नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टेलीवीज़न चैनलों पर डिबेट्स के तरीक़ों की आलोचना की, और कहा कि ऐसी चर्चाओं के लिए कोई कार्यप्रणाली निर्धारित की जानी चाहिए, जिससे सुनिश्चित हो सके कि वो नफरती भाषा को हवा न दें.
न्यायमूर्तियों केएम जोज़फ और ऋषिकेश रॉय ने सरकार की भी आलोचना करते हुए कहा, कि वो नफरती भाषा की बढ़ती घटनाओं से निपटने में ‘सक्रिय’ नहीं है, और उसकी बजाय इसे एक छोटी सी बात समझ रही है.
जस्टिस जोज़फ ने खेद प्रकट करते हुए कहा, ‘हमारा देश किस ओर जा रहा है? नफरती भाषा ज़हर फैलाती है’. फिर उन्होंने सुझाव दिया कि क़ानून में ख़ालीपन को दिशा-निर्देशों से भरा जाना चाहिए, जैसा कि विशाखा मामले में हुआ था, वो दिशा-निर्देश दो दशकों से अधिक तक प्रभावी रहे, जिसके बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को लेकर क़ानून नोटिफाई किया गया.
शीर्ष अदालत बहुत चिंतित हुई जब उसे बताया गया, कि केंद्र सरकार ने विधि आयोग की 2017 की रिपोर्ट पर अभी कोई रुख़ नहीं अपनाया है, जिसमें हेट स्पीच निर्धारित करने के मानदंड सुझाए गए हैं.
जजों को ये भी लगा कि केंद्र नफरती भाषा की घटनाओं का ‘मूक दर्शक’ बना हुआ है, और उन्होंने सरकार से कहा कि इस समस्या से निपटने में कोर्ट की सहायता करे.
कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजे) केएम नटराज से कहा, ‘कोर्ट की सहायता के लिए तैयार रहिए. इसे किसी प्रतिकूल मुद्दे की तरह मत लीजिए’. कोर्ट ने उन्हें दो सप्ताह में एक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा, जो नफरती भाषण की घटनाओं से निपटने में की गई कार्रवाई पर, केंद्र को 14 राज्यों से मिले जवाबों पर आधारित होगी.
अदालत एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुज़ारिश की गई थी कि जिन उम्मीदवारों पर नफरती भाषण देने का आरोप हो, उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए. याचिका में ये भी मांग की गई है कि केंद्र को विधि आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों के अनुरूप, नफरती भाषा को परिभाषित करने का निर्देश जारी किया जाए.
बेंच ने ये भी संकेत दिया कि किसी विशिष्ट क़ानून की अनुपस्थिति में, नफरती भाषा की रूपरेखा को परिभाषित करने के लिए, वो गाइलाइन्स निर्धारित कर सकती है- जैसा कि विशाखा फैसले में हुआ था, जिसमें कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं से निपटने के लिए एक क्रियाप्रणाली तैयार की गई थी. उसने कहा कि गाइडलाइन्स से एक ऐसा संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाएगा, जिससे नफरती भाषा की शिकायतों से निपटा जा सकेगा.
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‘प्रेस और सुनने वाले की आज़ादी’
बेंच ने आगे कहा कि इसके साथ-साथ वो एक ऐसा तरीक़ा तैयार करने पर भी विचार करेगी, कि टीवी चर्चाओं का संचालन कैसे किया जाए, जिससे वो हेट स्पीच को न बढ़ाएं.
जस्टिस जोज़फ ने कहा, ‘अगर चर्चा के समय का एक बड़ा हिस्सा एंकर ही ले लेगा, अगर एंकर का सवाल बहुत लंबा होगा और जवाब देने वाले को दिया गया समय कम होगा, और उस कम समय में भी उसे नीचा दिखाया जाएगा, उसे किसी दुष्ट की तरह दिखाया जाएगा, तो ये ठीक नहीं है. आपको हर किसी के साथ निष्पक्ष होना होगा. ये सब निष्पक्ष तरीक़े से होना चाहिए’. उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि एक ऐसी व्यवस्था स्थापित होनी चाहिए, जिसमें ‘प्रेस को वास्तविक आज़ादी हो’, और साथ ही ‘सुनने वाले’ के पास भी आज़ादी हो, जिससे कि वो पथभ्रष्ट न हो जाए.
जब राष्ट्रीय ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन (एनबीए) के वकील ने कोर्ट को बताया, कि उसके पास नियम तोड़ने वालों को दंडित करने की व्यवस्था है, तो कोर्ट ने टिप्पणी की: ‘लेकिन समस्या फिर भी बरक़रार है. आपने 4,000 आदेश दिए होंगे, लेकिन ऐसे आदेशों का असर क्या है?’
जस्टिस रॉय ने कहा, ‘जब तक नियम तोड़ने वाले उल्लंघन के कठोर नतीजे नहीं भुगतेंगे, तब तक संदेश कैसे जाएगा? चिल्लर जैसी ये पैनल्टी किसी काम की नहीं है, इससे उनकी जेबों पर ज़रा भी फर्क़ नहीं पड़ेगा’.
कोर्ट ने आगे कहा कि राजनीतिक दल ‘आते-जाते’ रहेंगे, लेकिन मीडिया जैसे संस्थान बने रहेंगे. कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘पूरी तरह स्वतंत्र प्रेस के बिना, कोई राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता. इसलिए प्रेस के पास असली आज़ादी होनी चाहिए’.
हेट स्पीच की घटनाओं से निपटने के लिए, बाद में बेंच ने एक प्रभावी क़ानूनी ढांचे की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला, और कहा कि ये बहुत ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि देश को ऐसी बातों की ख़ुराक दी जा रही है.
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