नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नयी याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार किए जाने पर सहमति व्यक्त की।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की इस दलील पर गौर किया कि एक नयी याचिका दायर की गई है और उसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जिन मामलों में उल्लेख पर्चियां दी जाती हैं, हम उनमें ज्यादातर के मामले में एक सप्ताह के भीतर तारीख दे देते हैं।’’
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर याचिका सहित 10 याचिकाएं पहले से ही प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष 16 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा उल्लखित नयी याचिका हरिशंकर जैन और मणि मंजुल द्वारा भारत संघ, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और केंद्रीय वक्फ समिति के खिलाफ दाखिल की गई है।
याचिका में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 द्वारा संशोधित वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि ये प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25,26,27 और 300ए का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये मुस्लिम समुदाय को ‘‘अनुचित लाभ’’ प्रदान करके ‘‘भारतीय समाज में असंतुलन और असामंजस्य’’ पैदा करते हैं।
इसमें कहा गया है कि इन कानूनी प्रावधानों के माध्यम से वक्फ बोर्ड को अत्यधिक शक्तियां प्राप्त हो गई हैं, जिसके कारण देश भर में बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी भूमि पर कब्जा हो गया है।
याचिका में कहा गया, ‘‘यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि पूरे देश में आम जनता व्यक्तियों की संपत्ति और सार्वजनिक संपत्तियों पर धोखे से या जबरन कब्जा करने के अवैध कृत्यों से व्यथित है, उन्होंने विभिन्न उच्च न्यायालयों में 120 से अधिक याचिकाएं दायर की हैं और वे निर्णय के लिए लंबित हैं।’’
केंद्रीय गृह मंत्री के 2025 के संसदीय वक्तव्य का हवाला देते हुए इसमें कहा गया कि वक्फ-पंजीकृत भूमि में 2013 में 18 लाख एकड़ के आंकड़े से 2025 में 39 लाख एकड़ तक ‘‘तेज वृद्धि’’ हुई।
याचिका में कहा गया कि बयान में वक्फ भूमि रिकॉर्ड में विसंगतियों, विशेष रूप से पट्टे पर दी गई संपत्ति के आंकड़ों के गायब होने के संबंध में चिंताओं को भी उजागर किया गया है।
इसमें यह घोषित करने का अनुरोध किया गया कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अधीन नहीं होना चाहिए और केंद्र को वक्फ के रूप में दर्ज ‘‘ग्राम पंचायत और अन्य सार्वजनिक भूमि’’ को वापस लेने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
इसमें गैर-मुस्लिमों द्वारा वक्फ निर्णयों को दीवानी अदालतों में चुनौती देने के अधिकार को मान्यता देने तथा संशोधित कानून के कई प्रावधानों को “असंवैधानिक” होने के आधार पर रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में कहा गया, ‘‘यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि 1947 में विभाजन के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम निवासी पाकिस्तान चले गए। बड़ी संख्या में हिंदू अपनी बहुमूल्य संपत्ति और सामान छोड़कर पाकिस्तान के नए बने क्षेत्र से भारत चले आए। संसद ने पाकिस्तान से भारत आने वाले प्रवासियों को समायोजित करने के लिए प्रशासन संपत्ति अधिनियम 1950 पारित किया।’’
इसमें कहा गया कि पाकिस्तान चले गए मुसलमानों की संपत्ति भारत सरकार के अधीन है।
याचिका कहा गया, ‘‘पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के कब्जे वाली संपत्तियों का धार्मिक चरित्र अपनी पवित्रता खो चुका है और वे अब वक्फ या धार्मिक संपत्ति नहीं रह गई हैं। इसलिए, खाली कराई गई संपत्तियों को धार्मिक संपत्ति नहीं माना जा सकता और इसका कोई भी हिस्सा वक्फ बोर्ड को नहीं सौंपा जा सकता।’’
याचिका में कानून की धारा 3(आर) का हवाला दिया गया, जिसमें शामलात देह (ग्राम पंचायत की भूमि) को वक्फ भूमि की परिभाषा में शामिल किया गया है।
इसमें धारा 4, 6(1), 7(1) की वैधता को भी चुनौती दी गई है, जो कथित तौर पर सार्वजनिक भागीदारी या गैर-मुस्लिम हितों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान नहीं करती हैं।
याचिका में धारा 8 को भी चुनौती दी गई है, जिसमें वक्फ भूमि सर्वेक्षण के लिए राज्य के व्यय को अनिवार्य किया गया है। इसमें कहा गया है कि यह सार्वजनिक धन का दुरुपयोग होगा।
इसमें अधिनियम की धारा 28 की वैधानिकता को भी चुनौती दी गई है, जो वक्फ बोर्ड को जिला मजिस्ट्रेट को बाध्यकारी निर्देश जारी करने की अनुमति देती है।
याचिका में वक्फ अधिनियम की धारा 108 (2025 में इसके निरस्त होने से पहले) की वैधता को भी चुनौती दी गई है, जो विभाजन के दौरान छोड़ी गई संपत्तियों – निष्क्रांत संपत्तियों – को वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित करने की अनुमति देती है।
इसमें कहा गया है कि यह हस्तांतरण असंवैधानिक है तथा यह विस्थापित हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें ऐसी संपत्तियों को सरकार से जोड़कर रखे जाने का आह्वान किया गया है।
भाषा नेत्रपाल पवनेश
पवनेश
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