नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बृहस्पतिवार को भारत के चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पैनल बनाने का आदेश दिया, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायधीश शामिल होंगे.
प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की समिति की सिफारिश पर एक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति होगी, जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ जिसमें जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार शामिल थे, ने यह फैसला दिया है.
न्यायमूर्ति जोसेफ ने आदेश की घोषणा के दौरान कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना चाहिए और यह निष्पक्ष और कानूनी तरीके से कार्य करने और संविधान के प्रावधानों और न्यायालय के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य है.
न्यायमूर्ति जोसेफ ने यह भी कहा कि एक पर्याप्त और उदार लोकतंत्र की पहचान को ध्यान में रखना चाहिए, लोकतंत्र लोगों की शक्ति से जुड़ा हुआ है. मतपत्र की शक्ति सर्वोच्च है, जो सबसे शक्तिशाली दलों को अपदस्थ करने में सक्षम है.
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को दो फैसले दिए, दोनों सर्वसम्मति से दिए गए.
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने अपने अलग फैसले में कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होगी- महाभियोग.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को भारत निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना आदेश सुनाया.
24 नवंबर 2022 को, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयुक्तों (ईसी) और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली दलीलों के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी और तर्क दिया कि नियुक्तियां कार्यपालिका की मर्जी और विचार के मुताबिक की जा रही हैं.
याचिकाओं में सीईसी और दो अन्य ईसी की भविष्य की नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र कॉलेजियम या चयन समिति के गठन की मांग की गई थी.
याचिकाओं में कहा गया है कि सीबीआई निदेशक या लोकपाल की नियुक्तियों के विपरीत, जहां विपक्ष के नेता और न्यायपालिका का कहना है, केंद्र एकतरफा रूप से चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है.
शीर्ष अदालत ने 23 अक्टूबर, 2018 को जनहित याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया था.
अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की नए चुनाव आयुक्त के रूप में ‘बिजली की गति’ से नियुक्ति पर केंद्र से सवाल किया है और कहा है कि प्रक्रिया 24 घंटे के भीतर पूरी की गई थी.
अदालत ने चुनाव आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति पर केंद्र द्वारा लाई गई मूल फाइलों का अवलोकन किया था.
केंद्र सरकार ने कहा था कि नियुक्ति में कोई आपत्तिजनक चीज नहीं है.
पीठ ने स्पष्ट किया था कि वह अरुण गोयल की साख के गुण-दोष पर नहीं, बल्कि प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है.
गोयल ने 18 नवंबर को अपनी पिछली पोस्टिंग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और 19 नवंबर को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की गई थी और 21 नवंबर को कार्यभार संभाला था.
शीर्ष अदालत ने 1985 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल को एक ही दिन में नियुक्त करने पर केंद्र सरकार से सवाल किया था.
फाइल पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा कि कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए चार नामों को कैसे शॉर्टलिस्ट किया.
यह देखा गया था कि चार नामों में से भी केंद्र ने ऐसे लोगों के नामों का चयन किया है जिन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में 6 साल भी नहीं मिलेंगे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र को ऐसे लोगों को चुनना होगा जिन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में 6 साल मिलें.
यह पूछने पर कि केंद्र ने इन चार लोगों के नाम को प्रतिबंधित क्यों किया, शीर्ष अदालत ने कहा था कि काफी वरिष्ठ नौकरशाह हैं और केंद्र ने इसके बजाय किसी ऐसे व्यक्ति का चयन कैसे किया जिसे 6 साल की अवधि बिल्कुल नहीं मिलेगी.
अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया था कि चयन के लिए एक तंत्र और मानदंड है और ऐसा परिदृश्य नहीं हो सकता है जहां सरकार को हर अधिकारी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखना पड़े और यह सुनिश्चित करना पड़े कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा करे.
चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 के तहत एक चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, हो सकता है.
पिछली सुनवाई में, पीठ ने ‘निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र’ पर जोर दिया था ताकि ‘सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’ को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जा सके.
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