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Monday, 6 May, 2024
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साकेत कोर्ट ने कुतुब मीनार भूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाले हस्तक्षेप आवेदन को खारिज किया

ASI ने अपने हलफनामे में पहले ही कहा था कि आवेदक का दावा है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों पर उसका अधिकार 1947 के बाद से किसी भी न्यायालय के समक्ष नहीं उठाया गया है.

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नई दिल्ली: दिल्ली के साकेत कोर्ट ने मंगलवार को कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदुओं और जैनियों के लिए पूजा के अधिकार की मांग करने वाली एक अपील पर सुनवाई करते हुए कुतुब मीनार भूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाले कुंवर महेंद्र ध्वज प्रताप सिंह द्वारा दायर एक हस्तक्षेप आवेदन को खारिज कर दिया.

इस मामले में, ध्वज प्रताप सिंह ने आगरा के संयुक्त प्रांत का उत्तराधिकारी होने का दावा किया था और कहा था कि कुतुब मीनार की संपत्ति उनके पास है इसलिए कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के साथ मीनार उन्हें दी जानी चाहिए.

साकेत कोर्ट के एडीजे दिनेश कुमार ने आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि वो 19 अक्टूबर को कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदू और जैन मंदिरों को बहाल की मांग करने वाले मुख्य मुकदमे की दलीलों पर सुनवाई करेंगे.

इससे पहले, मध्यस्थ ने दिखाया कि 1947 के बाद सरकार ने उसकी संपत्ति पर अतिक्रमण किया और उसके पास प्रिवी काउंसिल के रिकॉर्ड हैं.

हिंदू पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता अमिता सचदेवा ने कहा कि हस्तक्षेपकर्ता 102 साल बाद संपत्ति के अधिकारों का दावा कर रहे हैं.
रिपोर्ट में लिखा है, ‘उन्हें अदालत से किसी भी तरह की राहत में कोई दिलचस्पी नहीं है. यह याचिका एक पब्लिक स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं है और इसे भारी लागत के साथ खारिज कर दिया जाना चाहिए.’

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इंडियन आर्कियोलोजिकल सर्वे (एएसआई) ने अपने हलफनामे में पहले ही कहा था कि आवेदक का दावा है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों पर उसका अधिकार 1947 के बाद से किसी भी न्यायालय के समक्ष नहीं उठाया गया है.

एएसआई ने कहा कि आवेदक के स्वामित्व का दावा और उसकी संपत्ति में हस्तक्षेप की रोकथाम का अधिकार मामले के सिद्धांत द्वारा देरी और लापरवाही के कारण खत्म हो गया है, उसके द्वारा वसूली/कब्जा/निषेध दायर करने की समय अवधि, चाहे वह 3 साल का हो या 12 साल की, दशकों पहले ही खत्म चुकी है.

एएसआई ने अपनी दलील में कहा, ‘सन् 1913 में विचाराधीन संपत्ति को संरक्षित स्मारक घोषित करने के समय में पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया और कोई भी अधिकारी आपत्ति करने के लिए सामने नहीं आया. इसलिए 1913 से 2022 तक की अवधि की गणना करते हुए, सीमा की अवधि पहले ही कई बार समाप्त हो चुकी है.’

गौतलब है कि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार ने पिछले सप्ताह कुंवर ध्वज द्वारा पेश किए गए हस्तक्षेप आवेदन पर आदेश सुरक्षित रखा था.

इससे पहले कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वह अपील में आगे की दलीलों के साथ बढ़ने से पहले नए हस्तक्षेप आवेदन को सुनेगा या तय करेगा. कोर्ट ने नोट किया कि कुंवर महेंद्र ध्वज प्रताप सिंह द्वारा आगरा के संयुक्त प्रांत के उत्तराधिकारी होने का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया गया था जिसमें दावा किया गया था कि कुतुब मीनार की संपत्ति उनकी है इसलिए कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के साथ मीनार उन्हें दी जानी चाहिए.


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