(फाइल फोटो के साथ)
बागपत (उप्र), पांच अगस्त (भाषा) जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक के निधन की खबर मंगलवार सुबह बागपत में स्थित उनके पैतृक गांव हिसावदा पहुंचने पर शोक की लहर दौड़ गई।
ग्रामीणों की आंखों में आंसू थे और चेहरों पर गहरी उदासी छाई थी। गांव की गलियों में सन्नाटा था मलिक की हवेली के आंगन में एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई थी।
मलिक का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। मलिक के निजी कर्मचारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
लंबे राजनीतिक जीवन में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहने के अलावा गोवा, बिहार, मेघालय और ओडिशा के राज्यपाल के पदों पर रहे मलिक का अपराह्न एक बजकर 12 मिनट पर यहां राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया।
स्टाफ ने बताया कि वह लंबे समय से अस्पताल के आईसीयू में थे और उनका विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जा रहा था।
हिसावदा गांव की 300 साल पुरानी वह हवेली, जहां मलिक ने अपना बचपन बिताया था, आज भी जस की तस खड़ी है। हालांकि अब उनका परिवार स्थायी रूप से गांव में नहीं रहता, लेकिन रिश्तेदारों आज भी वहीं बसे हैं।
रिश्ते के भतीजे अमित मलिक ने बताया कि सत्यपाल मलिक की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। बाद में वग साइकिल से ढिकौली में स्थित एमजीएम इंटर कॉलेज पढ़ने जाया करते थे।
उन्होंने कहा कि 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मेरठ कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की।
उन्होंने कहा कि गांव में पढ़ाई के प्रति उनका आग्रह और अनुशासन बच्चों के लिए प्रेरणा था।
परिवार के एक अन्य सदस्य मनीष मलिक ने बताया कि सत्यपाल मलिक अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे और अत्यंत भावुक व परिवारवादी स्वभाव के थे।
उन्होंने कहा, “वह चाहे कितने भी ऊंचे पद पर रहे हों, गांव का कोई व्यक्ति जब भी मिलने गया, उन्होंने कभी मिलने से इनकार नहीं किया।”
गांव के बुजुर्ग वीरेंद्र सिंह मलिक ने कहा, “वह हमें भाई से बढ़कर मानते थे। जब भी गांव आना होता, मिलने जरूर आते। वह बेहद विनम्र और आदरशील व्यक्ति थे।”
वीरेंद्र के अनुसार मलिक बचपन में शर्मीले स्वभाव के थे और वॉलीबॉल खेलने के शौकीन थे।
गांव के बुजुर्ग बिजेंद्र सिंह ने उन्हें मृदुभाषी और पारिवारिक संस्कारों वाला व्यक्ति बताया।
उन्होंने कहा, “उनकी छवि एक सादगीभरे और स्पष्टवादी नेता की रही, जो हर वर्ग के साथ सहज संवाद कर सकता था।”
सत्यपाल मलिक के रिश्ते के भाई ज्ञानेंद्र मलिक ने बताया कि फरवरी 2023 में जब वह राज्यपाल पद से सेवानिवृत्त होकर गांव लौटे थे, तो गांव में विशेष चौपाल का आयोजन किया गया था।
ज्ञानेंद्र के अनुसार वहां उन्होंने कहा था, “किसानों और मजदूरों की बात मैंने हमेशा मुखर होकर रखी है और आगे भी रखता रहूंगा।”
उन्होंने गांव की गलियों में घूमते हुए अपने पुराने साथियों से मुलाकात की थी और अनेक स्मृतियां साझा की थीं।
सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1972 में की थी, जब उन्होंने गांव में रहते हुए बागपत विधानसभा सीट से तत्कालीन लोकदल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
इसके बाद वह राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रहे और जम्मू-कश्मीर, गोवा व मेघालय जैसे राज्यों के राज्यपाल भी बने।
बागपत नगर में भी शोक का माहौल रहा। नगर पालिका परिसर में लोग उनके साथ ली गई पुरानी तस्वीरें साझा कर उन्हें श्रद्धांजलि देते नजर आए।
पूर्व विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) जगत सिंह और वरिष्ठ अधिवक्ता देवेन्द्र आर्य समेत कई स्थानीय नेता और आम लोग इस खबर से व्यथित दिखे।
ग्रामीणों का कहना है कि सत्यपाल मलिक का जाना एक युग का अंत है।
उनके अनुसार मलिक उन विरले नेताओं में से थे जो सत्ता के उच्च पदों पर रहते हुए भी आमजन की बात निर्भीक होकर करते थे और अपने गांव, अपनी मिट्टी से कभी दूर नहीं हुए।
भाषा सं जफर जोहेब
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