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Friday, 22 November, 2024
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SC ने पार्टियों से कहा-प्रत्याशियों का आपराधिक रिकॉर्ड पब्लिश करें, EC को इसकी निगरानी का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की भागीदारी पर रोक लगाने के लिए देश के विधि निर्माताओं यानि की हमारे सांसदों से की गयी उसकी तमाम अपीले अब तक अनसुनी पड़ी है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राजनीतिक दलों से अपनी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने वाले सभी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की जानकारी अपनी वेबसाइट के होमपेज पर अपडेट करने का निर्देश दिया और साथ ही भारत के चुनाव आयोग को भी उसी विवरण के साथ एक मोबाइल एप्लिकेशन तैयार करने के लिए कहा.

जस्टिस आर.एफ. नरीमन और जस्टिस बी.आर. गवई की पीठ ने अपने फ़ैसले कहा कि इन दोनों कदमों से ‘मतदाता के सूचना के अधिकार को अधिक प्रभावी और सार्थक’ बनाया जा सकेगा तथा मतदाताओं को उनके मोबाइल फोन पर हीं ऐसे उम्मीदवारों के बारे में जानकारी मिल जाएगी.

इसके अलावा चुनाव आयोग को यह निर्देश भी दिया गया कि वह प्रत्येक मतदाता को ‘उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी की उपलब्धता’ के सन्दर्भ में जागरूक करने हेतु जागरूकता अभियान चलाए.

ये निर्देश दिल्ली के एक वकील द्वारा दायर उस अवमानना याचिका पर पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले का हिस्सा थे, जिसमें उन्होने यह आरोप लगाया गया था कि राजनीतिक दलों ने पिछले बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान शीर्ष अदालत के फरवरी 2020 के उस फ़ैसले का उल्लंघन किया था, जिसमें यह कहा गया था कि पार्टियों को उन उम्मीदवारों से संबंधित आपराधिक इतिहास की घोषणा करनी चाहिए. जिन्हे उन्होने चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है.

इसमें यह भी कहा गया था कि पार्टियों को ऐसे उम्मीदवार के चयन के पीछे के कारणों का खुलासा करने की भी आवश्यकता होगी, ताकि मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते समय ‘पूर्ण जानकारी के आधार पर’ अपना निर्णय ले सकें. इस आदेश के अनुसार, पार्टियों को एक स्थानीय दैनिक के साथ-साथ एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में भी उम्मीदवारों के पूर्व कृत्यों को प्रकाशित एवम् प्रचारित करना था.

इस अवमानना याचिका पर अपना फैसला सुनाने के क्रम में इस पीठ ने याचिका में अवमाननाकर्ता के रूप में उल्लिखित 10 में से नौ पक्षों को इसके लिए दोषी पाया. इसने उनमें से छह – भाजपा, कांग्रेस, राजद, भाकपा, लोजपा और जनता दल (यू) – को 1-1 लाख रुपये का जुर्माना जमा करने का आदेश दिया, क्योंकि अदालत इस नतीजे पर पहुंची थी कि उन्होंने इसके 2020 के फैसले का केवल आंशिक रूप से अनुपालन किया था. इसने दो पार्टियों – सीपीआई (एम) और एनसीपी – पर 5-5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया, क्योंकि उन्होंने उसके निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन किया था.


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‘सांसदों की अंतरात्मा से अपील’

चुनाव आयोग के जागरूकता अभियान के बारे में अदालत का कहना था कि उसे इस अभियान को सोशल मीडिया, वेबसाइटों, टीवी चैनलों, प्राइम टाइम डिबेट सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर चलाना चाहिए और साथ ही इस बारे में पर्चे (पंफलेट) भी वितरित करना चाहिए.

चुनाव आयोग को इस आदेश के आवश्यक अनुपालनों की निगरानी के लिए एक अलग प्रकोष्ठ (सेल) बनाने के लिए कहा गया है. इस फ़ैसले के अनुसार, वह पार्टियों द्वारा इसके अनुपालन न किए जाने के मामलों को अदालत के संज्ञान में लाने के लिए जिम्मेदार होगा.

अपने फरवरी 2020 के निर्देश मे फेरबदल करते हुए पीठ ने कहा कि अब राजनीतिक दलों को चयनित उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को उनके चयन के 48 घंटों के भीतर प्रकाशित करना चाहिए, न कि नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से दो सप्ताह पहले.

पीठ ने कहा, ‘हम फिर से इस बात को दोहराते हैं कि यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग के पास इस तरह की अनुपालन संबंधी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो चुनाव आयोग को इसे उस राजनीतिक दल द्वारा अदालत के आदेशों और निर्देशों की अवमानना का मामला मानते हुए तुरंत इस तरह के गैर-अनुपालन को इस अदालत के संज्ञान में लाना होगा.’

शीर्ष अदालत ने एक बार फिर से राजनीति के बढ़ते हुए अपराधीकरण अपनी चिंता व्यक्त की. साथ हीं उसने देश के सांसदों द्वारा इस चुनौती पर खड़ा उतरते हुए राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की भागीदारी को प्रतिबंधित करने के लिए आवश्यक संशोधन करने हेतु कदम उठाने में विफलता पर भी अपनी चिंता दोहराई.

अदालत का कहना था कि ‘ये सभी अपीलें बहरे कानों पर दी गयी आवाज़ की तरह अनसुनी कर दी गयी हैं और राजनीतिक दलों ने अपनी गहरी नींद से जागने से इनकार कर दिया है.’

अदालत ने यह भी कहा कि शक्तियों को पृथक करने की संवैधानिक योजना की अहमियत को देखते हुए वह देश की विधायी शाखा के लिए आरक्षित क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं कर सकता.

यह केवल सांसदों की अंतरात्मा से इस आशा के साथ अपील कर सकता है, कि वे जल्द हीं अपनी नींद से जागेंगे और राजनीति के अपराधीकरण की इस बीमारी को दूर करने के लिए एक बड़ी सर्जरी करेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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