नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए कुछ शर्तें भी रखीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ लंबित जांच में पूरा सहयोग देंगी और उन्हें अपना पासपोर्ट सरेंडर करने का निर्देश दिया है.
सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देते हुए अदालत ने कहा, ‘हमारे विचार से कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ अंतरिम जमानत पर रिहा होने की हकदार हैं.’
सुप्रीम कोर्ट उस मामले में अंतरिम जमानत की मांग करने वाली सीतलवाड़ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया और उसे बताया कि सीतलवाड़ के खिलाफ कुछ सबसे गंभीर अपराधों के लिए एक मजबूत मामला बनाया गया है, जिसके लिए आपराधिक साजिश रची गई थी, साथ ही गुजरात दंगों 2002 के लिए कई लोगों को दोषी ठहराने और मौत की सजा दिलाने के इरादे से झूठे सबूत गढ़े गए थे.
गुजरात सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि दंगों से संबंधित सबूतों को गलत साबित करने के लिए सीतलवाड़ के खिलाफ प्राथमिकी न केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है, बल्कि सबूतों द्वारा समर्थित है.
हलफनामे में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने के लिए सिस्टमैटिक तरीके से मौखिक सहित अन्य साक्ष्य गढ़े गए हैं.
सीतलवाड़ ने गुजरात हाई कोर्ट के 3 अगस्त के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसने विशेष जांच दल (एसआईटी) को नोटिस जारी कर सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आरबी श्रीकुमार द्वारा दायर जमानत याचिकाओं पर जवाब मांगा था.
अहमदाबाद सेशन कोर्ट द्वारा उनकी जमानत अर्जी खारिज किए जाने के बाद सीतलवाड़ और श्रीकुमार ने हाई कोर्ट का रुख किया था.
30 जुलाई को, अहमदाबाद सेशन कोर्ट ने सीतलवाड़ और श्रीकुमार को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्तों का उद्देश्य गुजरात सरकार को ‘अस्थिर’ करने और अपने ‘उद्देश्यों’ के लिए राज्य को बदनाम करना था.
बता दें कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार को अहमदाबाद पुलिस अपराध शाखा ने 25 जून को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 194 (पूंजीगत अपराधों के लिए सजा हासिल करने के इरादे से झूठे सबूत गढ़ना) के तहत दर्ज प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) के आधार पर गिरफ्तार किया था.
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