देखते हैं”। फिर परिणामों की व्याख्या के लिए एनजीओ के ‘शोध’ के आधार पर संशयात्मक गणनाओं की पेशकश की गयी।

“2011 की जनगणना के आधार पर डेटा का विश्लेषण करते हुए” क्लिफोर्ड ने दावा किया था कि हर दिन छात्रों द्वारा 13,000,000 रेप वीडियोज़ देखे जाते हैं, और कहा था कि “हर साल, दक्षिण भारत में लाखों छात्र रेप पोर्न देखने के लती हो जाते हैं।”

सर्वेक्षण किशोर बलात्कार, वेश्याओं, गर्भपात आदि के बारे में चौंकाने वाले त्रुटिपूर्ण परिणामों को तैयार करने के लिए जारी है।

रिपोर्ट “साइबर नैतिकता” के लिए भी सिफ़ारिशों की पेशकश करती है। वास्तव में, क्लिफोर्ड ने दावा किया कि इस विषय पर उनके भाषणों ने 90 प्रतिशत से अधिक लड़कों को पोर्न ब्लॉकर इंस्टाल करने के लिए राजी किया है।
‘मैं विज्ञान के प्रवक्ताओं को चुनौती देता हूँ’

इसी कड़ी में, उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने विज्ञान विद्यालयों के शिक्षकों और छात्रों को “भ्रान्ति”, जो कि क्रम-विकास का सिद्धांत था, के बारे में “प्रबुद्ध” किया था और उन्हें इंटेलीजेंट डिजाईन में यकीन करने के लिए विश्वस्त किया था।

क्लिफोर्ड ने कहा, “मैं विज्ञान कॉलेजों में जाता हूँ और इंटेलीजेंट डिजाईन पर बहस करने के लिए विज्ञान प्रवक्ताओं को चुनौती देता हूँ।” हुबली में पीसी जेबिन साइंस कॉलेज में एक ऐसी ही कथित बहस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि रसायन शास्त्र के एक प्रोफेसर और छात्रों ने दो घंटे बाद स्वीकार किया था कि वे अब क्रम-विकास में विश्वास नहीं रखते।
उन्होंने कहा, “साइंस, इंजीनियरिंग, मेडिकल कॉलेजों में छात्रों के समक्ष इसकी व्याख्या करने के बाद वे मुझे यह बताने के लिए मेरे पास आये कि वे अब विश्वास नहीं करते कि वे बंदरों के वंशज हैं।” आगे उन्होंने कहा, “अब तक वे ‘पश्चिमी नास्तिक प्रोमोटरों’ से तथ्य के रूप में केवल क्रम-विकास के बारे में सीखते आये थे। उनको किसी ने दूसरे पक्ष के बारे में नहीं बताया था। अब वे देख सकते हैं कि इसका कुछ अर्थ है।”

क्लिफोर्ड, जिनका असली नाम पॉल क्लिफोर्ड जैकब है, भारत में सबसे बड़े ‘चर्च निर्माता’ ईगल्स मिशन मिनिस्ट्री के साथ सम्बद्ध हैं। उनकी वेबसाइट इतना ज्यादा दावा करती है लेकिन क्लिफोर्ड फोन पर इसकी पुष्टि करने में संशयशील दिखाई दिए। वह अपने पूरे नाम की पुष्टि करने में भी झिझके यह कहते हुए कि उन्हें कई नामों से जाना जाता है। डायोसेसेस के सदस्य, जिनसे बेंगलुरु और चेन्नई में दिप्रिंट ने बात की थी, उनसे परिचित प्रतीत नहीं हुए थे।
हालांकि, ‘सांख्यिकी विशेषज्ञ’ ने दावा किया कि क्रम-विकास के खिलाफ उनका तर्क धार्मिक नहीं था। इंटेलीजेंट डिजाईन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह सृजनवाद नहीं है, जो इसाईयत से ताल्लुक रखता है। इंटेलिजेंट डिज़ाइन केवल जीवन की उत्पत्ति को समझाने के लिए डीएनए जैसे वैज्ञानिक साक्ष्य का उपयोग करता है। यह किसी भी धर्म के किसी भी निर्माता के लिए अनुमति देता है।”
‘हम केवल एक मंच देते हैं’

क्लिफोर्ड के काम और एनजीओ को न केवल उन विश्वविद्यालयों और विद्यालयों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है जिनमें वह भाषण देते हैं बल्कि दुर्व्यवहार और पोर्न व्यसन के पीड़ितों द्वारा भी इसे वित्तपोषित किया जाता है। उन्हें आशा है कि वह सीएसआर के हिस्से के रूप में यौन तस्करी को नियंत्रित करने की उम्मीद रखने वाले कॉर्पोरेट समर्थकों के साथ साथ विदेशी निवेशकों को भी अपने साथ जोड़ लेंगे।

क्लिफोर्ड द्वारा फैलाये जाने वाले होमोफोबिक और धर्मांध एजेंडा के बारे में जानकारी आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके साथ ही एलजीबीटी समर्थन समूह ओरिनम द्वारा भी एक पोस्ट में इस पर प्रकाश डाला गया है जो कि उनके नाम के लिए पहले गूगल परिणामों में से एक है।

तो सवाल उठता है: कॉलेज द्वारा ऐसे वातावरण, जो उनके भाषण को वैधता देता है, में छात्रों को संबोधित करने के लिए उन्हें क्यों बुलाया जाता है।

बीएमसीआरआई के संबोधन के बारे में पूछे जाने पर, चिकित्सा शिक्षा निदेशालय के उप निदेशक एम दयानंद ने कहा कि यह केवल “कॉलेज का मामला है जो उन्हें बोलने के लिए आमंत्रित करता है”। उन्होंने आगे कहा, “निदेशालय इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं है। हम अलग-अलग कॉलेजों में छात्र निकायों या अन्य समितियों द्वारा आयोजित अतिथि गतिविधियों के लिए अनुमति देने या इनकार करने की स्थिति में नहीं हैं।”

बीएमसीआरआई के एक वरिष्ठ शिक्षक सदस्य ने कहा कि क्लिफोर्ड पिछले डीन के अंतर्गत पहले भी कैंपस में आये थे और कहा कि दोनों बार उन्होंने खुद कॉलेज से संपर्क किया था।

उन्होंने कहा कि वे खुद क्लिफोर्ड के हालिया भाषण, जिसके बारे में उन्होंने उम्मीद की थी कि यह डॉक्टर-रोगी संबंधों पर केन्द्रित नैतिकता के बारे में होगा, से आश्चर्यचकित हुए थे।

एक अन्य शिक्षक सदस्य ने स्पष्ट किया, “हम केवल एक मंच देते हैं। जब कर्मचारी मुझे बताते हैं कि वे किसी को बोलने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, तो हम इसे कराने की व्यवस्था करते हैं। हम पहले से ही चर्चा की अंतर्वस्तु के बारे में नहीं जानते न ही निरीक्षण करते हैं।”

सेंट जोसेफ के एक शिक्षक सदस्य ने कहा कि क्लिफोर्ड ने संस्थान के परिसर मंत्रालय से संपर्क किया था जिसे इस साल की शुरुआत में कैथोलिक छात्रों के लिए कार्यक्रम आयोजित करने का कार्य सौंपा जाता है। उन्होंने आगे कहा, हालाँकि, क्लिफोर्ड के पिछले कारनामे को देखते हुए उन्होंने उम्मीद नहीं की थी कि क्लिफोर्ड को फिर से परिसर में भाषण की इज़ाज़त दी जाएगी।

सेंटर फॉर द प्रिवेंशन एंड हीलिंग ऑफ चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज – एनजीओ तुलिर के साथ काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता विद्या रेड्डी ने कहा कि यौन शिक्षा पर रोक लगाने की वकालत करता हुआ क्लिफोर्ड का भाषण हानिकारक था।
उन्होंने कहा, यौन शिक्षा पर रोक के बारे में विचार रखना किसी भी बच्चे या युवा व्यक्ति के सर्वोत्तम हित और कल्याण के पूरी तरह से खिलाफ है। “यह वास्तव में बच्चों के लिए आरटीआई पर बाल अधिकार (सीआरसी) के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि का उल्लंघन है।” सीआरसी का कहना है कि सभी किशोरों के पास गर्भ निरोधक तरीकों, गर्भपात देखभाल और बच्चों के अनुकूल यौन स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच होनी चाहिए।

उन्होंने, वकालत करते हुए कि यौन शिक्षा पर रोक व्यर्थ है, कहा, “हम एक यौनकृत और संयुक्त दुनिया में रहते हैं। वयस्कों को आवश्यकता है कि वे इस यौनकृत दुनिया में किशोरों को रास्ता दिखाएँ और उन्हें वह साधन दें जिससे वे प्रभावी ढंग से और सुरक्षित तरीके से ऐसा करने में सक्षम हो सकें।”होमोफोबिक और गर्भपात विरोधी प्रचारक दक्षिण भारत के साइंस कॉलेजों के कर रहे हैं दौरे

अभिषेक क्लिफोर्ड, जो गैर सरकारी संगठन ‘रेस्क्यू 108’ के प्रमुख हैं, को ब्रिटिश मूल का माना जाता है और दावा किया जाता है कि इन्हें कई नामों से जाना जाता है।

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