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Sunday, 6 October, 2024
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केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की योजनाओं को संघीय ढांचे की रक्षा करनी चाहिए: संसदीय समिति

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नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) संसद की एक समिति ने सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन आगाह किया है कि राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमों को तैयार करते समय “अत्यधिक विवेक” का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि देश की संघीय विशेषताएं ‘प्रभावित’ न हों।

कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर स्थायी समिति ने बृहस्पतिवार को सहकारिता मंत्रालय के लिए ‘अनुदान की मांग’ से संबंध के बारे में अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की।

समिति ने ‘सहकारिता से समृद्धि की ओर’ दृष्टि को साकार करने के मकसद से देश में सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाने के सरकार के फैसले पर खुशी व्यक्त की।

समिति ने कहा कि ‘सहकारी समितियां’ का विषय, संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची- II (राज्य सूची) की मद संख्या 32 में शामिल राज्य का विषय है। राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत सहकारी समितियां, संबंधित सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा प्रशासित होती हैं।

सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सहकारी कानूनों के तहत कई सहकारी संस्थाएं भी स्थापित की गई हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, समिति … यह विचार व्यक्त करती है कि सहकारिता मंत्रालय राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियों/योजनाओं/कार्यक्रमों को निर्धारित करने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करेगा ताकि देश की संघीय विशेषताओं पर कोई प्रभाव न पड़े और सहकारी क्षेत्र के सभी अंशधारक विधिवत लाभान्वित हों’’

मंत्रालय को उनकी अनुमानित 3,250 करोड़ रुपये की मांग के मुकाबले वर्ष 2022-23 के बजट अनुमानों में 900 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। समिति को उम्मीद थी कि मंत्रालय मासिक व्यय योजना को लागू करेगा जैसा कि वर्ष 2022-23 की विस्तृत अनुदान मांगों में निहित है।

समिति ने मंत्रालय की नई नीतिगत पहलों का भी स्वागत किया और आशा व्यक्त की कि नई राष्ट्रीय सहयोग नीति मुद्दों के गहन विश्लेषण के बाद विकसित की जाएगी और क्षेत्र में सभी अंशधारकों के साथ व्यापक परामर्श के माध्यम से सुधारात्मक उपचारात्मक उपायों को अंतिम रूप दिया जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘मंत्रालय के अनुसार, सहकारी क्षेत्र प्रभावी प्रशासन की कमी, नेतृत्व और पेशेवर प्रबंधन, निम्न स्तर के प्रौद्योगिकी अपनाने आदि जैसे गंभीर मुद्दों का सामना कर रहा है, जिससे सहकारी समितियों का त्वरित और समान विकास प्रभावित हो रहा है। समिति को यकीन है कि ये बाधाएं हैं किसी भी तरह से हटाने की जरूरत है।’’

भाषा राजेश राजेश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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