नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक आदेश में उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के प्रावधानों को संवैधानिक चुनौती दी गई थी.
इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने पीएमएलए के तहत एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) को गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्द करने के अधिकार को बरकरार रखा है. साथ ही अदालत ने कहा कि पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी मनमानी नहीं है.
कोर्ट ने पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा और अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं को खारिज कर दिया है.
जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने एक यह फैसला सुनाया है.
15 जुलाई को सुप्राम कोर्ट ने पीएमएलए के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश को सुरक्षित रख लिया था. याचिका दाखिल करने वालों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कार्ति चिदंबरम और जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का नाम शामिल है.
याचिकाओं में जांच और समन शुरू करने की प्रक्रिया की अनुपस्थिति समेत आरोपी को प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट से अवगत नहीं कराने जैसे मामले उठाए गए हैं.
पीएमएलए की धारा 45 संज्ञेय और गैर-जमानती अपराधों से जुड़ी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत द्वारा बताई गई कमियों को खत्म करने के लिए संसद वर्तमान स्वरूप में धारा 15 में संशोधन कर सकती है.
पीएमएलए की धारा 50 अथॉरिटी को सशक्त करती है. जैसे ईडी अधिकारी किसी भी व्यकित को सबूत और बयान रिकॉर्ड कराने के लिए समन भेज सकती है. समन किए गए सभी व्यक्ति उनसे पूछे गए प्रश्नों का जवाब देने और ईडी अधिकारियों द्वारा आवश्यक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य हैं, ऐसा न करने पर उन्हें पीएमएलए के तहत दंडित किया जा सकता है.
हालांकि, केंद्र ने पीएमएलए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को उचित ठहराया है.
केंद्र ने अदालत को बताया कि ईडी द्वारा लगभग 4,700 मामलों की जांच की जा रही है.
केंद्र ने कहा कि पीएमएलए एक पारंपरिक दंड क़ानून नहीं है बल्कि एक क़ानून है जिसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना, उस से संबंधित कुछ गतिविधियों को विनियमित करना, ‘अपराध की आय’ और प्राप्त संपत्ति को जब्त करना है.
अपराधियों की शिकायत दर्ज करने के बाद सक्षम अदालत द्वारा दंडित करने की भी आवश्यकता है.
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