नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे और लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश का हवाला दिया और सवाल किया कि न्यायाधीश कैसे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर विस्तार से गौर कर सकते है?
चीफ जस्टिस एन. वी. रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने जमानत रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि हाई कोर्ट ने जांच रिपोर्ट की अनदेखी की और आरोपी को राहत देने के लिए केवल प्राथमिकी पर गौर किया.
राज्य सरकार ने हालांकि अपराध को गंभीर करार दिया और कहा कि सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान की गई है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था. उसने 10 मार्च को राज्य सरकार को गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया था.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हिंसा में मारे गए किसानों के परिवारों के सदस्यों ने आशीष मिश्रा को जमानत देने के हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 10 फरवरी को मिश्रा को मामले में जमानत दे दी थी. इससे पहले वह चार महीने तक हिरासत में रहा था. इस हिंसा में चार किसानों सहित आठ लोग मारे गए थे.
गौरतलब है कि किसानों का एक समूह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता केशव प्रसाद मौर्य के दौरे के खिलाफ पिछले साल तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहा था और तभी लखीमपुर खीरी में एक एसयूवी (कार) ने चार किसानों को कथित तौर पर कुचल दिया था. इससे गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक को कथित तौर पर पीट-पीट कर मार डाला, जबकि हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई थी.
किसान नेताओं ने दावा किया है कि उस वाहन में आशीष मिश्रा थे, जिसने प्रदर्शनकारियों को कुचला था. हालांकि, मिश्रा ने आरोपों को खारिज किया है.
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