नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने शुक्रवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के उस बयान की निंदा की है, जिसमें उसने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है.
बयान के मुताबिक एससीबीए की कार्यकारी कमेटी ने कहा कि बीसीआई का 23 अप्रैल, 2023 को एक प्रेस बयान जारी करना बेहद अनुचित है खासकर तब जब मामला सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास है.
एससीबीए ने कहा, ‘यह कोर्ट की ड्यूटी है कि वह याचिक की सुनवाई करे और यह तय करे कि इस मामले पर न्यायालय को क्या फैसला देना चाहिए या उसे संसद के विवेक पर छोड़ देना चाहिए.’
23 अप्रैल को, बीसीआई ने देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था.
बीसीआई के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने कहा था कि यह प्रस्ताव देश की सभी बार काउंसिल के अध्यक्ष के साथ मीटिंग करके पास किया गया था.
इतिहास के हिसाब से, बीसीआई ने कहा कि मानव सभ्यता और संस्कृति की स्थापना के बाद से, विवाह को प्रजनन और मनोरंजन के दोहरे मकसद के लिए जैविक पुरुष और महिला के बीच शादी के तौर पर वर्गीकृत किया गया है.
इस पृष्ठिभूमि में, किसी भी विधि न्यायालय द्वारा विवाह जैसी मूलभूत अवधारणा में आमूल-चूल परिवर्तन करना विनाशकारी होगा, चाहे उसका इरादा कितना ही नेक क्यों न हो.
बार काउंसिल ने कहा था, सामाजिक और धार्मिक अर्थों से संबंधित मुद्दों को आमतौर पर न्यायालयों द्वारा सम्मान के सिद्धांत के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए.
परिषद ने कहा कि विशाल बहुमत का मानना है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला देश की संस्कृति और सामाजिक-धार्मिक ढांचे के खिलाफ होगा.
मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ‘एलजीबीटीक्यूआई + समुदाय के लिए विवाह की समानता अधिकारों’ से संबंधित याचिकाओं के एक बैच का निपटारा कर रही है. संविधान की पीठ ने याचिका पर सुनवाई 18 अप्रैल से शुरू की है.
वहीं केंद्र ने याचिकाओं का विरोध किया है. याचिकाओं में से एक ने पहले एक कानूनी ढांचे के न होने का मुद्दा उठाया था जो एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्यों को अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने की अनुमति देता हो.
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