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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशसमलैंगिक वकील को जज बनाने पर फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम केंद्र से इनपुट मांगेगा

समलैंगिक वकील को जज बनाने पर फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम केंद्र से इनपुट मांगेगा

कोलेजियम ने 2 मार्च को सौरभ कृपाल की पदोन्नति पर अपना फैसला टाल दिया. अक्टूबर 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट कोलेजियम की तरफ से उनके नाम की सिफारिश किए जाने के बाद यह चौथा मौका है जब इस पर फैसला टाला गया है.

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नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एस.ए. बोबडे की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम संभवत: केंद्र सरकार को लिखेगा कि अधिवक्ता सौरभ कृपाल पर पूर्व कोलेजियम की तरफ से अप्रैल 2019 में मांगी गई अतिरिक्त जानकारी जल्द से जल्द मुहैया कराई जाए.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, इसका उद्देश्य यह है कि अधिवक्ता को दिल्ली हाई कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त करने के मामले में जल्द फैसला लिया जा सके.

2 मार्च को सीजेआई और दो अन्य कोलेजियम सदस्यों—एन.वी. रामन और आर.एफ. नरीमन—के बीच एक बैठक में कृपाल के नाम पर विचार-विमर्श हुआ, लेकिन कोलेजियम ने सरकार की तरफ से अपेक्षित इनपुट मिलने तक अपना फैसला टाल दिया.

यह चौथा मौका था जब कृपाल के नाम पर फैसला टाल दिया गया, जबकि दिल्ली हाई कोर्ट के कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से उनके नाम की सिफारिश अक्टूबर 2017 में की थी.

कृपाल, जो कि समलैंगिक हैं, ने पिछले साल सितंबर में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि उनका मानना है कि शायद उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण ही सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कोलेजियम ने उनकी पदोन्नति के बारे में कोई फैसला नहीं लिया. यह पहली बार था जब अधिवक्ता ने इस मुद्दे पर बात की थी.

सुप्रीम कोर्ट के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि कोलेजियम ने अपनी 2 मार्च की बैठक में काफी समय से लंबित 23 में से 18 प्रस्तावों पर चर्चा की.

इनमें कुछ नाम ऐसे थे जिन्हें केंद्र सरकार की तरफ से पुनर्विचार के लिए भेजा गया था और कुछ वो थे जिन्हें पूर्व में कुछ अतिरिक्त जानकारी मांगे जाने के साथ कोलेजियम की तरफ से टाला जा चुका था.

सूत्र ने आगे बताया, ‘कृपाल का नाम 18 प्रस्तावों में शामिल था. लेकिन उनके बारे में अधिक जानकारी मांगने की पिछले कोलेजियम की राय के मद्देनजर मौजूदा कोलेजियम को लगा कि अभी सरकारी इनपुट का इंतजार करना ही बेहतर होगा. सीजेआई ने यह कहते हुए केंद्र को पत्र लिखने का सुझाव दिया कि सरकार को रिमाइंड कराया जाए कि पूर्व में कोलेजियम की तरफ से कृपाल के नाम को लेकर जानकारी मांगी गई थी.’

एक अन्य सूत्र ने कहा कि कोलेजियम ने सर्वसम्मति से बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा न करने पर भी सहमति जताई.

सूत्र ने कहा, ‘अगर सरकार उचित अवधि के भीतर जवाब देने में विफल रहती है तो कोलेजियम इस मामले में अपने फैसले पर आगे बढ़ेगा.’

वकील का ‘विदेशी साथी’

सुप्रीम कोर्ट कृपाल की नियुक्ति पर कोई ठोस निर्णय लेने में असमर्थ रहा है, जबकि उसने सितंबर 2018 में धारा 377 को रद्द कर दिया था, जिसमें समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंधों को अपराध माना गया था.

कृपाल के नाम पर दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से की गई सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 1 अप्रैल 2019 को तीसरी बार टाल दिया था.

तब सुप्रीम कोर्रट कोलेजियम का नेतृत्व पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई कर रहे थे और मौजूदा सीजेआई बोबडे और जस्टिस रामन इसके सदस्य थे. इस कॉलेजियम ने तब कृपाल के सेक्सुअल ओरिएंटेशन पर इंटेलिजेंस ब्यूरो के इनपुट के मद्देनजर सरकार से अतिरिक्त जानकारी मांगने का फैसला किया था.

आईबी ने तब कृपाल के फेसबुक अकाउंट को खंगाला था और ‘विदेशी’ साथी के साथ उसकी तस्वीर अटैच की थीं. इन फोटो में कुछ भी गलत या आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन उनकी पदोन्नति को लेकर कोई प्रत्यक्ष आपत्ति भी नहीं थी.

हालांकि, आईबी की रिपोर्ट में कहा गया था कि वकील का विदेशी साथी सुरक्षा के लिहाज से जोखिम बन सकता है.


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अन्य फैसले

इस बीच, कोलेजियम ने 2 मार्च को पारित एक प्रस्ताव में हाई कोर्ट न्यायाधीशों के रूप में पांच वकीलों के नाम पर अपने पूर्व के निर्णय पर मुहर लगाई, जिसे केंद्र की तरफ से पुनर्विचार के लिए लौटाया गया था. इसमें से तीन नामों को केरल के लिए मंजूरी दे दी गई थी, जबकि एक नियुक्ति कर्नाटक के लिए और एक अन्य हिमाचल प्रदेश के लिए थी.

कोलेजियम ने केरल के एक न्यायिक अधिकारी की हाई कोर्ट न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति को भी मंजूरी दी.

मध्यप्रदेश में हाई कोर्ट न्यायाधीशों के रूप में वकीलों की पदोन्नति से जुड़े तीन नए प्रस्ताव कोलेजियम ने मंजूर किए, वहीं पंजाब के लिए एक और जम्मू-कश्मीर के लिए एक नियुक्ति, जिसे पहले स्थगित कर दिया गया था, पर भी अंतत: मुहर लगा दी गई.

कोलेजियम ने पंजाब और हरियाणा के एक वकील को प्रतिकूल खुफिया जानकारी के आधार पर हाई कोर्ट का जज नियुक्त न करने के सरकार के फैसले को भी स्वीकार कर लिया.

चेन्नई के एक वकील की नियुक्ति, जिसकी सिफारिश सुप्रीम कॉलेजियम को चार साल पहले भेजी गई थी, को इस आधार पर नामंजूर कर दिया गया कि हाई कोर्ट जज के रूप में उनके पास दो साल से भी कम का कार्यकाल होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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