नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर बिहार सरकार को नोटिस जारी किया और जाति जनगणना के आंकड़ों के प्रकाशन से उत्पन्न होने वाली किसी भी चीज़ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि वह इस बिंदु पर कोई रोक नहीं लगाने जा रही है.
कोर्ट ने कहा कि वह राज्य सरकार या किसी भी सरकार को फैसला लेने से नहीं रोक सकती है.
हालांकि, अदालत ने कहा कि वह जाति-आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के संबंध में किसी भी मुद्दे पर विचार करेगी और इस तरह के काम के लिए राज्य सरकार की शक्ति के संबंध में मुद्दे की जांच करेगी.
अदालत ने बिहार सरकार से यह भी पूछा कि उन्होंने डेटा क्यों प्रकाशित किया.
अदालत बिहार सरकार द्वारा शुरू किए गए जाति सर्वेक्षण को बरकरार रखने के पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को अवगत कराया है कि बिहार सरकार ने पहले ही जाति सर्वेक्षण डेटा प्रकाशित कर दिया है, जिसके कारण विभिन्न चिंताएं और चुनौतियां सामने आ रही हैं.
जाति-आधारित सर्वेक्षण पर आपत्ति
याचिकाकर्ताओं में एक सोच एक प्रयास और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसे संगठन शामिल हैं, जिन्होंने जाति-आधारित सर्वेक्षण की वैधता और अधिकार पर आपत्ति जताई है.
केंद्र सरकार ने भी इस कानूनी लड़ाई में प्रवेश करते हुए, सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि 1948 का जनगणना अधिनियम केंद्र सरकार को जनगणना-संबंधित गतिविधियों का संचालन करने के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है.
हलफनामे में संवैधानिक प्रावधानों और लागू कानूनों के अनुरूप अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उत्थान के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई.
याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार की ओर से वकील तान्या श्री द्वारा प्रस्तुत याचिकाओं में से एक में जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के नीतीश कुमार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पटना हाई कोर्ट द्वारा खारिज करने का विरोध किया गया था. हाईकोर्ट का आदेश एक अगस्त को जारी हुआ था.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि बिहार राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण शुरू करने की संवैधानिक क्षमता का अभाव है और जनगणना करने में केंद्र सरकार के विशेष अधिकार को छीन लिया है.
याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि बिहार सरकार की 6 जून, 2022 की अधिसूचना और उसके बाद पर्यवेक्षण के लिए जिला मजिस्ट्रेट की नियुक्ति राज्य और संघ के बीच शक्तियों के वितरण सहित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पूरी प्रक्रिया विधायी क्षमता के बिना है और दुर्भावनापूर्ण इरादों से भरी है.
याचिकाकर्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत में जनगणना करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है, जिससे बिहार राज्य सरकार की अधिसूचना अमान्य हो जाती है.
पटना हाई कोर्ट ने पहले नीतीश कुमार प्रशासन द्वारा आदेशित जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
सर्वेक्षण का लक्ष्य बिहार के 38 जिलों में 12.70 करोड़ की अनुमानित आबादी को कवर करते हुए सभी जातियों, उप-जातियों और सामाजिक आर्थिक स्थितियों के लोगों से संबंधित डेटा एकत्र करना है.
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