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Friday, 1 November, 2024
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मामलों के जल्द निपटारे के लिए SC ने जारी किया डिजिटाइज़ेशन SOP, 5 होईकोर्ट्स में प्रक्रिया शुरू

ये क़दम पिछले महीने SC ई-कमेटी की ओर से सभी उच्च न्यायालयों को जारी निर्देश के अतिरिक्त है, जिसमें उनसे कहा गया था कि सरकारी विभागों के लिए, उनके मामले इलेक्ट्रॉनिक तरीक़े से फाइल करना अनिवार्य कर दें.

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नई दिल्ली: न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी ने पांच उच्च न्यायालयों का चयन किया है- बॉम्बे, दिल्ली, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, और इलाहाबाद- जहां सभी अदालतों में केस से जुड़े दस्तावेज़ों या विरासत रिकॉर्ड्स का डिजिटाइज़ेशन शुरू किया जाएगा. दो पैनल सदस्यों ने ये ख़ुलासा नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से किया.

एकरूपता बनाए रखने के प्रयास में, कोर्ट ने अब मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है, जिसका सभी अदालतों को पालन करना होगा. इनमें से दो कोर्ट पहले से डेटा का डिजिटाइज़ेशन कर रहीं थीं, लेकिन उस प्रक्रिया में कोई पारस्परिकता नहीं थी.

ताज़ा क़दम शीर्ष अदालत के तीन चरणों के प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ऐसी तकनीक को अपनाना है, जिससे डिजिटल रिकॉर्ड्स का एक विश्वसनीय स्रोत पैदा हो सके, और मामलों के जल्द निपटारे के लिए न्यायिक इकाइयों के बीच डेटा का इलेक्ट्रॉनिक आदान-प्रदान हो सके, और साथ ही न्यायपालिका में भौगोलिक सीमाएं ख़त्म की जा सकें.

डिजिटाइज़ेशन पहल के तहत जो 2005 में शुरू हुई थी, पहले चरण में इनफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया गया. अगले चरण में ई-फाइलिंग जैसी ज़्यादा नागरिक-केंद्रित प्रक्रियाएं शुरू की गईं.

न्यायिक दस्तावेज़ों के डिजिटाइज़ेशन से प्रशासनिक प्रक्रिया, ‘पर्यावरणीय दृष्टि से और अधिक टिकाऊ’ बनने की दिशा में आगे बढ़ सकेगी, चूंकि इसमें पेपर-आधारित फाइलिंग कम से कम रह जाएगी, और कोर्ट रिकॉर्ड्स के फिज़िकल रूप से एक से दूसरे मंच पर भेजा जाना कम हो जाएगा.

ये ताज़ा क़दम पिछले महीने ई-कमेटी की ओर से सभी उच्च न्यायालयों को जारी निर्देश के अतिरिक्त है, जिसमें उनसे कहा गया था कि सरकारी विभागों के लिए, उनके मामले इलेक्ट्रॉनिक तरीक़े से फाइल करना अनिवार्य कर दें. ये नियम 1 जनवरी 2022 से लागू किया जाना है.

ई-कमेटी के एक सदस्य ने दिप्रिंट को बताया कि रिकॉर्ड्स के डिजिटाइज़ेशन के साथ साथ मामलों की ई-फाइलिंग भी ज़रूरी है.

सदस्य ने समझाया, ‘ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के दूसरे फेज़ में, ई-कमेटी ने डिजिटल फाइलिंग्स का सिस्टम शुरू किया था. लेकिन, फिर भी पसंदीदा तरीक़ा मामलों की फिज़िकल फाइलिंग ही है. अगर ये चलता रहा तो कुछ सालों में फिर से हमारे सामने, डिजिटाइज़ेशन के लिए बहुत बड़ी संख्या में दस्तावेज़ों का ढेर लग जाएगा. इससे कोर्ट रिकॉर्ड्स के डिजिटाइज़ेशन का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा. इसलिए, डिजिटाइज़ेशन और ई-फाइलिंग-दोनों प्रक्रियाओं का साथ साथ चलना बहुत ज़रूरी है’.

परियोजना का पैमाना और संचालन

ई-कमेटी के अनुमान के मुताबिक़, अगले पांच वर्षों में क़रीब 3,100 करोड़ दस्तावेज़ों का डिजिटाइज़ेशन किया जाएगा, जिनमें तमाम पुराने और नए रिकॉर्ड्स शामिल हैं. अभी तक लगभग 6 प्रतिशत विरासत दस्तावेज़ डिजिटाइज़ किए जा चुके हैं.

ऊपर हवाला दिए गए सदस्य ने कहा, कि इलाहाबाद और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट्स ने ये प्रक्रिया शुरू कर दी थी, लेकिन जिस तरह वो आगे बढ़ रहे थे, उसमें कोई एकरूपता नहीं थी, जिसकी वजह से पैनल ने डेटा को डिजिटाइज़ करने के लिए एक एसओपी तैयार की.

सदस्य ने कहा, ‘एकरूपता के अभाव में न्यायिक मंचों के बीच, दस्तावेज़ों की पारस्परिकता मुश्किल हो जाती है. मसलन, जब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में कोई अपील सुनवाई के लिए स्वीकार की जाती है, तो निचली अदालत से हमेशा फिज़िकल रिकॉर्ड तलब किया जाता है. अगर दस्तावेज़ बहुत अधिक संख्या में हों, तो रिकॉर्ड तलब करने से कार्यवाही में देरी हो सकती है.’

मेम्बर ने आगे कहा, ‘जो डिजिटल रिकॉर्ड्स हर स्तर पर सिस्टम के अनुकूल होंगे, उनसे ऐसी देरी को कम किया जा सकेगा, क्योंकि डेटा ट्रांसफर करने के लिए, बस एक बटन क्लिक करना होगा.’

डिजिटाइज़ेशन की आवश्यकता

एक दूसरे मेम्बर ने कहा कि कोविड महामारी ने न्याय वितरण प्रणाली में डिजिटल क्षमताओं को मज़बूत करने की ज़रूरत और ज़्यादा बढ़ा दी है.

बदलाव के इस अभूतपूर्व अवसर का फायदा उठाते हुए, ई-कमेटी ने सूचना और संचार तकनीक को अपनाया, ताकि एक ‘सीवन-रहित तरीक़े से’ न्याय का वितरण सुनिश्चित किया जा सके.

ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के अंतर्गत डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत बनाया गया, जिसकी वजह से महामारी से उत्पन्न लॉकडाउन के दौरान भी, न्यायपालिका के लिए संचालन बनाए रखना मुमकिन हो सका.

ई-कमेटी के डेटा के अनुसार, मार्च 2020 से इस साल 21 अक्तूबर तक, दो करोड़ से अधिक मुक़दमे दर्ज किए गए, जबकि इसी अवधि के दौरान निचली अदालतों ने, 1.4 करोड़ से कुछ अधिक मामलों का वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के ज़रिए निपटारा किया.

दूसरे मेम्बर ने कहा, ‘तमाम उच्च न्यायालयों तथा ज़िला अदालतों में डिजिटल संरक्षण के सभी पहलुओं के मानकीकरण से, डेटा भण्डारों के बीच ज़्यादा पारस्परिकता हासिल करने में सहायता मिलेगी, और कुल मिलाकर न्याय वितरण प्रणाली की रफ्तार बढ़ाने में, न्यायपालिका को फायदा पहुंचेगा.’

सदस्यों ने कहा कि कोर्ट रिकॉर्ड्स की डिजिटाइज़ेशन प्रक्रिया न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल होगी, बल्कि वादियों तथा वकीलों के लिए एक किफायती प्रणाली भी साबित होगी. इससे कोर्ट और केस प्रबंधन ज़्यादा सक्षम होगा, और वादियों के डेटा की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी.

दूसरे सदस्य ने कहा, ‘रिकॉर्ड्स के डिजिटाइज़ेशन से डेटा का एक सेफ बैकअप मिलेगा, जिसे किसी भी समय हासिल किया जा सकेगा.’

ई-फाइलिंग भी

डिजिटाइज़ेशन पुराना न पड़ जाए, ये सुनिश्चित करने के लिए ई-कमेटी इस विकल्प पर भी विचार कर रही है कि मुक़दमे दायर करने के लिए ई-फाइलिंग को धीरे धीरे एक पसंदीदा तरीक़ा बना दिया जाए.

दूसरे सदस्य ने समझाया, ‘कोर्ट रिकॉर्ड्स के डिजिटाइज़ेशन के साथ ही ये भी बेहद ज़रूरी है, कि न्यायिक प्रणाली के सभी हितधारक ई-फाइलिंग को अपना लें.’

अभी के लिए, कमेटी ने केंद्र और राज्य दोनों के सभी सरकारी विभागों के लिए, ई-फाइलिंग को अनिवार्य कर दिया है. सदस्य ने आगे कहा, ‘अदालत में सरकार एक बहुत प्रमुख वादी है, इसलिए अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि डिजिटाइज़ेशन के हित में वो ई-फाइलिंग को अपना लें. उच्च न्यायालयों को भी एक विकल्प दिया गया है, कि कुछ श्रेणियों के मामलों में ई-फाइलिंग को अनिवार्य करने पर विचार करें, जैसे राजस्व, कर, मध्यस्थता, व्यवसायिक विवाद, और कोई भी दूसरी श्रेणी’.

ई-कमेटी निजी वादियों को ई-फाइलिंग के लिए कुछ प्रोत्साहन दे सकती है, जैसे डिजिटल तरीक़े से दर्ज किए गए मामलों को जल्द सुनवाई में प्राथमिकता देना, और अगर मामले की सुनवाई कर रहा जज याचिका की हार्ड कॉपी चाहता है, तो फिज़िकल प्रतियां तैयार करने का ख़र्च कोर्ट द्वारा वहन किया जाना.

ई-कमेटी निजता के पहलू पर भी काम कर रही है, और डेटा के साथ छेड़छाड़ न हो, ये सुनिश्चित करने के लिए उसने एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है, जो इसके उपाय सुझाएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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