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Thursday, 2 May, 2024
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मुख्यमंत्री पद पर सैनी की नियुक्ति, ओबीसी मतदाताओं में मजबूत पकड़ बनाने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा

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नयी दिल्ली, 12 मार्च (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 मुख्यमंत्रियों की सूची में मंगलवार को एक और नाम जुड़ गया और वह है हरियाणा के नये सरताज नायब सिंह सैनी का। वह भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ताल्लुक रखते हैं। यह दर्शाता है कि लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी समुदाय के वोटों को दृढ़ता से अपने पक्ष में करने व विपक्ष की जाति आधारित जनगणना की मांग को कुंद करने के लिए वह कितनी दृढ़ है।

भाजपा ने ओबीसी के एक अन्य नेता शिवराज सिंह चौहान की जगह पिछले साल दिसंबर में मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था और अब तीन महीने बाद पार्टी ने मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर पहली बार के सांसद और पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष सैनी को चुना है।

यादव के बाद अब हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में ओबीसी नेता सैनी की नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ मिलकर जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर आक्रामक है। माना जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन के नेताओं की ओर से ओबीसी समुदाय को साधने के प्रयासों की काट के मद्देनजर भाजपा कोई जोखिम नहीं मोल लेना चाहती।

इसी रणनीति के मद्देनजर दिसंबर में तीन हिंदी पट्टी के राज्यों में अपनी बड़ी जीत के बाद, भाजपा ने अपने चार बार के मुख्यमंत्री चौहान को बदल दिया और मोहन यादव को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इसके अलावा पार्टी ने कुछ राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के नेताओं को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाया।

विष्णु देव साय (एसटी) छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने जबकि उनके दो उपमुख्यमंत्रियों में से एक अरुण साव, ओबीसी से हैं। मोहन यादव के दो उप-मुख्यमंत्रियों में से एक जगदीश देवड़ा दलित हैं और राजस्थान में उपमुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा भी दलित हैं।

चौहान भले ही पिछड़ा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन मोहन यादव एक ऐसी जाति से आते हैं जो उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे अधिक संख्या में है। दोनों राज्यों में कुल मिलाकर लोकसभा की 120 सीटे है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों ने इन दोनों राज्यों में बड़ी जीत दर्ज की थी।

कई अन्य राज्यों में भी यादवों की अच्छी खासी मौजूदगी है।

भाजपा ने पिछले साल कुशवाहा समाज के सम्राट चौधरी को बिहार इकाई का अध्यक्ष बनाया था। पिछले दिनों जब नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस लौटे तो उनके नेतृत्व में बनी सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सैनी जिस समुदाय से ताल्लुक रखते हैं उनकी कई हिंदी राज्यों में भी ठीक-ठाक मौजूदगी है।

यादव और सैनी की गिनती पिछड़े वर्ग के उन भाजपा नेताओं में होती है जिन्होंने पार्टी में संगठन के विभिन्न स्तरों पर लंबी पारी खेली है। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद जाहिरा तौर पर उनका कद बढ़ेगा और आने वाले दिनों में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राजद नेता तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी ओबीसी क्षत्रपों को टक्कर देने की क्षमता रखेंगे।

कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी जहां जाति जनगणना की मांग को लेकर ओबीसी समुदाय के बीच पकड़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार के यादव क्षत्रप भाजपा को टक्कर देने के लिए इस समूह के तहत विभिन्न जातियों तक पहुंच रहे हैं।

भाजपा ने मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार भेजा था ताकि वह अपने समुदाय से जुड़ सकें। इन राज्यों में इस समुदाय में क्रमशः सपा और राजद का एक मजबूत आधार है।

सैनी संभवतः इसका एक और पिछड़ा चेहरा हो सकते हैं। साल 2014 में भाजपा को इस समुदाय का खासा समर्थन मिला था और कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में पार्टी के सत्ता में आने के बाद से कई राज्यों में भाजपा के उदय में यह महत्वपूर्ण रहा है।

सैनी की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब भाजपा युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की कवायद कर रही है। वह यादव और राजस्थान के सीएम भजन लाल शर्मा की तरह 50 साल के हैं। जबकि साई पिछले महीने 60 साल के हो गए हैं।

भाजपा नेताओं का कहना है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में उनके पदभार ग्रहण करने से पार्टी को गैर जाट वोट एकजुट करने में मदद मिलेगी। पार्टी को उम्मीद है कि अपेक्षाकृत छोटे से राज्य हरियाणा की सीमाओं से परे भी उनके नाम की गूंज सुनाई देगी।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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