इंफाल, 12 फरवरी (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता संबित पात्रा ने मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से बुधवार को 24 घंटे से भी कम समय में दूसरी बार मुलाकात की। उनकी पार्टी रविवार को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राजनीतिक अनिश्चितता को दूर करने का प्रयास कर रही है।
पात्रा ने मंगलवार को पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष ए शारदा देवी के साथ भल्ला से मुलाकात की थी। उनके साथ राज्य के शिक्षा मंत्री टी बसंत कुमार सिंह, एनपीएफ की मणिपुर इकाई के अध्यक्ष अवांगबौ न्यूमई और जद(यू) विधायक नासिर भी थे।
पात्रा ने बुधवार को राज्य में भाजपा विधायकों के साथ भी बैठक की और उनसे मिलने वालों में राज्य के उपभोक्ता मामलों के मंत्री एल सुसिंद्रो और विधायक करम श्याम शामिल थे।
पत्रकारों से बात करते हुए श्याम ने कहा कि सिंह के पद छोड़ने के फैसले के बाद कोई संवैधानिक संकट नहीं है और सभी मुद्दों को विधायकों की मदद से केंद्र द्वारा सुलझाया जाएगा।
भाजपा विधायक ने कहा, ‘‘मुझे राष्ट्रपति शासन के बारे में नहीं पता। मुझे लगता है कि समस्या (नेतृत्व संकट की) को विधायकों की मदद से केंद्र द्वारा सुलझा लिया जाएगा। मुझे लगता है कि मणिपुर में कोई संवैधानिक संकट नहीं है।’’
वह पात्रा से मिलने इंफाल के एक होटल में आए थे।
राज्य विधानसभा के लगातार दो सत्रों के बीच अधिकतम छह महीने के अंतराल की समाप्ति पर एक सवाल का जवाब देते हुए श्याम ने कहा, ‘‘देखते हैं क्या होता है’’।
यह पूछे जाने पर कि क्या नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाएगी, श्याम ने हंसते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
इस बीच, कांग्रेस विधायक थोकचोम लोकेश्वर ने पात्रा के राज्य के दौरे के उद्देश्य पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या उनका इरादा नेतृत्व संकट को हल करना है।
लोकेश्वर ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘भाजपा नेताओं के लिए यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे अपना खुद का मुख्यमंत्री नहीं चुन पा रहे हैं और विधानसभा सत्र नहीं बुला पा रहे हैं। पात्रा के राज्य के दौरे का उद्देश्य क्या है? क्या वे राज्य को तोड़ने आए हैं?’’
कांग्रेस विधायक ने कहा कि पात्रा को भाजपा विधायकों के साथ चर्चा करके नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति का बीड़ा उठाना चाहिए था। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष लोकेश्वर ने कहा, ‘‘उनका दौरा यह सुनिश्चित करने के लिए है कि विधानसभा सत्र न हो और राज्य के मुद्दे दरकिनार रहें। अभी तक उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की है।’’
मंगलवार को पात्रा के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से राजभवन में मुलाकात की और आगे की रणनीति पर चर्चा की।
थोकचोम ने यह भी कहा, ‘‘विधानसभा सत्र को ‘अमान्य’ घोषित करने का मामला किसी अन्य राज्य में कभी नहीं सुना गया।’’
थोकचोम ने कहा, ‘‘यदि राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल जाएगा और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के भीतर आंतरिक संघर्ष भी जांच पड़ताल के दायरे में आ जाएगा।’’
इस बीच, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अभी तक किसी के सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करने के कारण भाजपा शासित मणिपुर संवैधानिक संकट की ओर बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि यदि स्थिति ऐसी ही रही, तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना है। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मणिपुर में विधानसभा सक्रिय है… यह निलंबित अवस्था या राष्ट्रपति शासन के अधीन नहीं है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार विधानसभा सत्र आयोजित करना अनिवार्य है। जाहिर है, इससे बड़ा संवैधानिक संकट पैदा होगा।’’
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 174 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया हो कि इसे छह महीने से अधिक बढ़ाया जा सकता है।
अनुच्छेद 174 में कहा गया है कि राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन के लिए बुलाएंगे, जिसे वह ठीक समझें। लेकिन एक सत्र में इसकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा।
चौधरी ने कहा कि छह महीने बाद इससे संवैधानिक गतिरोध पैदा हो जाएगा और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र विकल्प है।
संविधान का अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर किसी राज्य पर यह नियम लागू करने की शक्ति देता है।
राज्यपाल पहले ही मणिपुर की 12वीं विधानसभा के सातवें सत्र को अमान्य घोषित कर चुके हैं जो 10 फरवरी को शुरू होना था।
मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को संपन्न हुआ।
मई 2023 से इंफाल घाटी में रहने वाले मेइती समुदाय और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा में 250 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
भाषा वैभव संतोष
संतोष
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