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Monday, 17 June, 2024
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सार्वजनिक स्थल पर ही किए गए अपराध में एससी..एसटी कानून लागू

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प्रयागराज, 22 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि जानबूझकर अपमानित करने के कथित कृत्य के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून, 1989 (एससी..एसटी अधिनियम) के तहत अपराध तभी बनेगा जब यह सार्वजनिक जगह पर किया गया हो।

पिंटू सिंह नामक व्यक्ति और दो अन्य लोगों की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने इन तीन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एससी..एसटी कानून की धारा 3(1) (आर) के तहत अपराध के संबंध में आपराधिक मुकदमा रद्द कर दिया।

इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ नवंबर, 2017 में भादंसं की विभिन्न धाराओं और एससी..एसटी कानून की धारा 3(1)(आर) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता के घर में घुसकर उन्हें जातिसूचक गालियां दीं तथा उसे और उसके परिवार को मारा-पीटा।

सुनवाई के दौरान, दलील दी गई कि यह अपराध शिकायतकर्ता के घर के भीतर किया गया जो एक सार्वजनिक स्थल नहीं है और आम लोगों ने इस घटना को नहीं देखा, इसलिए एससी/एसटी कानून के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एससी..एसटी कानून के तहत अपराध तभी बनता है जब अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को सरेआम जानबूझकर अपमानित किया जाता है।

वहीं दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर आपत्ति की। हालांकि, वह इस घटना से इनकार नहीं कर सके कि यह घटना शिकायतकर्ता के घर के भीतर हुई।

अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत शिकायतकर्ता के बयान और प्राथमिकी को देखने पर पता चलता है कि जिस जगह पर घटना हुई, वहां कोई बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं था।

अदालत ने 10 मई को दिए अपने निर्णय में कहा कि एसएसी..एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत यह आवश्यक है कि अपराध सार्वजनिक स्थान पर किया होना चाहिए।

अदालत ने एससी..एसटी कानून के संबंध में मुकदमा रद्द करते हुए कहा, “यदि अपराध आम लोगों के सामने हुआ है तो एससी..एसटी कानून के प्रावधान लागू होंगे, लेकिन मौजूदा मामले में ऐसा नहीं हुआ।”

भाषा राजेंद्र राजकुमार

राजकुमार

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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