scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशSC ने हरियाणा, पंजाब को सतलज-यमुना लिंक नहर मुद्दे पर बातचीत को कहा, मांगी प्रगति रिपोर्ट

SC ने हरियाणा, पंजाब को सतलज-यमुना लिंक नहर मुद्दे पर बातचीत को कहा, मांगी प्रगति रिपोर्ट

शीर्ष अदालत हरियाणा-पंजाब के बीच सतलज-यमुना (एसवाईएल) नहर विवाद की सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को साझा करना होगा.

Text Size:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री को पंजाब और हरियाणा की सरकारों को सतलज-यमुना नहर लिंक विवाद को हल करने के लिए बैठक करने को कहा है.

जस्टिस संजय किशन कौल, अभय एस ओका और विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र सरकार से दोनों राज्यों के बीच बैठक करने को कहा और बैठक पर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार महीने का समय दिया. शीर्ष अदालत ने अब मामले को 19 जनवरी, 2023 को सुनवाई के लिए आगे बढ़ा दिया और इस मुद्दे पर प्रगति रिपोर्ट मांगी है.

शीर्ष अदालत हरियाणा-पंजाब के बीच सतलज-यमुना (एसवाईएल) नहर विवाद की सुनवाई कर रही थी.

सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को साझा करना होगा, खासकर पंजाब में सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘पानी एक प्राकृतिक संसाधन है और जीवित प्राणियों को इसे साझा करना सीखना चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत हो या राज्य का. मामले को केवल एक शहर या राज्य के दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता है. यह साझा करने के लिए प्राकृतिक संपदा है और यह कैसे है साझा किया जाना है, यह एक तंत्र है जिस पर काम किया जाना है.’

भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल मंत्रालय की ओर से पेश होते हुए कहा कि केंद्र पंजाब और हरियाणा राज्यों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है.

वेणुगोपाल ने आगे कहा कि पंजाब इस मामले में सहयोग नहीं कर रहा है.

उन्होंने कहा कि केंद्र ने एक पत्र अप्रैल में पंजाब के नये मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था लेकिन को जवाब नहीं आया.

इस पर पीठ ने सभी पक्षों को सहयोग करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने कहा, या तो वे बैठकर बात करें या फिर कोर्ट डिक्री के क्रियान्वयन का आदेश देगा. इन मुद्दों को बढ़ने नहीं दिया जाना चाहिए… यह उन ताकतों को अनुमति देगा जो देश के लिए सौहार्दपूर्ण नहीं हो सकतीं और दखल दे सकती हैं.’

शीर्ष अदालत ने 28 जुलाई, 2020 को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करने को कहा था.

मंत्रालय ने पहले कई बैठकें की थीं जिनमें दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों ने भाग लिया था, लेकिन यह अनिर्णायक रहा.

समस्या 1981 के विवादास्पद जल-बंटवारे समझौते से उपजी है, जब 1966 में पंजाब से अलग हरियाणा राज्य का गठन किया गया था. पानी के प्रभावी आवंटन के लिए, एसवाईएल नहर का निर्माण किया जाना था और दोनों राज्यों को अपने क्षेत्रों के भीतर अपने हिस्से का निर्माण करने की आवश्यकता थी.

जबकि हरियाणा ने नहर के अपने हिस्से का निर्माण किया, प्रारंभिक चरण के बाद, पंजाब ने काम बंद कर दिया, जिससे कई मामले सामने आए.

2004 में, पंजाब सरकार ने एक कानून पारित किया था जिसने एकतरफा एसवाईएल समझौते और ऐसे अन्य समझौतों को रद्द कर दिया था, हालांकि, 2016 में, शीर्ष अदालत ने इस कानून को रद्द कर दिया था. बाद में, पंजाब ने आगे बढ़कर अधिग्रहीत भूमि – जिस पर नहर का निर्माण किया जाना था – जमींदारों को वापस कर दिया.


यह भी पढ़ें: तूफान से बाहर निकलने की झारखंड के CM सोरेन की क्या है रणनीति और ये क्यों नाकाफी साबित हो सकती है


 

share & View comments