नई दिल्ली: रामनवमी और हनुमान जयंती पर देश के कई हिस्सों में दो समुदायों के बीच हुई झड़पों की सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी द्वारा निष्पक्ष जांच करने की मांग की गई है.
एडवोकेट विनीत जिंदल द्वारा डाली गई याचिका में हिंदू समुदाय के खिलाफ एक साजिश का आरोप लगाया है और सुप्रीम कोर्ट से आईएसआईएस या अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संभावित लिंक की जांच करने की भी मांग ताकि हिंदुओं को जवाबी कार्रवाई के लिए उकसाया जा सके.
याचिका में कहा गया है, ‘दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर और उससे पहले भी राजस्थान, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश राज्यों में रामनवमी के दौरान और जेएनयू परिसर में शांतिपूर्ण जुलूस के दौरान झड़पें हुईं और उत्सव, भक्तों पर हमला किया गया.’
याचिका में कहा गया है कि हनुमान जयंती और रामनवमी भक्तों को गोलियों से निशाना बनाया गया और पथराव किया गया, जिससे कई राज्यों में जुलूसों में श्रद्धालु घायल हो गए जिसके कारण सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया.
याचिका में आगे कहा गया है कि घटनाओं को देखकर लगता है कि देश का सामाजिक ढांचे को बिगाड़ने और हिंदूओं को परेशान करने के लिए आईएसआईएस, अन्य देश विरोधी ताकतें और अंतराष्ट्रीय संस्थान द्वारा फंडिंग की मिलीभगत हो सकती है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि पिछले हफ्ते रामनवमी के मौके पर गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे पांच राज्यों में सांप्रदियक हिंसा हुई.
रामनवमी के मौके पर होस्टल में नॉन-वेज खाना परोसने को लेकर दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दो गुटों के बीच में झड़प हो गई थी.
इसी के साथ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना के सामने एक और याचिका दायर कर जहांगीरपुरी हिंसा मामले में स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध किया है.
वकील अमृतपाल सिंह खालसा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करे और झड़पों की निष्पक्ष जांच करने के लिए शीर्ष अदालत के मौजूदा जज की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करे.
याचिका में कहा गया है कि ‘दिल्ली पुलिस की अब तक की जांच आंशिक, सांप्रदायिक और दंगों के अपराधियों को सीधे तौर पर बचाने वाली रही है.’
खालसा ने कहा कि 2020 के दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका ने उनके महत्व को कम किया है और लोगों का उनमें विश्वास कमजोर किया है.
उन्होंने कहा कि यह दो सालों में दूसरी बार दिल्ली में दंगे हुए हैं और दोनों में ही अल्पसंख्यक समुदाय को ही जिम्मेदार ठहराया गया है.
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