नयी दिल्ली, चार मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तीन न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया है जो यह तय करेगी कि धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बरकरार रखने वाले उसके 2022 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पुनर्गठित पीठ 2022 के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं पर विचार करेगी। मामले की सुनवाई सात मई को होगी।
इससे पहले, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति रविकुमार पांच जनवरी को सेवानिवृत्त हुए।
छह मार्च को जब याचिकाओं को दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मामले में उपस्थित वकीलों से कहा कि इसे गलत तरीके से सूचीबद्ध किया गया है और उन्हें आश्वासन दिया कि जल्द ही तीन न्यायाधीशों की एक नयी पीठ इस मुद्दे पर विचार करेगी।
जुलाई 2022 में शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के तहत धन शोधन के मामले में गिरफ्तारी और संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा।
उस साल अगस्त में, शीर्ष अदालत ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने को लेकर सहमति व्यक्त की और कहा कि दो पहलुओं पर ‘‘प्रथम दृष्टया’’ पुनर्विचार की आवश्यकता है। इनमें प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) प्रदान नहीं करना और निर्दोष होने की धारणा को उलटना शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दुनिया भर में धन शोधन वित्तीय प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए एक ‘‘खतरा’’ है। न्यायालय ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा तथा रेखांकित किया कि यह कोई ‘‘सामान्य अपराध’’ नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि 2002 के कानून के तहत प्राधिकारी ‘‘वास्तव में पुलिस अधिकारी नहीं थे’’ और ईसीआईआर को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत प्राथमिकी के समान नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा था कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य नहीं है और यदि ईडी गिरफ्तारी के समय इसके लिए आधार बता दे तो यह पर्याप्त है।
यह फैसला पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाले व्यक्तियों और अन्य संस्थाओं द्वारा दायर 200 से अधिक याचिकाओं पर आया है। विपक्ष अक्सर दावा करता है कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करती है।
भाषा आशीष नरेश
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