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Friday, 22 November, 2024
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मणिपुर हिंसा में स्कूल जला दिया गया- कुकी-ज़ो मालिकों ने राज्य से मुआवजा मांगा, सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

कुकी-ज़ो याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हथियारबंद लोगों ने इंफाल में स्कूल की घेराबंदी की, महिलाओं और बच्चों सहित 25 को बंधक बना लिया और मणिपुर पुलिस ने दंगाइयों के साथ 'मिलीभगत' के बाद इस काम को अंजाम दिया.

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नई दिल्ली: इस साल मई में मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान इम्फाल में पिछले 25 वर्षों से चल रहे एक स्कूल को भी जला दिया गया. इस स्कूल को चलाने वाले कुकी-ज़ो परिवार ने संस्था और इसके ढांचें की रक्षा करने में विफल रहने के लिए राज्य से मुआवजे की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

हमेशा के लिए विस्थापित किए जाने वाले इस परिवार का कहना है कि उन्हें स्कूल छोड़ने और चुराचांदपुर, मणिपुर में दूर के परिवार के रिश्तेदारों की मेहरबानी पर रहने के लिए मजबूर कर दिया है . और चूंकि इम्फाल के कुछ हिस्से लगातार हिंसा की चपेट में हैं. इसलिए कुकी-ज़ो समुदायों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में दावा किया है कि इम्फाल में उस जगह अब बसना और अपना जीवन शुरू करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है.

कुकी जो परिवार के लोग अब यह नहीं जानते हैं कि क्या कभी वे अपना स्कूल फिर से वहां शुरू कर सकेंगे. अब ये परिवार चाहता है कि अदालत मणिपुर सरकार को निर्देश दे कि वह संस्थान को हुए नुकसान की भरपाई करे और अपराधियों को गिरफ्तार करने और जांच में उसकी विफलता के कारण हुए नुकसान की भी भरपाई करे.

याचिका 24 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील साई विनोद से याचिका की एक प्रति शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति को उपलब्ध कराने को कहा, जो राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई पुनर्वास योजनाओं पर विचार कर रही है.

सीजेआई ने परिवार की ओर से पेश हुए वकील साई विनोद से कहा, “हमारे मन में कुछ है, कृपया याचिका की एक प्रति समिति को दें.”

इम्फाल में सेंट पीटर स्कूल के मालिकों में से एक, नियांगथियानवुंग द्वारा दायर याचिका में इस बात का विस्तृत विवरण शामिल है कि कैसे स्कूल पर हमला किया गया, जिसके बाद बंधक की स्थिति पैदा हुई, जिसमें झड़प के समय स्कूल परिसर में शरण लेने वाले 39 लोगों को बंधक बना लिया गया.


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‘नरसंहार की भयावहता’

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि स्कूल इस साल अपनी रजत जयंती मनाने की तैयारी कर रहा था, जब मैतेई के एक समूह ने कथित तौर पर इसमें तोड़फोड़ की. याचिका में अफसोस जताया गया है, “4 मई को, स्कूल, इसकी इमारतें, इसकी विरासत और इसका मिशन जला दिया गया, नष्ट कर दिया गया और हमेशा के लिए खो दिया गया.”

याचिका में कहा गया है कि एक दिन पहले, 3 मई को, जब एक हिंसक भीड़ ने इम्फाल पश्चिम में राष्ट्रीय खेल गांव (एनजीवी) के जोन -4 में चर्चों, घरों और कुकी-ज़ो आदिवासियों के अन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करना शुरू कर दिया, तो कुछ परिवार सुरक्षा के लिए स्कूल की ओर भागे.

उन्हें उम्मीद थी कि स्कूल हथियारबंद लोगों से बच जाएगा.

आधी रात तक करीब 34 लोग स्कूल परिसर में थे. उनका आरोप है कि मामले को और भी बदतर बनाने के लिए स्कूल और आसपास के इलाकों की बिजली काट दी गई.

अगले दिन, 4 मई को, एक भीड़ स्कूल गेट के बाहर जमा हो गई और पथराव करने लगी और अतिक्रमण करने का प्रयास किया नियांगथियानवुंग की सास, स्कूल की संस्थापक और प्रिंसिपल ने, स्कूल के अंदर आश्रय लेने वाली महिलाओं और बच्चों की संख्या को देखते हुए, भीड़ को उन्हें छोड़ देने का भी आग्रह किया.

हालांकि, याचिका के अनुसार, भीड़ जबरन परिसर के अंदर घुस गई और कक्षाओं, कार्यालयों, छात्रावासों और आवासों को जला दिया. स्कूल के फुटबॉल मैदान को भी आग लगा दी गई.

फिर भीड़ उन लोगों की ओर मुड़ी जो स्कूल के अंदर छिपे हुए थे और उनके आधार कार्ड की जांच की. दो तांगखुल नागा परिवारों ने भी इमारत के अंदर शरण ले रखी थी, उन्हें सुरक्षित बाहर जाने की अनुमति दे दी गई, जबकि याचिकाकर्ता और उसके दो नाबालिग बेटों सहित शेष 25 लोगों को जिसमें 12 महिलाएं और 9 बच्चे शामिल थे को बंधक बना लिया गया.

बाद में, उन्हें एक ऐसी जगह की ओर चलने के लिए मजबूर किया गया जिसके बारे में उन्हें पता नहीं था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस प्रक्रिया में उन्होंने एक पुलिस बूथ पार किया जो स्कूल गेट से 30 मीटर की दूरी पर स्थित था और फिर भी उन्हें वहां मौजूद पुलिस कर्मियों से कोई मदद नहीं मिली.

हिरासत में लिए जाने के आठ घंटे बाद, 25 लोगों को “एक पुलिस ट्रक के अंदर फेंक दिया गया और 1 मणिपुर राइफल्स कैंप में ले जाया गया”, जो याचिका के अनुसार, कुछ किलोमीटर दूर था.

अंततः, 8 मई को सेना की सुरक्षा में नियांगथियानवुंग और उनके दो बेटे सुरक्षित गुवाहाटी के लिए उड़ान भड़ी जबकि उनकी सास जो वहीं रुक गईं थीं को चुराचांदपुर भेज दिया गया.

याचिका में लिखा गया है कि, “याचिकाकर्ता और उसके परिवार को हुई क्षति और आघात असाध्य है. सेंट पीटर स्कूल की स्थापना 1999 में याचिकाकर्ता की सास और उनके दिवंगत पति द्वारा की गई थी और इसमें कुकी-ज़ो, मैतेई और नागाओं सहित सभी समुदायों के बच्चों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्रदान करने की एक लंबी विरासत है. ”

हालांकि परिवार को अभी तक नुकसान की पूरी सीमा का आकलन करना बाकी है, उन्होंने अदालत को एक मोटा अनुमान प्रदान किया है, जिसके अनुसार उन्हें 14 करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्ति का नुकसान हुआ है. इसमें स्कूल के बुनियादी ढांचे में सुधार, एक नई लाइब्रेरी और एक मनोरंजक कक्ष का निर्माण करने के लिए परिवार द्वारा लिया गया ऋण और व्यक्तिगत उधार शामिल है.

“नरसंहार की भयावहता” का अनुभव करने के बाद, परिवार ने इसके परिणामस्वरूप हुए मानसिक आघात के लिए मुआवजे की भी मांग की है. “पुलिस ने कुछ नहीं किया क्योंकि गुस्साई भीड़ ने परेड की और उन्हें बंधक बना लिया. याचिका में कहा गया है कि उन्होंने भीड़ के साथ मिलकर काम किया, संवैधानिक और आधिकारिक कर्तव्यों के प्रति गंभीर लापरवाही की तो बात ही छोड़िए.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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