नई दिल्ली: 22 जनवरी को हुई एक बैठक में जवाहरलाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की अकादमिक काउंसिंल ने स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग में 15 प्रतिशत अतिरिक्त सीटों पर विदेशी छात्रों के दाख़िले को मंज़ूरी दे दी. इस कदम के पीछे ये सोच है कि इससे स्कूल का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में मदद मिलेगी जिससे विविधता आएगी.
इस प्रोग्राम के लिए मिनिमम एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया और अहम ज़रूरतों को तय करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के डायरेक्ट एडमिशन फॉर स्टूडेंट्स फ्रॉम अब्रॉड यानी डीएएसए स्कीम का सहारा लिया जाएगा. डीएएसए के तहत स्क्रीनिंग और दाख़िला एसएटी विषयों के स्कोर (गणित लेवल- 2, भैतिकी और रसायन) पर आधारित होता है.
हालांकि, कोविड- 19 महामारी की वजह से इस साल के अकादमिक सत्र में देरी हो गई है और उम्मीद है कि ये सितंबर से शुरू होगा.
जेएनयू के कुलपति मामीडाला जदगीश कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘ख़ास तौर से दिल्ली एनसीआर और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले विदेशी छात्रों के लिए ये अवसर बेहद सुनहरा है.’
अतरराष्ट्रीय छात्रों की अहमियत
जेएनयू में इंजीनियरिंग प्रोग्राम की शुरुआत 2018 में हुई थी और वीसी जगदीश कुमार के मुताबिक ये एक कारण है कि भारत सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में दूसरे नंबर की यूनिवर्सिटी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में उतना अच्छा नहीं कर पातीं.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ाने के बारे में भी प्रोफेसर जगदीश कुमार ने कहा, ‘टॉप-रैंक की अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी विज्ञान और तकनीक के मामले में काफ़ी बेहतर होती हैं और उनके यहां अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या भी अच्छी ख़ासी होती है.’
उन्होंने कहा, ‘एक यूनिवर्सिटी में जब अंतरराष्ट्रीय छात्रों का दाख़िला होता है तो इससे स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय छात्रों में विविधता आती है और दूसरे देशों की सांस्कृतिक विरासत का पता चलता है. जेएनयू में भारत के हर हिस्से से छात्र आते हैं, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के पास उनकी भाषा, उनका रहन-सहन सीखने का अवसर होगा और कभी न टूटने वाली दोस्ती बनाने का मौका भी होगा.’
वीसी कुमार ने कहा, ‘इस प्रक्रिया में दुनिया भर के छात्रों को जोड़ने के अलावा शांति और एक-दूसरे की संस्कृति के प्रति बेहतर समझ को बढ़ावा देने की क्षमता है. यह छात्रों को वैश्विक मुद्दों के बारे में एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करेगा. ये आज की वैश्विक दुनिया के लिए आवश्यक है. अंतर्राष्ट्रीय छात्र जब अपने घर वापस जाएंगे तो वो जेएनयू और भारत के राजदूत की तरह होंगे.’